लोकतंत्र के महायज्ञ में मतदान जरूरी है, अधिकारों के संवर्धन में..
संवाद सहयोगी कोंच गांव में सरकार बनाने के लिए तमाम दावेदार वोटरों को लुभाने में लग चुके
संवाद सहयोगी, कोंच : गांव में सरकार बनाने के लिए तमाम दावेदार वोटरों को लुभाने में लग चुके हैं। बड़े बड़े वादे कर रहे हैं। हर जतन कर वोटरों को लुभाने का खेल करने में लग चुके हैं। पंचायत चुनाव पर कवियों की भी पैनी नजर है। कवि जनप्रतिनिधियों की फितरत से पूरी तरह वाकिफ हैं। आइये कुछ कवियों की कविताओं को सुनकर दावेदारों की हकीकत और गांव की सरकार के बारे में जानते हैं।
नगर के युवा कवि सुनीलकांत तिवारी पंचायत चुनाव में मैदान में उतरे प्रत्याशियों के बारे बताते हुए कहते हैं कि 'धूल से सने बच्चे को जब उन्होंने गोद में उठाया, तब पूरा जान गया कि अब चुनाव आया। नगर के सबसे सरल कवि संतोष तिवारी कहते हैं कि 'नेता आये गांव में बौने बीज सफल, पिछली वाली फूल के अपनी अपनी टशन, हाथ जोड़कर मांगते प्रत्याशी का वोट, पांच साल तक काटेंगे अपनी बोई फसल। कवि भास्कर सिंह माणिक्य चुनाव को लोकतंत्र की खूबसूरती बताते हैं और गांव की जनता से वोट डालने की अपील भी करते हैं। लोकतंत्र के महायज्ञ में मतदान जरूरी है, अधिकारों के संवर्धन में मतदान जरूरी है, ईमानदार चुनें हम नेता गांव के प्रति, देश के समृद्धि मान में मतदान जरूरी है। कवि अरुण दर्शन नेताजी की फितरत पर कहते हैं कि गिरगिट भी रंगीन कलाओं में उन्हें देख देखकर भूल गया, लोमड़ी भी अंगूर को खट्टा कहना भूल गई। हास्य रस के कवि ओंकार नाथ पाठक ने पंचायत चुनाव की वर्तमान हकीकत से रूबरू कराते हुए कहा कि 'पंचायत चुनाव हो रहे, मदिरा की नदियों में लोर रहे, दद्दा से दद्दा नई कई अब सबके पांव धोकर पी रहे। कवि नंदराम भावुक जनप्रतिनिधि पर कटाक्ष करते हुए कहते हैं कि जो गांव के तालाब, कुएं, सड़कें सभी खा गए, वे फिर टोपियां बदलकर फिर मैदान में आ गए।