जल संचयन को ग्रामीणों ने बना दिया था 52 बीघा का तालाब

अनुराग श्रीवास्तव जालौन विकासखंड जालौन के ग्राम माडरी जल संरक्षण के लिए एक उत्तम उदाहरण है। पानी को बचाने के लिए इस गांव में सौ वर्ष पहले गांव के लोगों ने 52 बीघा का तालाब बना डाला था। यह तालाब अभी भी पानी से लबालब भरा रहता है। इस विशाल जलाशय की वजह से गांव में कभी जल संकट का सामना नहीं करना पड़ा। अगर इसी तरह से लोग जागरूकता दिखाते रहें तो जल संरक्षण की पहल सार्थक साबित हो सकती है। पानी के संकट से निजात पाई जा सकती है।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 15 Apr 2021 05:59 PM (IST) Updated:Thu, 15 Apr 2021 05:59 PM (IST)
जल संचयन को ग्रामीणों ने बना दिया था 52 बीघा का तालाब
जल संचयन को ग्रामीणों ने बना दिया था 52 बीघा का तालाब

अनुराग श्रीवास्तव, जालौन विकासखंड जालौन के ग्राम माडरी जल संरक्षण के लिए एक उत्तम उदाहरण है। पानी को बचाने के लिए इस गांव में सौ वर्ष पहले गांव के लोगों ने 52 बीघा का तालाब बना डाला था। यह तालाब अभी भी पानी से लबालब भरा रहता है। इस विशाल जलाशय की वजह से गांव में कभी जल संकट का सामना नहीं करना पड़ा। अगर इसी तरह से लोग जागरूकता दिखाते रहें तो जल संरक्षण की पहल सार्थक साबित हो सकती है। पानी के संकट से निजात पाई जा सकती है।

इस तालाब को लेकर गांव के लोग बताते हैं कि लगभग डेढ़ सौ वर्ष पहले सूखा पड़ा था। जिससे पानी की किल्लत हो गई थी। तब ग्रामीणों ने मिलकर तालाब की खुदाई की थी। हर घर से लोग फावड़ा कुदाल लेकर तालाब को खोदने के लिए पहुंचे थे। इसका सार्थक परिणाम भी निकला। गांव में पानी की समस्या खत्म हो गई। गांव के लोग वर्षा जल संचयन का महत्व जान गए। पहले के लोग इस बात से भलीभांति वाकिफ थे कि आने वाले समय में पानी के संकट के समय यही तालाब उपयोगी साबित होंगे। अब तक यह तालाब पानी से लबालब रहता है। खास बात यह भी है कि जहां तमाम तालाबों पर लोगों ने अतिक्रमण कर लिया है तो इस गांव का यह विशाल जलाशय इस समस्या से मुक्त है। गांव के लोग तालाब को सहेजने के प्रति पूरी तरह से गंभीर हैं। यही वजह है कि गांव के लिए यह तालाब वरदान बन चुका है। गर्मी में बच्चों के लिए बन जाता स्वीमिग पूल

गर्मी के मौसम में जब स्कूल बंद हो जाते हैं और बच्चे अवकाश का आनंद लेते हैं तब यह तालाब उन बच्चों के लिए काफी राहत भरा साबित होता है। इसी तालाब में नहा कर बच्चे गर्मी से निजात पाते हैं। इनके लिए यह देशी स्वीमिग पूल से कम नहीं है। पूरे गांव के पशुओं को मिलता पानी

जब गांव में हैंडपंप नहीं थे तथा कुंआ की संख्या कम थी तो लोग तालाब में जाकर ही पशुओं को पानी पिलाते थे। आज भी गांव भर के पशु इसी तालाब में पानी पीते हैं। लोग कपड़े भी इसी तालाब में धोते हैं। दो वर्ष पूर्व हुई तालाब की सफाई

तालाब के पानी को हमेशा साफ रखने का प्रयास किया जाता है। जिससे उसके पानी का उपयोग हो सके तथा पलने वाली मछलियों को दिक्कत न हो। पानी गंदा होने पर दो वर्ष पूर्व ही उसे साफ किया गया है।

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