नर्मदेश्वर शिवालय की महिमा है अपार

औरैया मार्ग स्थिति नर्मदेश्वर मंदिर नगर के प्रमुख शिवालयों में शुमार है। नगर का एक मात्र ऐसा शिवालय है जहां पर भगवान शंकर व नंदी विराजमान हैं। नगर का सबसे बड़ा शिवालय सावन के माह में गुलजार रहता है। मंदिर में प्रतिदिन बड़ी संख्या में भक्तगण दर्शन करने व पूजा-अर्चना करते हैं।

By JagranEdited By: Publish:Sun, 08 Aug 2021 06:07 PM (IST) Updated:Sun, 08 Aug 2021 06:07 PM (IST)
नर्मदेश्वर शिवालय की महिमा है अपार
नर्मदेश्वर शिवालय की महिमा है अपार

औरैया मार्ग स्थिति नर्मदेश्वर मंदिर नगर के प्रमुख शिवालयों में शुमार है। नगर का एक मात्र ऐसा शिवालय है जहां पर भगवान शंकर व नंदी विराजमान हैं। नगर का सबसे बड़ा शिवालय सावन के माह में गुलजार रहता है। मंदिर में प्रतिदिन बड़ी संख्या में भक्तगण दर्शन करने व पूजा-अर्चना करते हैं। इतिहास :

नर्मदेश्वर महादेव मंदिर उरई औरैया राष्ट्रीय राजमार्ग पर कोंच चौराहे के पास स्थित है। मंदिर निर्माण 1953 में शुरू हुआ और आज भी काम चल रहा है। समाजसेवी लक्ष्मी नारायण माहेश्वरी ने मंदिर की नींव रखी और उसका उद्घाटन स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज ने किया था। लक्ष्मीनारायण को स्नान के दौरान नर्मदा नदी में शिवलिग मिला था। इसलिए नाम नर्मदेश्वर पड़ा। ऐसा कहा जाता है कि शिवलिग को होशंगाबाद नर्मदा घाट से जालौन तक लक्ष्मी नारायण महेश्वरी के छोटे भाई रूपचंद्र माहेश्वरी पैदल लाए थे। मंदिर को भव्य संरचना देने का कार्य वर्ष 1992 में शुरू हुआ और वर्ष 2000 में श्री केशव चंद्र माहेश्वरी ने मंदिर को एक सुंदर संरचना दी। आस पास की हरियाली और शांत वातावरण ने मंदिर को भक्तों के लिए मन की शांति प्राप्त करने के लिए उत्तम स्थान बना दिया। विशेषता

नगर के प्रमुख शिवालय नर्मदेश्वर मंदिर का निर्माण 1953 में शुरू हुआ था। लगातार 2010 तक चलता रहा। 57 वर्ष तक मंदिर में लक्ष्मीनारायण के इच्छा पर काम चलता रहा। नगर व क्षेत्र का एक मात्र शिवालय है जिसकी प्राण प्रतिष्ठा शंकराचार्य ने करायी है। सावन के महीने में तथा शिवरात्रि के मौके पर विशेष आयोजन होते हैं। मंदिर में स्थापित भगवान शिव व नंदी के दर्शन अलौकिक हैं तथा दर्शन मात्र से व्यक्ति को शांति का एहसास होता है।लोग यहां बैठकर ध्यान लगाते हैं तथा शांति महसूस करते हैं।

गंगा सिंह, पुजारी मंदिर की स्थापना उनके पिता लक्ष्मीनारायण माहेश्वरी ने की थी। पिता की मृत्यु के बाद मंदिर के संचालन का दायित्व उनके पास है। सावन माह व शिवरात्रि के मोके पर मंदिर को आकर्षक ढंग से सजाया जाता है तथा विशेष पूजा अर्चना की जाती है।

केशव चंद,्र महेश्वरी

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