दिलों में थी वह कसमसाहट, सच बोलना भी था गुनाह

विमल पांडेय उरई वह दौर ऐसा था जब सच बोलना ही गुनाह हो गया था। सही बात करने वाले लोग जेल भेजे जा रहे थे। सरकार के दबाव में नौकरशाह आम लोगों पर जुल्म कर रही थी। ऐसे में इन जुल्मों का विरोध करना आवश्यक था। मीसा (आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था अधिनियम) में जेल गए शहर के कामरेड राधेलाल गुप्त को कुरेदा गया तो उनके उदगार सामने आ गए। वह आपात काल को लेकर मुखर हो उठते हैं। बुंदेलखंड में इंदिरा सरकार के विरुद्ध सत्याग्रह आंदोलन के नेतृत्वकर्ता रहे राधेलाल आज भी पूरे जोश और खरोश से सरकारों के विरुद्ध अपनी आवाज बुलंद करते हैं।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 25 Jun 2021 05:29 PM (IST) Updated:Fri, 25 Jun 2021 05:29 PM (IST)
दिलों में थी वह कसमसाहट, सच बोलना भी था गुनाह
दिलों में थी वह कसमसाहट, सच बोलना भी था गुनाह

विमल पांडेय, उरई

वह दौर ऐसा था जब सच बोलना ही गुनाह हो गया था। सही बात करने वाले लोग जेल भेजे जा रहे थे। सरकार के दबाव में नौकरशाह आम लोगों पर जुल्म कर रही थी। ऐसे में इन जुल्मों का विरोध करना आवश्यक था। मीसा (आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था अधिनियम) में जेल गए शहर के कामरेड राधेलाल गुप्त को कुरेदा गया तो उनके उदगार सामने आ गए। वह आपात काल को लेकर मुखर हो उठते हैं। बुंदेलखंड में इंदिरा सरकार के विरुद्ध सत्याग्रह आंदोलन के नेतृत्वकर्ता रहे राधेलाल आज भी पूरे जोश और खरोश से सरकारों के विरुद्ध अपनी आवाज बुलंद करते हैं।

वह कहते हैं कि सरकार और नौकरशाह की निरंकुशता बढ़ती है तो जनता पर आफत आ जाती है। नसबंदी कानन का विरोध करने वाले राधेलाल ने बुंदेलखंड में कम्युनिष्ट पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ 20 फरवरी 1977 को आंदोलन शुरू किया था। सत्याग्रह आंदोलन करते हुए शहर के गांधी नगर से रामलीला मैदान के बीच एक जुलूस निकाला था। जुलूस के माध्यम से इंदिरा सरकार के विरुद्ध जमकर नारेबाजी की थी। राधेलाल को उनके अस्सी साथियों के साथ गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया था। तीन महीने तक जेल में रहें राधेलाल नौकरशाह के उत्पीड़न पर आज भी खीझ निकालते हैं बकौल राधेलाल उन दिनों इंदिरा सरकार की ज्यादती अपनी पराकाष्ठा में थी। स्वजन का लगातार उत्पीड़न किया जा रहा था। स्वजन को भी घरों में कैद कर दिया गया था। यहां तक की आवश्यक खाद्य सामग्री तक नहीं लाने दिया गया। आपात काल के दौरान 37 वर्ष के रहे राधे लाल आज भी कम्युनिष्ट पार्टी की राजनीति करते हैं।इसी प्रकार जिले के महेबा निवासी लोकतंत्र सेनानी लाल सिंह चौहान ने सन 1975 में जबरिया नसबंदी कराने का विरोध किया गया था। कम्युनिस्ट नेता लाल सिंह चौहान ने पुलिस से बचने के लिए महेबा, मुसमरिया, भगोरा, निपनिया आदि बीहड़ पट्टी के गांवों में पहुंचकर आपातकाल का खुलकर विरोध करने की रणनीति बनाई। रणनीति के तहत आंदोलनकारी खेतों के रास्ते से उरई पहुंचे और माहिल तालाब पर इकट्ठे होकर जबरिया नसबंदी और आपातकाल के विरोध में 17 नवंबर 1976 को जुलूस निकाला था। जिसमें बंद करो जबरिया नसबंदी व मुक्त करो आपातकाल से यह नारे लगाते हुए जुलूस बजरिया होकर कलेक्ट्रेट जा रहा था। तत्कालीन जिलाधिकारी पीएल पुनिया को जब विरोध प्रदर्शन की भनक लगी तो उन्होंने कोतवाली के सामने प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार करवा लिया था। 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक 21 महीने तक देश में आपात काल घोषित रहा। तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कहने पर आपात काल की घोषणा की थी।

chat bot
आपका साथी