गांव को पानीदार बना रहा प्रतापपुरा का तालाब

संवाद सहयोगी जालौन रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून यह पंक्तियां वर्तमान में गहराते जल संकट को देखते हुए एकदम सटीक हैं। पानी का संकट हर कहीं पर है। हालांकि इस दिक्कत से निजात पाई जा सकती है। परंपरागत जल स्त्रोतों को सहेजना ही इसका निदान है। उदाहरण के लिए ग्राम प्रतापपुरा आइए। इस गांव का तालाब गांव को पानीदार बनाने में कसर नहीं छोड़ रहा है। गर्मी में पानी से लबालब भरा हुआ है।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 17 Apr 2021 06:33 PM (IST) Updated:Sat, 17 Apr 2021 06:33 PM (IST)
गांव को पानीदार बना रहा प्रतापपुरा का तालाब
गांव को पानीदार बना रहा प्रतापपुरा का तालाब

संवाद सहयोगी, जालौन : रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून यह पंक्तियां वर्तमान में गहराते जल संकट को देखते हुए एकदम सटीक हैं। पानी का संकट हर कहीं पर है। हालांकि इस दिक्कत से निजात पाई जा सकती है। परंपरागत जल स्त्रोतों को सहेजना ही इसका निदान है। उदाहरण के लिए ग्राम प्रतापपुरा आइए। इस गांव का तालाब गांव को पानीदार बनाने में कसर नहीं छोड़ रहा है। गर्मी में पानी से लबालब भरा हुआ है।

प्रतापपुरा में तालाब गांव के बाहर ऐसे स्थान पर है जहां से बहुत से राहगीरों का आना जाना लगा रहता है। गर्मी के समय में लोग रास्ते से निकले तो तालाब में स्नान कर गर्मी से निजात पाते हैं। साथ ही वहां लगे पेड़ों के नीचे बैठकर सुस्ता लेते हैं। तीन हजार की आबादी वाले गांव में पानी का काम इसी तालब से चलता है। पीने का पानी हैंडपंपों व कुओं से लिया जाता है जबकि नहाने धोने व पशुओं के लिए पानी की जरूरत तालाब से पूरी की जाती है। पानी से लबालब भरे इस तालाब के किनारे शाम तक चहल पहल बनी रहती है।

अगर कभी तालाब में पानी कम हुआ तो नहर से इसे भरवा दिया जाता है। बारिश का पानी तालाब में जाने का रास्ता बनाया गया है। वर्षा जल को बचाने के लिए तालाब अच्छा माध्यम है। अतिक्रमण का हुआ शिकार :

तालाब काफी बड़ा था, लेकिन इसके किनारे अतिक्रमण होने लगा तो इसका दायरा कुछ कम हो गया लेकिन अब इस समस्या से मुक्त है। गांव के लोग तालाब को लेकर गंभीरता दिखा रहे हैं। साथ ही कहते हैं कि ऐसे स्थान पर तालाब और खोदे जाने चाहिए जिस रास्ते से बारिश का पानी बहकर जाता है। गांव के बुजुर्ग रामसेवक बताते हैं कि पहले गांव में कोई भी काम हो तालाब की पूजा की जाती थी। तीज त्योहारों पर लोग यहां एकत्रित होते थे। आसपास के खेतों में सिंचाई का आधार

जब खेतों में फसल खड़ी होती है तथा नहर में पानी नहीं होता है तो आसपास के किसान तालाब के पानी से खेत की सिचाई करते हैं। जब पानी कम हो जाता है तो नहर आने पर उसको भर दिया जाता है। इससे तालाब में लगभग हर समय पानी बना रहता है। धार्मिक आयोजनों में होता है इसका उपयोग

रक्षाबंधन के मौके पर भुंजरिया प्रवाहित करने के साथ नवरात्रि के बाद जवारे प्रवाहित करने के साथ मोरी छठ के पर्व पर तालाब में धार्मिक आयोजन भी होते हैं।

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