हर सरकार में उपेक्षित रही माधौगढ़ की मिनी शुगर मिल

जागरण संवाददाता उरई गन्ना किसानों को उपज का उचित मूल्य दिलाने के लिए वर्ष 1974-75 में माधौगढ़ में स्थापित की गई मिनी शुगर मिल वर्षों से उपेक्षा का दंश झेल रही है। सरकारें बदलीं लेकिन किसी ने इस शुगर मिल को फिर से नवजीवन देने का प्रयास नहीं किया। यही वजह है कि माधौगढ़ क्षेत्र के किसान औने पौने दामों में गन्ना बेचने को मजबूर हैं। वैसे भी अब कुल बीस फीसद किसान ही गन्ना की खेती करते हैं। अन्य किसानों ने मुंह फेर लिया है।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 23 Jul 2021 08:29 PM (IST) Updated:Fri, 23 Jul 2021 08:29 PM (IST)
हर सरकार में उपेक्षित रही माधौगढ़ की मिनी शुगर मिल
हर सरकार में उपेक्षित रही माधौगढ़ की मिनी शुगर मिल

जागरण संवाददाता, उरई : गन्ना किसानों को उपज का उचित मूल्य दिलाने के लिए वर्ष 1974-75 में माधौगढ़ में स्थापित की गई मिनी शुगर मिल वर्षों से उपेक्षा का दंश झेल रही है। सरकारें बदलीं लेकिन किसी ने इस शुगर मिल को फिर से नवजीवन देने का प्रयास नहीं किया। यही वजह है कि माधौगढ़ क्षेत्र के किसान औने पौने दामों में गन्ना बेचने को मजबूर हैं। वैसे भी अब कुल बीस फीसद किसान ही गन्ना की खेती करते हैं। अन्य किसानों ने मुंह फेर लिया है।

जिले में माधौगढ़ तहसील ही एक ऐसी तहसील है जहां पर व्यापक गन्ने की खेती होती रही है। लेकिन किसानों के सामने सबसे बड़ी समस्या बाजार की थी। किसानों को दूर दराज गन्ना बेचना पड़ता था। इसके साथ ही स्थानीय स्तर पर गुड़ भी बनाया जाता था। किसानों को गन्ने की उपज का उचित मूल्य दिलाने के लिए वर्ष 1974-75 में तत्कालीन सरकार ने बुंदेलखंड विकास निधि से 18 लाख की लागत से शुगर मिल स्थापित कराई थी। जिससे क्षेत्र के किसानों को काफी राहत मिली। उस समय प्रतिदिन 250 टन शुगर का उत्पादन होता था। कुछ वर्षों तक तो मिल काफी अच्छी चली लेकिन उचित रखरखाव न होने की वजह से 1984 के आसपास इसको ग्रहण लग गया। मिल बंद हुई तो फिर कभी किसी ने ध्यान नहीं दिया। मशीनें खस्ताहाल हो गई या फिर उनको बेच दिया गया। हालांकि गन्ना खरीद के लिए चितौरा गांव में सरकारी कांटा लगाया गया था लेकिन वह भी अधिक दिनों तक नहीं चल सका। गन्ना के बाजार की समस्या हुई तो धीरे-धीरे तमाम किसानों ने गन्ना की खेती करना ही बंद कर दिया अब कुल बीस फीसद किसान ही गन्ने की खेती करते हैं। एसडीएम सालिगराम कहते हैं गन्ना मिल को प्रारंभ कराने के लिए कई बार स्थानीय लोगों ने मांगपत्र भेजा है। शासन स्तर तक हमेशा बात पहुंचाई गई है। मिनी शुगर मिल की स्थापना - वर्ष 1974-75

शुगर मिल की उस समय लागत - 18 लाख रुपये

किस निधि से बनवाई गई मिल - बुंदेलखंड विकास निधि बोले गन्ना किसान :

- किसानों के सामने सबसे बड़ी समस्या बाजार की है। गन्ना की उपज करो तो बेचने के लिए दूसरे जनपद जाना पड़ता है। इससे दूसरी खेती करना मजबूरी बन गई।

धर्मेंद्र सिंह, अकबरपुरा - गन्ना मिल होने से किसानों को काफी राहत थी लेकिन मिल बंद हो जाने के बाद किसान निराश हैं। यही वजह है कि तमाम किसान अब गन्ने की उपज नहीं करते।

राजा माधौगढ़

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