जिनका कोई नहीं, उनका करते हैं अंतिम संस्कार

समाजसेवी सुनीत आर्य बने प्रेरणास्त्रोत 21 साल से सेवा कार्य में 1500 से ज्यादा शवों का उनके धर्म के अनुरूप किया अंतिम संस्कार।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 12 Aug 2021 06:55 AM (IST) Updated:Thu, 12 Aug 2021 06:55 AM (IST)
जिनका कोई नहीं, उनका करते हैं अंतिम संस्कार
जिनका कोई नहीं, उनका करते हैं अंतिम संस्कार

जासं, हाथरस : इस दुनिया में ऐसे भी लोग हैं, जिनके मरने के बाद भी उनके अपने दूरी बनाए रहते हैं। उनको मुखाग्नि देने वाला कोई नहीं होता है। ऐसे लोगों की सद्गति के लिए समाजसेवी सुनीत आर्य उनकी टीम के लोग खड़े हुए। कोरोना काल में जब अपने लोग भी संक्रमित जीवित व दिवंगत के पास जाने से डर रहे थे, उस दौरान भी उनकी मदद की। अंतिम संस्कार भी कराने को आगे आए। यहां तक कि उनकी अस्थियों का विसर्जन भी कराते हैं। इस सेवा को करते हुए लगभग 21 वर्ष हो गए हैं। अब तक 1500 से ज्यादा अज्ञात शवों का अंतिम संस्कार कर चुके हैं।

समाजसेवी सुनीत आर्य और उनके साथियों ने पिछले साल कोरोना काल में लाकडाउन के समय 14 शवों का अंतिम संस्कार किया था। इस साल भी 16 शवों की सेवा हो चुकी है। सुनीत आर्य बताते हैं कि एक बार लावारिस शवों की बेकद्री से व्यथित होकर उन्हें यह प्रेरणा मिली। अलीगढ़ में मानव उपकार के संस्थापक विष्णु कुमार बंटी ने यह प्रण लिया था कि किसी भी शव की बेकद्री नहीं होने दी जाएगी। उनको ही प्रेरणाश्रोत मानते हुए हाथरस में लावारिस शवों की अंत्येष्टि शुरू की। मानव कल्याण संस्था का संस्थापक सदस्य होने के नाते बहुतेरे सदस्यों को संस्था से जोड़ा। शुरू-शुरू में समाज व अपनों का तिरस्कार भी देखने को मिला, क्योंकि पोस्टमार्टम हाउस में फ्रीजर न होने के कारण शवों से बहुत ज्यादा बदबू आती थी, जिनकी अंत्येष्टि करना बहुत कष्टकारी होता था। मां तो नहीं मिली, फेसबुक

के सहारे मिलीं अस्थियां

मथुरा निवासी जतिन सिघल एडवोकेट की मां मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं थीं। एक साल पहले वह घर से निकल आईं। वे टुकसान (इगलास रोड) पर जा रही थीं। हतीशा पर किसी वाहन से उतरने के बाद रेलवे लाइन क्रास कर रहीं थी। तभी ट्रेन की चपेट में आकर मौत हो गई। इस बीच मथुरा और वृंदावन में कई मंदिरों और आश्रमों पर भी देखा। स्वजन वृद्ध मां को ढूंढ़ रहे थे। तीन दिन तक शव रखने के बाद अज्ञात में अंतिम संस्कार कर दिया गया। फेसबुक पर हाथरस में अज्ञात शवों के अंतिम संस्कार करने वाली संस्था के बारे में जानकारी मिली तो सुनीत आर्य से संपर्क किया। यहां दिखाए गए फोटो, कपड़े व अन्य सामान के आधार पर वृद्धा की शिनाख्त हो गई। मां का फोटो देखकर स्वजन की आंखों में आंसू आ गए। उन्हें बाद में अस्थियां दे दी गई गईं। ऐसी तमाम घटनाएं सामने आती हैं।

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