राजा महेंद्र प्रताप की यादों का अस्तित्व संकट में

नगला महेंद्र और नगला रानी में खंडहर हो चुकी है हवेली और चबूतरा फिक्र नदारद।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 10 Sep 2021 04:05 AM (IST) Updated:Fri, 10 Sep 2021 04:05 AM (IST)
राजा महेंद्र प्रताप की यादों का अस्तित्व संकट में
राजा महेंद्र प्रताप की यादों का अस्तित्व संकट में

केसी दरगड़, हाथरस : आजादी से पहले अफगानिस्तान में अंतरिम सरकार बनाकर दुनिया में हाथरस के मुरसान का परचम फहराने वाले राजा महेंद्र प्रताप की याद दिलाता है गांव महेंद्रगढ़ी अथवा नगला महेंद्र। पास में रानी का नगला नाम से भी गांव बसा हुआ है। कभी हाथरस देहात का यह इलाका अब नगर पालिका में शामिल हो चुका है। देखभाल की अभाव में राजा महेंद्र प्रताप से जुड़ी यादें यहां अस्तित्व खो रही हैं। इस पर न तो पुरातत्व विभाग ने ध्यान दिया और न ही जिला प्रशासन ने। कल्याणगढ़ी में कुआं और गढ़ी में लगी पुरानी ईंटें और नगला रानी में रानी का चबूतरा अवशेष के रूप में ऐतिहासिक धरोहर की याद दिलाते हैं। पास में सती के रूप में दोनों के पत्थर लगे हुए हैं।

हाथरस से ढकपुरा गांव को जाने वाली रोड से एक पुलिया कल्याणगढ़ी की ओर जाती है। राजस्व रिकार्ड में इसका नाम नगला महेंद्र व महेंद्रगढ़ी है। अब यह इलाका आबादी क्षेत्र में शामिल हो गया है। कल्याणगढ़ी में जहां पर हवेली बनी हुई है, वहां पर बरगद का पुराना पेड़ है। यहीं पर ककइया ईंट की खंडहरनुमा दीवार खड़ी है। पास में एक कुआं भी है, यहां झाड़ियां हैं और आसपास मकान बने हुए हैं। इनका अस्तित्व संकट में है। पास में ही सती के नाम से जगह है। यहां पर राजा और रानी के स्मारक के रूप में पत्थर लगे हुए हैं। स्थानीय निवासी बनवारी लाल सोनी बताते हैं कि यहां पर पहले बाग हुआ करता था। हमारे पिता और अन्य लोग टुकसान से यहां आकर झोंपड़ी डालकर रह रहे थे। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान वर्ष 1944 में राजा महेंद्र प्रताप व उनकी रानी बलवीर कौर बख्तरबंद गाड़ी से यहां पहुंचे थे और यहां छिपकर कुछ समय बिताया था। पूर्व में यह स्थान कल्याणगढ़ी के नाम से जाना जाता था। यहां झोंपड़ी में रहने वाले लोगों से राजा ने कहा था, 'आप लोग रावणटीला स्थान जोकि अलीगढ़ में हैं, जाकर बस जाओ। वह जगह सुरक्षित है।' उस समय राजा की जमीन हाथरस से लेकर अलीगढ़ तक थी। तब रानी ने राजा महेंद्र प्रताप से कहा था कि ये लोग कहां जाएंगे, यहीं पर रहने दो। बुजुर्ग बाबा के नाम से कल्याण सिंह से इसका नाम कल्याणगढ़ी रख दिया। बाद में राजस्व रिकार्ड में इसका नाम नगला महेंद्र और महेंद्रगढ़ी पड़ गया। यह स्थान आज भी तीनों नामों से जाना जाता है। यहां पर सांसद व विधायक निधि से विकास कार्य भी हुए हैं। शिलापट्टिका में महेंद्रगढ़ी नाम दर्ज है।

पास में गांव रानी का नगला है। यहां के निवासी जालिम सिंह एडवोकेट बताते हैं कि वे 1975 में गांव आए थे। यहां पर बाग हुआ करता था। जब रानी यहां पर आई थीं, तब का वह चबूतरा आज भी है। इस चबूतरे पर बैठकर वह लोगों की बातें सुनती थीं। यहीं के निवासी बाबूलाल बताते हैं कि इस चबूतरे पर पीपल का पेड़ है। चबूतरे को इंटरलाकिग से पक्का कराया गया है। अब सार्वजनिक उपयोग के लिए है। कल्याणगढ़ी और रानी के नगला को रेलवे लाइन दो हिस्से में बांटती है। रानी के नगला में रेलवे लाइन के सहारे पूर्व माध्यमिक विद्यालय है। वर्जन-

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान वर्ष 1944 के करीब राजा महेंद्र प्रताप हाथरस से सटे कल्याणगढ़ी में आकर रहे थे। उनके नाम से नगला महेंद्र व महेंद्रगढ़ी रखा गया है। यहां उनकी हवेली थी। पास में ही रानी के नाम से रानी का नगला बसा हुआ है। यहां पर रानी का चबूतरा है। मैं इन खंडहरों का पुरातात्विक अध्ययन कर रहा हूं।

-डा. एमके पुंढीर, इतिहासकार एएमयू

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