बस गई नगरी, बस गए मोर, हरी चिरैया ले गए चोर
बाजारों में दुकानों पर सज रहे टेसू व झांझी हर साल रावण दहन के बाद निभाई जाती है इसकी परंपरा।
संवाद सहयोगी, हाथरस : 'बस गई नगरी, बस गए मोर, हरी चिरैया ले गए चोर' इस तरह के गीत बच्चों के मुख से बड़े प्यारे लग रहे हैं। शहर से लेकर देहात तक बच्चे हाथों में टेसू लेकर पैसे मांगने की परंपरा निभा रहे हैं। बाजारों में दुकानों पर टेसू की खरीदारी बढ़ गई है।
रावण दहन के साथ ही टेसू व झांझी लेकर पैसे मांगने की परंपरा शुरू हो जाती है। शुक्रवार की शाम रावण का पुतला दहन होने के बाद ही बच्चों ने शाम से ही टेसू लेकर मांगना शुरू कर दिया। इनमें लड़के टेसू और लड़कियां झांझी सजाती हैं। तीन टांग के टेसू पर मोमबत्ती या दीपक जलाकर रखा जाता है। वहीं झांझी में यह दीपक गोल मटकी के आकर की बनी झांझी के अंदर रखा जाता है। बच्चों के एक हाथ टेसू या झांझी और दूसरे हाथ में मांगने का पात्र होता है। इसमें आटा, खाने की सामग्री व पैसे आदि देने की परंपरा रही है। मेरा टेसू रंग-बिरंगा,
इसने भांग खाई है
टेसू व झांझी लेकर घरों से निकले बच्चों को परंपरागत गीत भी गाने पड़ते हैं। घर या प्रतिष्ठान के दरवाजों पर इन दिनों बच्चों के मुंह सुरीली आवाज में निकल रहे गीत सभी का मन मोह लेते हैं। उनमें कुछ इस तरह हैं- 'बस गई नगरी बस गए मोर, हरी चिरैया ले गए चोर।' 'टेसू रे टेसू रे घंटा बजइयो, नौ नगरी में गाम बसइयो।' 'मां कहे मेरा उत्तर-पुत्तर, बहन कहे मेरा भाई है..।' आज भी काफी लोकप्रिय हैं। 20 से 50 रुपये में टेसू व झांझी
बाजार में टेसू की कीमत 20 रुपये से 50 रुपये तक है। इनको शहर के कमला बाजार, घंटाघर, मुरसान गेट, नयागंज, सादाबाद गेट, आगरा रोड, अलीगढ़ रोड सहित अन्य बाजारों फड़ लगाकर व दुकानों पर रखकर बिक्री किया जा रहा है। इनको बनाने का कार्य पितृपक्ष से ही शुरू हो जाता है। दशहरा के बाद इनकी बिक्री बढ़ जाती है।
इनका कहना है
टेसू व झांझी का बहुत महत्व है। इसे दीपावली से पूर्व दशहरा से शुरू किया जाता है। बचपन में हमने भी टेसू की घरों में पूजा की थी। बच्चों में इनका सबसे अधिक क्रेज होता है। इन्हें देखते ही सभी को बचपन याद आ जाता है।
- मनीष, श्रद्धालु टेसू बर्बरीक का प्रतीक है। इनकी पूजा खाटू श्याम के रूप में भी होती है। जो कृष्ण के अवतार माने जाते हैं। यह जीवन से हार मान चुके लोगों का सहारा हैं। भगवान कृष्ण ने इन्हें महाभारत का युद्ध गर्दन कटने के बाद दिखाया था।
-पं. विश्वनाथ पुरोहित, ज्योतिषाचार्य