30 साल से संवार रहीं मूरत, हालात न बदले

राजस्थान से हर साल हाथरस आता है यह परिवार गणेश-लक्ष्मी की मूर्ति बनाकर बेचने।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 04 Nov 2021 12:13 AM (IST) Updated:Thu, 04 Nov 2021 12:13 AM (IST)
30 साल से संवार रहीं मूरत, हालात न बदले
30 साल से संवार रहीं मूरत, हालात न बदले

योगेश शर्मा, हाथरस : राजस्थान का एक परिवार करीब 30 साल से लगातार हाथरस आता है और सड़क किनारे तंबू लगाकर देवी-देवताओं की मूर्तियों में हुनर का रंग भर गुजर-बसर करता है। इस परिवार की सबसे ज्यादा हुनरमंद परिवार की बेटी पूजा है जो मांग के अनुसार देवी-देवताओं की मूर्तियां बनाती है। परिवार के बाकी सदस्य बाजार में बेचने निकल पड़ते हैं। करीब तीस साल से यह परिवार इस धंधे में है मगर जैसे-तैसे रोटी का जुगाड़ भर हो पाता है। परिवार के बारे में :

राजस्थान के उदयपुर के गांव कुंबलपुर के शंकर सिंह बताते हैं कि उनका परिवार 30 साल से हाथरस आ रहा है। परिवार में पत्नी शांति के साथ बेटी पूजा और दूसरी बेटी रेखा और उसके दो छोटे बच्चे हैं। वह हर साल गणेश चतुर्थी से कुछ दिन पहले यहां आकर सड़क किनारे डेरा डाल देते हैं। परिवार में दोनों बेटियां और पत्नी पीओपी की मिट्टी से पहले सांचे से मूर्तियां तैयार करती हैं और फिर उनको अलग-अलग रंगों में सजाती हैं।

नहीं मिलता बेहतर मुनाफा : 18 साल की पूजा बताती हैं कि पूरा परिवार इसी काम में सक्रिय है। साइज के हिसाब से प्रतिमा के रेट तय होते हैं। एक प्रतिमा की शुरुआती कीमत 80 रुपये है। इसके अलावा बड़ी प्रतिमा बनाने के रेट अलग होते हैं। तय करता है कि ग्राहक की डिमांड किस तरह की है। धार्मिक मूर्तियां बनाने के अलावा तोते आदि भी बनाए जा रहे हैं। दीपावली पर लोग मूर्तियां खरीदकर ले जा रहे हैं, मगर मुनाफा उतना ही मिलता है जिनसे पेट भर सके।

शुरुआत में इनकी बनाई गई मूर्तियां ज्यादा बड़ी नहीं होती थीं और लोगों को बड़ी मूर्तियां चाहिए होती थी। लोगों को समझाया कि इन मूर्तियों से पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं होता। इन्हें गमले में भी डाल सकते हैं।

जब लोग पर्यावरण संरक्षण के बारे में सोचने लगे, तब उनकी मूर्तिया ज्यादा बिकने लगी। अब तो गणेश चतुर्थी से तीन माह पहले पूरा परिवार गणेश की प्रतिमाएं बनाने में जुट जाता है। राजस्थान सरकार नहीं दे रही सुविधा

पूजा के पिता शंकर बताते हैं कि किसको शौक है अपना घर और गांव छोड़ने का, मगर पेट की खातिर यहां आना पड़ता है। कई बार राजस्थान सरकार से कोशिश की कि कुछ ऋण मिल जाए तो परिवार की गरीबी दूर हो जाए। ऋण लेकर यही काम अच्छे स्तर पर कर सकते हैं। यहां भी हमें कर्ज इसलिए नहीं मिलेगा क्योंकि हमारे आधार कार्ड यहां के नहीं राजस्थान के हैं। इसके अलावा यहां तो तंबू में कभी भी कोई सांप आदि निकलते रहते हैं। ईश्वर की कृपा है कि कभी घटना नहीं हुई।

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