सालाना खर्च लाखों रुपये, फिर भी मेडिकल वेस्ट के इंतजाम पूरे नहीं

सरकारी अस्पतालों और नर्सिंगहोम का मेडिकल वेस्ट जाता है आगरा रोजाना अस्पतालों तक नहीं पहुंचती गाड़ी इधर-उधर फेंक देते हैं कचरा।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 21 May 2021 04:07 AM (IST) Updated:Fri, 21 May 2021 04:07 AM (IST)
सालाना खर्च लाखों रुपये, फिर भी मेडिकल वेस्ट के इंतजाम पूरे नहीं
सालाना खर्च लाखों रुपये, फिर भी मेडिकल वेस्ट के इंतजाम पूरे नहीं

जासं, हाथरस : जनपद में बायोमेडिकल वेस्ट निस्तारित करने के लिए इंतजाम नहीं हैं। यहां से उप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधीन निजी संस्था के माध्यम से गाड़ियों के माध्यम से आगरा ले जाकर निस्तारित कराया जाता है। इसपर सरकारी और निजी अस्पताल संचालक सालाना लाखों रुपये खर्च कर रहे हैं। इसके बावजूद गाड़ियां रोजाना नहीं पहुंच रही हैं।

यह है स्थिति : जनपद में जिला अस्पताल के अलावा टीबी अस्पताल व नौ सीएचसी हैं। इसके अलावा 100 से अधिक निजी अस्पताल व नर्सिंग होम भी चल रहे हैं। आजकल कोविड हॉस्पिटल भी चल रहे हैं। इनका भी मेडिकल वेस्ट शामिल होता है। इसमें पीपीई किट के अलावा ग्लव्स व मास्क भी शामिल होते हैं। कोविड संक्रमित मरीजों के इंजेक्शन लगाने के बाद फेंके गए सीरिज व ड्रिप सेट भी होते हैं।

ऐसे होता है निस्तारण : जिला अस्पताल सहित सामुदायिक स्वास्थ केंद्र व निजी अस्पतालों से निकलने वाले बायो मेडिकल वेस्ट के निस्तारण के लिए शासन की ओर से नामित आगरा की एक निजी संस्था को जिम्मेदारी दे रखी है। तीन तरह के रंगों के डिब्बों में बायो मेडिकल वेस्ट रखा जाता है। दो तरह का बायोमेडिकल वेस्ट होता है सूखा व गीला। एक डिब्बे में अस्पतालों से निकलने वाली प्लास्टिक रखी जाती है, जबकि दूसरे डिब्बे में सीरिज को रखा जाता है। तीसरे डिब्बे में ऊतक यानी अस्पतालों से निकलने वाले मांस के लोथड़ों को रखा जाता है। बायो मेडिकल वेस्ट को गाड़ियों से एकत्रित कराया जाता है। जिसे आगरा स्थित प्लांट में लेकर निस्तारित किया जाता है। जानकार बताते हैं कि ये गाड़ियां रोजाना अस्पतालों तक नहीं जा पाती हैं। जो झोलाछाप व अन्य अस्पताल संचालक संस्था से पंजीकृत नहीं हैं, उनके यहां देहात क्षेत्र में इधर-उधर ही कचरा फेंक दिया जाता है।

हर साल लाखों का खर्च : सरकारी अस्पतालों के अलावा 120 निजी अस्पताल भी पंजीकृत हैं। अस्पताल संचालकों की मानें तो एक अस्पताल से 30-50 हजार रुपये सालाना लिए जाते हैं। इस पर 50-60 लाख रुपये सालाना खर्च किए जाते हैं। सवाल इस बात का है कि इतनी बड़ी राशि निजी संस्था को दी जा रही है। उससे शहर में ही निस्तारित करने का प्लांट लगाया जा सकता है।

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