काका हाथरसी के बेटे संगीतकार डॉ. लक्ष्मीनारायण गर्ग नहीं रहे

कई दिन से बीमार थे हाथरस स्थित आवास पर शुक्रवार सुबह ली अंतिम सांस 150 किताबों का लेखन व संपादन किया जमुना किनारे फिल्म के निर्देशक रहे।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 01 May 2021 02:43 AM (IST) Updated:Sat, 01 May 2021 02:43 AM (IST)
काका हाथरसी के बेटे संगीतकार  डॉ. लक्ष्मीनारायण गर्ग नहीं रहे
काका हाथरसी के बेटे संगीतकार डॉ. लक्ष्मीनारायण गर्ग नहीं रहे

जासं, हाथरस : प्रसिद्ध कवि स्व. काका हाथरसी के पुत्र संगीतकार डॉ. लक्ष्मीनारायण गर्ग नहीं रहे। शुक्रवार सुबह 10:40 बजे उन्होंने हाथरस के बांके भवन स्थित आवास पर अंतिम सांस ली। वह 89 वर्ष के थे। डॉ. गर्ग के निधन को साहित्य जगत ने अपूरणीय क्षति बताया है। शहर के पत्थरवाली स्थित श्मशान गृह पर उनका अंतिम संस्कार किया गया। भतीजी उमा नेगी ने उन्हें मुखाग्नि दी। उन्होंने बताया कि डॉ. गर्ग कई दिन से बीमार चल रहे थे, उन्हें कोरोना नहीं था। शहर के निजी चिकित्सक से उनका इलाज चल रहा था। परिवार में तीन बेटियां मधु अग्रवाल, नीलू गोयल और संध्या सचदेना और बेटे अशोक अग्रवाल हैं। अशोक अग्रवाल अमेरिका में रहते हैं, इसलिए हाथरस नहीं आ सके थे। डॉ. गर्ग ने संगीत पर करीब डेढ़ सौ किताबों का लेखन और संपादन किया था। ब्रजभाषा में बनी फिल्म जमुना किनारे के निर्देशक भी रहे। पद्मश्री अशोक चक्रधर उनके बहनोई हैं। डॉ. गर्ग ने सुर-ताल से हाथरस को दिलाई पहचान

जागरण संवाददाता, हाथरस : कोई एक शख्स डेढ़ सौ पुस्तकें, वो भी संगीत में लिख दे तो क्या कहेंगे। काका हाथरसी के बेटे डॉ. लक्ष्मीनारायण गर्ग ने यह करिश्मा किया था। उनकी उपलब्धियां यहीं नहीं ठहरतीं, वे संगीत के जरिए असाध्य रोगों का इलाज तक करते थे। संगीत का चिकित्सा में इतना बड़ा योगदान शायद ही कहीं मिलता हो। 89 वर्षीय डॉ. गर्ग के निधन से हाथरस को बड़ी क्षति हुई है। उन्होंने सुर और ताल से हाथरस को विशेश पहचान दिलाई थी।

वर्ष 2012 में केंद्रीय संगीत नाटक अकादमी नई दिल्ली की ओर से डॉ. गर्ग को टैगोर रत्न सम्मान मिला था। 2008 में मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने भरतनाट्यम पर 653 पन्नों की पुस्तक लिखने पर पुरस्कृत किया था। वे संगीत नाटक अकादमी, सुर श्रृंगार संसद मुंबई, ऑल इंडिया रेडियो (आकाशवाणी) और रेडियो सीलोन (श्रीलंका) के परामर्शदाता भी रहे। संगीतरत्न व कथक नृत्य जैसी पुस्तकों के लिए यूपी सरकार ने उन्हें सम्मानित किया था। म्यूजिक मिरर (अंग्रेजी मासिक पत्रिका) तथा हास्य रसम (वार्षिक पत्रिका) का संपादन भी उन्होंने किया। संगीत पर 150 से अधिक पुस्तकों का लेखन, अनुवाद और संपादन किया था। फिल्म निर्माता, संगीत निर्देशक

1962 में डॉ. गर्ग मुंबई चले गए। वहां फिल्म-संगीत और शास्त्रीय-संगीत में भरपूर अवसर भी मिला। वह 1966 से 1968 तक ऑल इंडिया रेडियो मुंबई के ऑडिशन बोर्ड के सदस्य रहे। 1984 में उन्होंने फीचर फिल्म 'जमुना किनारे' बनाई। इसके संगीत निर्देशन की जिम्मेदारी बखूबी निभाई। इस फिल्म के माध्यम से ब्रज भाषा, ब्रज संस्कृति व लोकसंस्कृति को लोगों तक पहुंचाया। पंडित रविशंकर के शिष्य रहे

डॉ. गर्ग बताते थे कि उन्होंने पांच वर्ष की आयु से ही संगीत सीखना शुरू कर दिया था। हाथरस के प्रसिद्ध तबला-वादक पंडित लोकमान व पंडित हरिप्रसाद शर्मा से तबला-वादन सीखा। अन्य प्रतिष्ठित गुरुओं से हारमोनियम, वायलिन, नृत्य और कंठ की शिक्षा भी प्राप्त की। इसके बाद जयपुर के पंडित शशिमोहन भट्ट ने उन्हें सितार-वादन में दीक्षित किया। हिदी में पीएचडी डॉ. गर्ग सितार वाद्ययंत्र बजाते थे। उन्होंने वर्ष 1954 में पंडित रविशंकर से संगीत सीखा। वह दिल्ली में बंगाली मार्केंट और पटौदी हाउस स्थित पंडित रविशंकर के घर पर संगीत सीखने जाया करते थे। करीब दो वर्ष बाद पंडित रविशंकर के अमेरिका जाने के बाद यह सिलसिला थम गया। डॉ. गर्ग वर्ष 1962 में वह मुंबई चले गए। वहां पंडित रविशंकर की पत्नी अन्नपूर्णा देवी से उन्होंने संगीत और सितार सीखा। संगीत से रोग चिकित्सा

पर लिखी थी पुस्तक

डॉ. लक्ष्मीनारायण गर्ग की किताब 'संगीत द्वारा रोग चिकित्सा' में ध्वनि, स्वर और राग से तमाम बीमारियों के इलाज के बारे में बताया गया था। 285 शीर्षकों की यह पुस्तक उनकी नायाब कृति है। म्यूजिक थेरेपी, पिडा उत्पत्ति, ध्वनि की उत्पत्ति, संगीत चिकित्सीय प्रभाव, राग चिकित्सा, रोगों में स्वरों का प्रयोग, रोग चिकित्सा में संगीत का प्रभाव आदि की विस्तृत जानकारी इस पुस्तक में दी गई है। पतंजलि योगपीठ के अध्यक्ष स्वामी बालकृष्ण ने इस पुस्तक की भूमिका लिखी थी। डॉ. गर्ग की चर्चित पुस्तकें

डॉ. गर्ग की वैसे हर पुस्तक की अपनी खासियत है। उन्होंने वर्ष 1954 में अपनी पहली किताब 'आवाज सुरीली कैसे करें' लिखी थी। यह एक नायाब किताब थी जिसमें आवाज को आकर्षक बनाने के आयुर्वेदिक, होम्योपैथिक और प्राकृतिक तरीके बताए गए थे। वर्ष 1970 में आई उनकी किताब 'कथक नृत्य' भी काफी चर्चित रही थी। वर्ष 2015 में आई उनकी 'भरतनाट्यम' नामक पुस्तक ने खूब ख्याति बटोरी थी। करीब 10 वर्ष की मेहनत के बाद यह किताब पूरी हुई थी। भरतनाट्यम और संगीत शब्दकोष के लिए उन्हें मानव संसाधन विकास मंत्रालय की ओर से सम्मानित किया गया था। 77 वर्षाें से संगीत मासिक पत्र

वर्ष 1934 में काका हाथरसी ने संगीत मासिक पत्रिका शुरू की थी। 20 साल बाद वर्ष 1955 से डॉ. गर्ग ने इसकी बागडोर संभाली। तब से वह इस पत्रिका को बिना किसी विज्ञापन के प्रकाशित कर रहे थे। वर्ष 2007 में पत्रिका के 75 वर्ष पूर्ण होने पर पा‌र्श्व गायिका लता मंगेशकर, तत्कालीन मुख्यमंत्री गुजरात नरेंद्र मोदी, राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिधिया, संगीत निर्देशक प्यारेलाल, प्रख्यात सितार वादक पंडित रविशंकर, कई राज्यों के राज्यपाल समेत 50 से अधिक नामचीन लोगों ने पत्र लिखकर उन्हें बधाई दी थी।

chat bot
आपका साथी