शहादत की याद में आंखें नम, मगर बहादुरी पर सीना चौड़ा

आज मनाया जाएगा कारगिल विजय दिवस शहीद के बेटों को भी भेजा देश सेवा में स्वजन को है उन पर गर्व।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 26 Jul 2021 05:19 AM (IST) Updated:Mon, 26 Jul 2021 05:19 AM (IST)
शहादत की याद में आंखें नम, मगर बहादुरी पर सीना चौड़ा
शहादत की याद में आंखें नम, मगर बहादुरी पर सीना चौड़ा

संसू, हाथरस : सोमवार को पूरा देश कारगिल विजय दिवस गर्व से मनाने जा रहा है। इस विजय में जनपद के जांबाजों ने जान की बाजी लगाई है। वे सादाबाद तहसील के रहने वाले थे, जहां हर गांव से लगभग हर तीसरे घर से एक बेटा देश की सेवा में लगा हुआ है। देश सेवा के जुनून में वर्ष 1999 में हुए कारगिल युद्ध में छह जवानों ने दुश्मनों को पछाड़ते हुए सर्वोच्च बलिदान दिया था। जब शहीदों के स्वजन से बात करते हैं तो उनकी आंखें नम होने के साथ सीना फख्र से चौड़ा हो जाता है।

कजरौठी क्षेत्र के गांव भूतिया के सत्यवीर सिंह बचपन से बहादुर तथा होनहार थे। उनका सपना था कि फौज में भर्ती होकर देश सेवा करना। 26 फरवरी 1995 को देश सेवा का सपना पूरा करते हुए भारतीय सेना के अंग बने। जाट रेजीमेंट में भर्ती होने के बाद गंगानगर सेक्टर में पहली तैनाती मिली। कारगिल बार्डर पर जंग छिड़ी तो जाट रेजीमेंट के जांबा•ा जवानों को सीमा पर भेजा गया, जिसमें सत्यवीर सिंह भी थे। युद्ध के दौरान दुश्मनों ने सत्यवीर सिंह पर ग्रेनेड से हमला किया। सत्यवीर सिंह जख्मी होकर भी लड़ते रहे। कई साथी शहीद हो गए थे। सत्यवीर सिंह ने 24 घंटे दुश्मनों से लोहा लिया। कई दुश्मनों को ढेर करने के बाद सात जुलाई 1999 को शहीद हो गए।

कंजौली ग्राम पंचायत के गांव नगला कल्हू के हसन अली के दिलोदिमाग में भी देश सेवा का जुनून था। पढ़ाई के साथ सेना में भर्ती होने को उद्देश्य बनाया। कड़ी मेहनत से 1997 में 22 ग्रेनेडियर आर्मी में भर्ती हुए। कारगिल युद्ध के दौरान हसन अली सरहद पर लड़ने गए। कई दिन तक वह साथियों के साथ लोहा लेते रहे। दुश्मन की सेना भारी पड़ती दिखी तो हसन अली ने हिम्मत नहीं हारी और आगे बढ़कर टक्कर ली। कई दुश्मनों को ढेर करने के बाद वह शहीद हो गए। हसन अली का बेटा अबू हसन 2017 में पिता के नक्शे कदम पर चलते हुए सेना में भर्ती होकर देश की सेवा कर रहा है।

नौगांव क्षेत्र के गांव नगला चौधरी के गजपाल सिंह के पिता आर्मी से सेवानिवृत्त हुए थे। देश सेवा का जुनून परिवार में था। स्वतंत्रता दिवस के मौके पर आर्मी को ज्वाइन किया। कश्मीर में रेकी के लिए तीन टोलियों को भेजा गया। एक टोली में गजपाल सिंह भी शामिल थे। 1999 में हुए कारगिल युद्ध में गजपाल सिंह 30 मई को जाट रेजीमेंट के साथ सीमा पर गए। वहां दुश्मनों से मोर्चा लिया और आठ पाकिस्तानी सैनिकों को धूल में मिलाते हुए शहादत का सम्मान प्राप्त किया।

बेदई के सत्यप्रकाश परमार का बलिदान कभी भुलाया नहीं जा सकता। 11 अप्रैल 1988 को भारतीय सेना की महार रेजीमेंट में शामिल हुए। कारगिल युद्ध से पहले सत्य प्रकाश परमार लेह में तैनात थे। सीनियर अफसरों के निर्देश पर वह टोली के साथ कारगिल पहुंचे। बढि़या कद काठी होने के कारण कमांडर ने उन्हें राकेट लांचर संभालने की जिम्मेदारी दी। एके-47 और राकेट लांचर के साथ सत्य प्रकाश की टोली ने सबसे ऊंची पहाड़ी पर मोर्चा संभाला। दुश्मनों की ओर से लगातार फायरिग हो रही थी। दोनों तरफ से फायरिग का जब कोई नतीजा नहीं निकला तो सत्य प्रकाश ने राकेट लांचर संभाला और दुश्मनों पर टूट पड़े। सत्य प्रकाश परमार ने शहीद होने से पहले 18 पाकिस्तानी सैनिकों को ढेर किया। सत्य प्रकाश का बेटा अमरदीप पिता से प्रेरणा लेकर भारतीय सेना में देश की सेवा कर रहा है।

क्षेत्र के गांव नगला दली के कमलेश सिसोदिया आर्मी में सूबेदार थे। बचपन में ही देश सेवा का प्रण ले लिया। पिता ने भी उनका हौसला बढ़ाया। 1979 में राजपूताना राइफल में शामिल हुए। कमलेश सिसोदिया की 1999 में जब पुंछ में तैनाती थी, तब कारगिल युद्ध के दौरान बहादुरी से दुश्मनों का सामना किया और अकेले आठ दुश्मनों को ढेर कर दिया। इसके बाद लड़ते-लड़ते हुए शहीद हो गए।

कजरौठी के गांव जंगला के कारगिल शहीद सुरेश कुमार बचपन से ही ़फौज में जाना चाहता थे। खेलकूद में काफी रुचि थी। वे 19 जाट रेजिमेंट बरेली में 1996 में भर्ती हुए थे और उनकी तैनाती श्री गंगानगर में थी। करगिल में दुश्मनों से लोहा लेते समय उनका पैर बर्फ से खिसक गया। बर्फ में दबने के कारण 14 दिसंबर 2001 को शहीद हो गए।

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