घर का करें कामकाज या बच्चे का कराएं इलाज

-14 दिन बच्चे के साथ रहना होता है उनकी माताओं को -इसलिए नहीं करा पा रहीं माताएं कुपोषित ब'चों का उपचार

By JagranEdited By: Publish:Sun, 23 Sep 2018 01:01 AM (IST) Updated:Sun, 23 Sep 2018 01:01 AM (IST)
घर का करें कामकाज या  बच्चे का कराएं इलाज
घर का करें कामकाज या बच्चे का कराएं इलाज

संवाद सहयोगी, हाथरस : कुपोषण से जूझ रहे तमाम बच्चों के अभिभावक पोषण पुनर्वास केंद्र (एनआरसी) पर इलाज सिर्फ इसलिए नहीं करा पा रहे हैं कि माताओं को 14 दिन साथ में एनआरसी पर रहना जरूरी होगा। ऐसे में वह अन्य बच्चों और घर के कामकाज को किसके हवाले छोड़कर आएं।

शासन के निर्देश के बाद जिला अस्पताल में पोषण पुनर्वास केंद्र की स्थापना की गई है। अभिभावक कुपोषित बच्चों को लेकर अभी भी लापरवाह बने हुए हैं। बच्चों को उपचार की सख्त जरूरत होने के बाद समय व मजबूरियां गिनाकर बच्चों को एनआरसी में भर्ती नहीं कराते। एनआरसी पर बच्चों को 14 दिन के लिए भर्ती रखा जाता है। बच्चों के नियमित खानपान की जिम्मेदारी विभाग की होती है, साथ ही अभिभावक का खानपान का खर्चा भी पोषण पुनर्वास केंद्र के माध्यम से प्रशासन वहन करता है। जिले में अभी भी 7088 से ज्यादा बच्चे लाल श्रेणी में हैं। विभाग का दावा है कि राज्य पोषण मिशन के माध्यम से चल रही विभिन्न योजनाओं से 5194 से ज्यादा बच्चों को लाल श्रेणी से बाहर निकाला जा चुका है। वहीं कुपोषण से निजात दिलाने में अभिभावकों द्वारा बरती जा रही लापरवाही के खिलाफ प्रशासन ने सख्ती बरतने का मन बनाया है।

गुरुवार को एडीएम रेखा एस चौहान व डीपीओ मुन्नी दिवाकर ने पोषण पुनर्वास केंद्र का निरीक्षण किया तो वहां केवल पांच बच्चे भर्ती मिले। पांच बेड खाली थे। बच्चों के प्ले रूम पर ताला लटका था। केयर टेकर रचना कुमारी अपने बच्चे के साथ मिली। रसोईघर पर रसोइया राजकुमारी ड्यूटी पर मिली। यहां तैनात कर्मियों को दूसरे वार्ड में ड्यूटी पर लगा दिए जाने की जानकारी मिली। इसे गंभीरता से लेते हुए जिलाधिकारी को रिपोर्ट दी है। वर्जन

पोषण पुनर्वास केंद्र की स्थापना बच्चों को कुपोषण से निजात दिलाने के लिए की गई है, लेकिन वे लाभ नहीं ले रहे हैं। सुपरवाइजर गांव-गांव घूमकर गंभीर बच्चों को एनआरसी में भर्ती कराने की सलाह दे रहे हैं, लेकिन बच्चों की मां दूसरे बच्चों की देखभाल व परिवार की जिम्मेदारियां बताकर बच्चों को यहां भर्ती कराने से बच रही हैं।

-मुन्नी दिवाकर, जिला कार्यक्रम अधिकारी, बाल विकास एवं पुष्टाहार

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