मोक्ष के इंतजार में कलश में कैद अस्थियां
-अंतिम मुक्ति के लिए अस्थियों का गंगा में विसर्जन होना जरूरी -कोरोनाकाल में मौत होने के बाद तमाम लोगों को अपनों का कांधा भी नहीं मिला
हरदोई : हिदू रीति रिवाज में यह मान्यता है कि अंतिम मुक्ति के लिए अस्थियों का गंगा या अन्य नदियों में विसर्जन किया जाता है, लेकिन शहर के दाह संस्कार स्थल पर रखी अस्थियां मोक्ष का इंतजार कर रही हैं। उनके स्वजन कोरोना काल समाप्त होने के बाद भी आज तक अस्थि विसर्जन के लिए कलश लेने नहीं आए हैं।
कोरोना संक्रमण काल में बहुत से लोग असमय ही काल के गाल में समा गए। संक्रमण के भय से बहुतों को अपनों ने कांधा तो दूर की बात है मुखाग्नि तक नहीं दी। किसी तरह शव को दाह संस्कार स्थल तक पहुंचा दिया और वहां पर रहने वाले व्यक्ति ने ही उनका अंतिम संस्कार कर दिया। स्वजन अस्थियों के लिए कलश तो दे आए और दाह संस्कार स्थल पर रहने वाले मुन्ना ने कलश में रीति रिवाज के साथ अस्थियों को भी रख दिया, लेकिन स्वजन उन्हें गंगा में प्रवाहित करने की याद नहीं आई। दाह संस्कार स्थल के एक कमरे में आज भी एक सैकड़ा से अधिक कलश में रखी अस्थियां मोक्ष का इंतजार कर रही हैं। मुन्ना के पिता जागेश्वर भी दाह संस्कार स्थल पर रहते थे। उनकी मृत्यु के बाद से मुन्ना रहता है। मुन्ना ने बताया कि जो भी कलश दे जाता है उसके स्वजन की अस्थियों को कलश में रख दिया जाता है। कोरोना काल में बहुत से लोग अस्थियों को लेने नहीं आए। कई कलश रखे-रखे टूट गए तो तालाब में अस्थियों को प्रवाहित कर दिया। बोरी में भी भरी हैं अस्थियां : मुन्ना ने बताया कि बहुत से लोग कलश नहीं दे गए, लेकिन कभी तो वह अस्थियां लेने के लिए आएंगे। इसलिए अस्थियों को बोरी में भी भरकर रख देते हैं, जिसे मृतक के स्वजन कभी ले जाएं।