मुद्दा: सियासत के लिए फीके रहे संडीला के लड्डू

पंच लाइन फींका हो गया विश्ड्डुओं की गुणवत्ता अपने मूल रूप में वापस लौट सकती है

By JagranEdited By: Publish:Thu, 18 Apr 2019 10:17 PM (IST) Updated:Thu, 18 Apr 2019 10:17 PM (IST)
मुद्दा: सियासत के लिए फीके रहे संडीला के लड्डू
मुद्दा: सियासत के लिए फीके रहे संडीला के लड्डू

नेता चुनाव जीतकर लड्डू ही खाते और खिलाते हैं। लड्डू का नाम आए और संडीला की बात न हो, ऐसा हो नहीं सकता। संडीला के लड्डू की खास पहचान होती थी। दूर दूर से लोग लड्डू मंगाते थे। कितनी भी रात हो ट्रेन में लड्डू की आवाज आते ही यात्री समझ लेते थे कि संडीला आ गया। पर अफसोस की बात सियासत के लिए लड्डू की मिठास फीकी ही रही। नेता आए, सरकारें आईं पर ऐसी कोई योजना नहीं बनाई जा सकी जिससे कि यहां के लड्डू की प्रसिद्धि बनी रहती और इस काम में लगे लोगों की तरक्की होती। समय के साथ धीरे धीरे लड्डू की पहचान भी कम होती जा रही है और तो और काफी संख्या में हलवाई भी इन्हें बनाना बंद करते जा रहे हैं। हलवाइयों का कहना है कि अगर लड्डू की तरफ भी किसी ने ध्यान दिया होता, या अभी भी ध्यान दे तो संडीला की पहचान बनी रहे और लोगों को रोजगार भी मिलता रहे। जागरण संवाददाता, हरदोई: संडीला का प्रसिद्ध लड्डू धीरे धीरे स्वाद खोता जा रहा है। कभी बड़ी-बड़ी हांड़ियों में बिकने वाला यह लड्डू अब कुल्हड़ों में बिक रहा है। बेसन की बूंदी से निर्मित यह लड्डू चीनी का श्वेत आवरण ओढे़ और केवडे़ की सुगंध बिखेरता बरबस लोगों को आकृष्ट कर लेता। नगर के बस स्टैंड या रेलवे स्टेशन पर इसकी गूंज हमेशा सुनाई देती। संडीला स्टेशन से गुजरने वाले दूर-दूर स्थानों के यात्री इन लड्डुओं को खरीदने से नहीं चूकते। अनदेखी और बढ़ी मंहगाई से लड्डुओं पर संकट के बादल छा गए। पहले यह लड्डू देसी घी व मेवों के साथ बनाया जाता था, लेकिन अब बिकने वाले लड्डू में पुराना स्वाद नहीं है। पूर्व में इन लड्डुओं को हांडी में बेचने का प्रचलन था, कितु अब नगर की दुकानों में इन हांड़ियों का स्थान दफ्ती के डिब्बों ने ले लिया है, जबकि स्टेशन पर बड़ी-बड़ी हांड़ियों ने कुल्हड़ों का रूप ले लिया है। आजादी से पूर्व संडीला में लड्डू का व्यवसाय खूब फला फूला, कितु आजादी के बाद इस पर ग्रहण लगता चला गया। बुजुर्ग हलवाई बताया करते थे कि जवाहरलाल नेहरू ने लड्डू की इच्छा जताई थी। कांग्रेसी व पालिका के चेयरमैन स्व. चौधरी बजहत अली ने प्रसिद्ध हलवाई मुल्लू के पुत्र भोगई से लड्डू तैयार कराकर तथा उन्हें बड़ी-बड़ी हांड़ियों में रखकर पंडित जवाहर लाल नेहरू के सामने पेश किए। तब उन लड्डुओं को प्रधानमंत्री के अलावा रफी अहमद किदवई, मौलाना अब्दुल कलाम आजाद, लाल बहादुर शास्त्री आदि कैबिनेट मंत्री ने खाया तथा प्रसन्न होकर भोगई हलवाई को प्रशंसा पत्र भेजा था। इन लड्डुओं की विशेषता यह थी कि यह छह माह तक खराब नहीं होते थे और हर समय खाने में तरोताजा लगते थे। लड्डू की पहचान बनाए रखने के लिए राम बेगमगंज में ग्रामीण महिला एवं बालोत्थान कार्यक्रम के तहत प्रशिक्षण केंद्र खुलवाया था लेकिन वह भी समाप्त हो गया। आजादी के बाद नगर के कुछ हलवाइयों ने मिठाई बनाने का व्यवसाय तो बना रखा, लेकिन लड्डुओं की गुणवत्ता व विशेषता बरकरार नहीं रख सके। श्री राम जायसवाल का कहना है कि यदि नेता और प्रशासन यहां के लड्डू निर्माताओं को प्रोत्साहन प्रदान करें तो लड्डुओं की गुणवत्ता अपने मूल रूप में लौट सकती है। हलवाई बोले

रामजी जायसवाल का कहना है कि अब लड्डू की तरफ ज्यादा ध्यान नहीं दिया जा रहा है। अशोक चौरसिया के अनुसार लड्डू में लागत बहुत आती है, लेकिन उतनी कीमत नहीं मिल पाती। रामबाबू गुप्ता का कहना है कि लड्डू बनाने के लिए शुद्ध कच्चा माल नहीं मिल पाता है। रमेश राठौर बोले कि अब तो रेडीमेड बूंदी के लड्डू बिकने लगे हैं जोकि सस्ते पड़ते हैं। पुराने लड्डू की पहचान वापस लाना जरूरी है। हलवाइयों का कहना है कि अगर इसकी तरफ सरकार ध्यान दे, तो पुरानी पहचान बनी रही।

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