शराब माफिया के लिए अड्डा बना पतित पावनी गंगा किनारे का जंगल
संवाद सहयोगी गढ़मुक्तेश्वर पतित पावनी गंगा की तलहटी अब कच्ची शराब माफियाओं के चंगुल मे
संवाद सहयोगी, गढ़मुक्तेश्वर
पतित पावनी गंगा की तलहटी अब कच्ची शराब माफियाओं के चंगुल में है। खादर क्षेत्र में कई अवैध शराब बनाने की भट्टियां सुलग रही हैं और नगर ही नहीं जिला मुख्यालय और पड़ोसी जनपदों तक इसकी खुलेआम सप्लाई हो रही है।
गंगाघाट कच्ची शराब के लिए सदियों से बदनाम रहा है। गंगा किनारे स्थित जंगल में दर्जनों भट्टियां संचालित हो रही हैं। जिनसे प्रतिदिन 1000 लीटर से ज्यादा अवैध शराब की पैदावार होती है। यह शराब जनपद के अलावा मेरठ, अमरोहा, बुलंदशहर समेत कई जनपदों में इसकी सप्लाई की जा रही है। ऐसा नहीं कि अधिकारियों को इसकी जानकारी नहीं, बल्कि अधिकारी मिलीभगत के चलते किसी बड़ी कार्रवाई को अंजाम नहीं देते। ऊपर से फटकार लगने पर चंद छोटे कारोबारियों को गिरफ्त में लेकर पूरे मामले की इतिश्री कर ली जाती है।
पारा जैसे-जैसे बदलता है, नशे का अवैध कारोबार बढ़ता जाता है। जानकारों की मानें तो सर्दियों का मौसम कच्ची शराब की पैदावार के लिए एकदम सही समय है। गंगा की तलहटी में गढ्डा खोदकर उसमें पालीथीन बिछाई जाती है। इसके बाद महुआ (शराब बनाने में इस्तेमाल होता है)डालकर उसमें पानी भर दिया जाता है।
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खादर के जंगल की आबोहवा शराब माफियाओं के लिए काफी मुफीद है। पुलिस हो चाहे आबकारी विभाग की कार्रवाई, माफियाओं एवं उनके गुर्गों को लापता होने में समय नहीं लगता। पुलिस टीम आते देख माफिया और उनके गुर्गे गंगा पार कर पड़ोसी जनपद में शरण ले लेते हैं और पुलिस देखती रह जाती है।
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अब होता है जहर का कारोबार
कच्ची शराब का यह कारोबार अब केवल नशे का नहीं रहा। शराब माफिया लोगों की आदतों में इस नशे को शामिल करने के लिए जो वस्तुएं मिला रहे हैं, उससे यह किसी खतरनाक जहर से कम नहीं। एक पुराने माफिया के अनुसार महुआ को सड़ाने के बाद उसे भट्ठी पर चढ़ाया जाता है। इसके बाद नली लगाकर बूंद-बूंद शराब टपकाई जाती है। अधिक नशीला बनाने के लिए इस शराब में नौसादर, चूना, यूरिया, डिटरजेंट पाउडर व हानिकारक केमिकल भी डाले जाते हैं।
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क्या कहते हैं अधिकारी
अवैध शराब पकड़ने के लिए समय-समय पर छापेमारी की जाती है। साल भर में गंगाघाट से करीब 10 हजार लीटर अवैध शराब के साथ दर्जनों व्यक्तियों को गिरफ्तार किया गया। अवैध शराब किसी भी हाल में न बनने और न ही बिकने दी जाएगी।
-आशुतोष दूबे , आबकारी निरीक्षक