जनपदीय सीमा विवाद निस्तारण की कवायद फिर चलेगी
इमरान अली गढ़मुक्तेश्वर हापुड़ और अमरोहा के बीच करीब चार दशकों से चली आ रही जनपदी
इमरान अली, गढ़मुक्तेश्वर :
हापुड़ और अमरोहा के बीच करीब चार दशकों से चली आ रही जनपदीय सीमा विवाद निस्तारण की कवायद फिर से शुरू होगी, जिसको लेकर राजस्व परिषद ने मेरठ और मुरादाबाद आयुक्त को जरूरी दिशा-निर्देश जारी किए हैं।
मेरठ और मुरादाबाद के बीच जनपदीय सीमा विवाद की समस्या कई दशकों से चलती आ रही थी, जो हापुड़ और अमरोहा जनपद का सृजन होने पर इनके हिस्से में आ गई थी। चार साल पहले गढ़ और हसनपुर के तहसील प्रशासन समेत राजस्व टीम के बीच ब्रजघाट डाक बंगले में उच्च स्तरीय बैठक हुई थी, जिसमें सीमा विवाद से जुड़े गांवों के किसान भी बुलाए गए थे। दोनों ही तहसीलों के अधिकारी और किसान सीमा विवाद से जुड़ी भूमि को अपनी बताने की जिद पर अड़े रहे थे, जिसके समर्थन में दोनों ने ही भू-मानचित्र भी प्रस्तुत किए थे। भू मानचित्रों में असामनता होने पर दोनों तहसीलों के अधिकारियों ने सीमा विवाद से जुड़े गांवों के जंगल की पैमाइश को एकमात्र विकल्प बताकर विवादित भूमि की पैमाइश पर सहमति जताई थी। परंतु भू-अभिलेखों में बड़ी असमानता होने से अभी तक पैमाइश संभव नहीं हो पाई है। परंतु सीमा विवाद निस्तारण होने तक दोनों क्षेत्रों के किसानों को गंगा नदी के गैप वाली भूमि में कोई भी काम और फसल न उगने की सख्त हिदायत दी गई थी। हालांकि, कुछ दिनों बाद ही दोनों जनपदों के किसानों ने गैप वाली भूमि में फिर से खेतीबाड़ी प्रारंभ कर दी थी। जिससे फसलों के कटान को लेकर उनके बीच तनाव व्याप्त होने पर कई बार टकराव भी हो चुका है।
जनपदीय सीमा विवाद के चलते बुआई से लेकर फसलों की कटाई के दौरान किसानों में होने वाले खूनी संघर्ष पर अंकुश लगाने को राजस्व परिषद के अफसर फिर से सक्रिय हो गए और मेरठ और मुरादाबाद आयुक्त को कड़े दिशा-निर्देश दिए हैं कि जनपदीय सीमा विवाद की असल जड़ को खोजकर उसकी पारदर्शी और निष्पक्ष में ढंग में बहुत जल्द निस्तारण करने की प्रक्रिया प्रारंभ की जाए।
एसडीएम विजय वर्धन तोमर का कहना है कि राजस्व परिषद अथवा आयुक्त स्तर से कोई भी दिशा निर्देश मिलते ही उस पर अनुपालन कराया जाएगा।
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जलधारा में होने वाले बदलाव से होती है दिक्कत
बरसात के मौसम में गंगा नदी की जलधारा में अक्सर बदलाव हो जाता है, जिससे नदी का बहाव भी प्रभावित हो जाता है। जलधारा में बदलाव होने से गंगा कभी इस तरफ तो कभी दूसरी साइड में कटान कर देती है, जिसके चलते जनपदीय सीमा विवाद की गंभीर समस्या पैदा हो गई है। गाजियाबाद और मुरादाबाद जनपदों के बीच चली आ रही सीमा विवाद की समस्या हापुड़ और अमरोहा जनपद का सृजन होने पर उनके हिस्से में आ गई है।
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समझौते को राजस्व परिषद ने मंजूरी नहीं दी।
वर्ष 1992 को ब्रजघाट के डाक बंगले में मेरठ, मुरादाबाद के कमिश्नर, डीएम और राजस्व टीमों के बीच बैठक हुई थी, जिसमें संबंधित किसानों के सुझाव भी लिए गए थे। गंगा नदी की जलधारा को जनपदों की सीमा मानते हुए दोनों साइडों में पत्थर के पिलर लगवाने पर सहमति बनी थी, लेकिन राजस्व परिषद लखनऊ ने इस समझौते पर अपनी स्वीकृति की मुहर नहीं लगाई थी, जिससे यह समस्या आज भी बरकरार है।
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हाईकोर्ट में अवमानना का वाद भी चला था।
गढ़ पालिका के पूर्व उपाध्यक्ष शेरसिंह कर्दम ने वर्ष 2001 में सीमा विवाद निस्तारण को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी, जिस पर हाईकोर्ट ने तत्काल सीमा निस्तारण का आदेश दिया था। अमल न होने पर 2002 में राजस्व परिषद लखनऊ के सचिव सहित संबंधित अधिकारियों को पक्षकार बनाकर अवमानना वाद भी दायर किया था, लेकिन इतना सब कुछ होने के बाद सीमा विवाद का निस्तारण नहीं हो पा रहा है।