हापुड़ की सुमन को मिलेगा दादा साहेब फाल्के आइकान अवार्ड

जागरण संवाददाता हापुड़ जनपद के गांव काठीखेड़ा निवासी सुमन ने एक बार फिर जिलेवासियों क

By JagranEdited By: Publish:Wed, 18 Nov 2020 07:32 PM (IST) Updated:Wed, 18 Nov 2020 07:32 PM (IST)
हापुड़ की सुमन को मिलेगा दादा साहेब फाल्के आइकान अवार्ड
हापुड़ की सुमन को मिलेगा दादा साहेब फाल्के आइकान अवार्ड

जागरण संवाददाता, हापुड़ :

जनपद के गांव काठीखेड़ा निवासी सुमन ने एक बार फिर जिलेवासियों को गौरवान्वित किया है। उन्हें लघु फिल्म पीरियड एंड आफ सेंटेंस में प्रमुख भूमिका के लिए दादा साहब फाल्के आइकान अवार्ड देने की घोषणा की गई है। उन्हें यह पुरस्कार मुंबई में 24 नवंबर को आयोजित होने वाले समारोह में दिया जाएगा। संस्था के संस्थापक का पत्र मिलने के बाद सुमन के परिवार और जिलेवासियों में खुशी है।

सुमन ने बताया कि दादा साहब फाल्के आइकान पुरस्कार की चयन समिति ने उन्हें फिल्म पीरियड एंड आफ सेंटेंस में किए गए शानदार अभिनय के लिए दादा साहब फाल्के आइकान पुरस्कार देने की घोषणा की है। उन्हें यह पुरस्कार 24 नवंबर को मुंबई में आयोजित होने वाले पुरस्कार वितरण समारोह में दिया जाएगा। चयन समिति के चेयरमैन कल्याणजी जाना ने उन्हें पत्र लिखकर इस संबंध में जानकारी दी है। वह 21 नवंबर को मुंबई के लिए रवाना होंगी।

उन्होंने बताया कि वह वर्ष 2010 में एक संस्था से जुड़ी। उन्होंने सेनेटरी नेपकिन बनाने के लिए गांव की महिलाओं को प्रेरित किया था। इन महिलाओं ने एक समूह बनाकर नेपकिन बनाने का काम शुरू कर दिया। ये सभी महिलाएं नेपकिन बनाकर एनजीओ को देती हैं, जिसके बदले में एनजीओ एक निश्चित राशि देती है। एनजीओ के प्रयास से महिलाओं को सेनेटरी नेपकिन का प्रयोग करने और प्रेरित करने के लिए एक लघु फिल्म बनाई गई थी। उस फिल्म में उन्होंने प्रमुख भूमिका निभाई थी। इस फिल्म को पिछले वर्ष 25 फरवरी को अमेरिका के लास एंजिल्स में आयोजित एक कार्यक्रम में आस्कर अवार्ड भी दिया जा चुका है। लोग बोलते थे, बेशर्म हो गई है

सुमन कहती हैं कि सेनेटरी पैड की यूनिट में काम शुरू किया तो बहुत परेशानी झेलनी पड़ी। लोग कहते थे कि लड़की बेशर्म हो गई है। इसको दूसरा काम नहीं मिला। हालांकि, जब फिल्म को आस्कर मिला तो ताना मारने वाले लोग स्वागत करने को उमड़ पड़े। फिल्म ने शार्ट सब्जेक्ट डाक्यूमेंट्री वर्ग में आस्कर अवार्ड जीता। तब से मेरे प्रति लोगों की सोच में बड़ा बदलाव आया है। क्या है इस फिल्म में

यह फिल्म गांव काठीखेड़ा की बहु सुमन की जिदगी पर आधारित है। सुमन ने बताया कि गैर सरकारी संस्था द्वारा उनके यहां सेनेटरी पैड की यूनिट 2017 में लगाई गई। उन्होंने कल्पना तक नहीं की थी कि यह काम उन्हें पूरी दुनिया में मशहूर बनाएगा। लोग तरह-तरह की बातें करते थे और कोई दूसरा कार्य करने की सलाह देते थे। वह सोचती थीं कि जब एक महिला होने के बावजूद वह सेनेटरी पैड पर सार्वजनिक रूप से बात कर सकती हैं तो दूसरी महिलाएं हिचकिचाती क्यों हैं। जबकि, यह महिलाओं के स्वास्थ्य एवं सशक्तीकरण से जुड़ा मसला है। वह कहती हैं कि मुझे परिवार का हमेशा सहारा मिला। पति कहते थे कि लोगों की बातें मत सुनो। जो ठीक लगे, वही करो।

आस्कर के बारे में सोचकर नहीं बनाई थी फिल्म

सुमन कहती हैं कि उन्होंने आस्कर के बारे में सोचकर काम शुरू नहीं किया था। उनकी कोशिश है कि महिलाएं सौ प्रतिशत सुरक्षित एवं निरोग रहें। आस्कर मिलने से यह फायदा हुआ कि अब सभी लोग हमें पहचानने एवं हमारी बातों को गौर से सुनते हैं। अब पहले की तरह परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि जब वह टीम के साथ आस्कर पुरस्कार समारोह में गई तो सामान्य महिला थीं। तीन मार्च को जब उनकी टीम अमेरिका से वापस आ रही थी तो सुरक्षा दी गई थी। कौन थे दादा साहेब फाल्के

दादा साहेब फाल्के ने भारत की पहली साइलेंट फिल्म राजा हरिश्चंद्र बनाई थी। फाल्के का जन्म अप्रैल 1870 में एक मराठी परिवार में हुआ था। उन्होंने नासिक में पढ़ाई की। इसके बाद वे मुंबई में सर जेजे स्कूल आफ आर्ट स्कूल में नाटक और ट्रेनिग ली। इसके बाद वे जर्मनी चले गए। वहां उन्होंने फिल्म बनाना सीखा। वहां से लौटने के बाद उन्होंने पहली फिल्म हरिश्चंद्र बनाई। तब से यह पुरस्कार फिल्मी जगत के सितारों को दिया जाता है।

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