Hapur Neem River News: नीम नदी से भूजल के साथ पर्यावरण भी होगा शुद्ध, दैनिक जागरण की मुहिम ला रही रंग

सभी चिकित्सकों ने एक मत होकर नदी पर श्रमदान करने के लिए कहा। गोष्ठी में डा. आलोक अग्रवाल डा. एसपी सिंह डा. संधाशु सैनी डा. प्रमोद तेवतिया दुष्यंत त्यागी अहमद फराज दीपक चौधरी लोकेश चौधरी भी शामिल हुए।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Fri, 09 Apr 2021 01:06 PM (IST) Updated:Fri, 09 Apr 2021 01:07 PM (IST)
Hapur Neem River News: नीम नदी से भूजल के साथ पर्यावरण भी होगा शुद्ध, दैनिक जागरण की मुहिम ला रही रंग
देवनंदनी अस्पताल के चिकित्सक श्रमदान के लिए तैयार

धरती प्यासी चीखती,

नहीं फसल पर आब।

फिर से जीवन मांगते,

पोखर-नदी-तालाब।।

मनोज त्यागी, हापुड़। डा. अशोक मैत्रेय की पंक्तियां हमें आज के हालात पर चेताती हैं कि यदि अब भी नहीं जागे तो जिस तरह से प्रकृति जीवन मांग रही हैं उसी तरह मानव जाति को भी जीवन के लिए गुहार लगानी पड़ेगी। नीम नदी को बचाने के लिए देव नंदनी अस्पताल के चिकित्सकों ने गोष्ठी का आयोजन किया। गोष्ठी में नीम नदी से जुड़े मदन सैनी ने चिकित्सकों को बताया कि नीम नदी के जीवित होने से भूजल स्तर सुधरेगा ही और पेड़ पौधे नदी के किनारे लगाने से पर्यावरण भी शुद्ध होगा।

नदी जिन गांवों के पास से निकली है वहां तालाब हैं और उन्हें भरने के बाद ही नदी आगे बढ़ती है। जाहिर है कि ये नदी गांवों के भूजल स्तर को सुधारने में बड़ी भूमिका निभाती है। इसलिए इसे वैज्ञानिक नदी भी कहा जाता है। आप सभी इसे पुनर्जीवित करने के लिए नदी में श्रमदान करें। इस पर सभी चिकित्सकों ने एक मत होकर नदी पर श्रमदान करने के लिए कहा। गोष्ठी में डा. आलोक अग्रवाल, डा. एसपी सिंह, डा. संधाशु सैनी, डा. प्रमोद तेवतिया, दुष्यंत त्यागी, अहमद फराज, दीपक चौधरी, लोकेश चौधरी भी शामिल हुए।

देवनंदनी अस्पताल के चेयरमैन डा. श्याम कुमार ने बताया कि कुछ समय पहले मुझे बुलंदशहर जिले के स्याना कस्बे में जाना हुआ। तब बातों में नीम नदी के बारे में पता चला। लोगों ने बताया कि यह निचला क्षेत्र है। यहां पानी भरने पर नीम नदी के द्वारा ही बहकर जाता था। अब काफी समय से इसकी सफाई भी नहीं हुई है। अब दैनिक जागरण ने इसको लेकर मुहिम छेड़ी है, तो मेरे लिए तो यह आनंद की बात है। जब भी मुझे मौका मिलेगा मै नदी पर जाकर श्रमदान करूंगा।

देवनंदनी अस्पताल के मैनेजिंग डायरेक्टर डा. विमलेश शर्मा ने बताया कि कई बार जब घूमने के लिए जाते हैं, तो रास्ते में कई नदियां पड़ती हैं। देखकर लगता है कि ये सूखी क्यों हैं। पर अब जानकारी मिली कि ये बरसाती नदियां हैं। अब जिस तरह से पानी का लेबल कम हो रहा है, तो नदियों का सूखना भी एक कारण है। हम लोग दैनिक जागरण के इस अभियान से जुड़कर नीम नदी को पुनर्जीवन देने के लिए काम करेंगे।

नीम नदी के इतिहास से जुड़ी पौराणिक और जनश्रुतियां

पौराणिक और जनश्रुतियों के आधार पर नदी पुत्र रमन कांत त्यागी द्वारा खोजा गया नीम नदी का इतिहास को लेकर दैनिक जागरण ने सीरिज शुरू की है। बृहस्पतिवार के अंक से आगे की जानकारीः-

नीम नदी किनारे के जलाशयों का महत्व:

भारतीय मनीषियों ने प्रत्येक पदार्थ के लिए अत्यन्त सारगर्भित शब्दों का चयन किया है। एक-एक शब्द के नैपथ्य में उस पदार्थ के गुणों एवं इतिहास का समावेश है। जहां एक पदार्थ के लिए अन्य समानार्थी अथवा पर्यायवाची शब्दों का प्रयोग किया गया है वहां वे भिन्न-भिन्न गुणादि के बोधक हो जाते हैं। उदाहरणार्थ जब जल को पीने के रूप में प्रयुक्त किया जाता है तो उसका नाम ‘पानी’ होता है, जिससे सृष्टि उत्पन्न हुई हो या जीवन दाता के रूप में ‘जल’, अम्बर से वर्षा के रूप में बरसता हुआ ‘अम्बु’, जब विकास करता या ऊपर को उठाता है तो ‘अप’, ईश्वर के रूप में ‘आप’, देवता के रूप में ‘वरूण’, विष्णु से उत्पन्न होने के कारण ‘नार’, शक्ति के रूप में ‘नीर’, जिसमें वारिज अर्थात कमल एवं मछली रह सकते हैं वह वारि, तथा जब क्षुधा पूर्ति का कोई साधन न हो अथवा किसी बीमारी की कोई औषधी न हो तब तो$यह=‘तोय’ (पानी)। अर्थात जब पानी के अतिरिक्त कोई सहारा न हो तो उस समय पानी को कहा जायेगा ‘तोय’ आदि। ठीक इसी प्रकार जलाशय, तालाब, जौहड़, जौहड़ी, कुण्ड, सरोवर, पोखर आदि शब्द हैं। सभी प्रकार के जल स्रोत जलाशय के अन्तर्गत समाहित हो जाते हैं। जलाशय अत्यधिक महत्वपूर्ण शब्द है जिसका अर्थ होता है। जल$आश्रय=जलाशय। जहां जल का आश्रय हो वहीं जलाशय है। यहां इसके विभिन्न अर्थ स्पष्ट होते हैं- जहां जल आश्रय लेता अथवा एकत्रित रहता हो। जो जल अर्थात जीवन का आश्रय दाता हो। जहां जल का आश्रय अथवा सहारा लिया जाता हो।

यद्यपि गौण अर्थ में तीनों ही समानार्थी वाक्य हैं लेकिन गूढार्थ में तीनों पृथक-पृथक। हम यहां केवल तृतीय अर्थ की ही बात करेंगे। जहां जीवन को आश्रय (सहारा या जीवनदान) मिलता हो वह जलाशय कहलाता है। चाहे यह नदी, तालाब, कुआं, हैण्डपम्प अथवा प्याऊ ही क्यों न हो। जीवन के आश्रय के लिए जल, वृक्ष (वनस्पतियां, फल आदि), पशुपक्षी एवं पूजन स्थल (मन्दिर आदि) आवश्यक तत्व होते हैं। आप प्राचीन तालाबों जंगल में स्थित नल एवं कुओं आदि को देखिये वहां पर जीवन आश्रय के उपरोक्त सभी पदार्थ उपस्थित होंगे। जंगलों में नल तो समाप्त हो ही गये हैं लेकिन प्राचीन जल स्थानों पर आज भी विश्राम स्थल दृष्टि गोचर हो जाते हैं। इसीलिए नदियों के तटों पर संस्कृतियां विकसित हुईं। जहां नदियों का होना असम्भव था वहां तालाब आदि बनाये गये। तालाबों-जलाशयों के अनेक महत्वों के साथ एक मुख्य महत्व यह भी था कि इनमें पानी का अपव्यय अथवा बर्बादी नहीं होती थी। आगे की जानकारी के लिए कल का दैनिक जागरण पढ़ेंः-

डा. गोविंद सिंह ने बताया कि मै सोचता हूं कि नीम नदी भी कभी कल-कल करके बहती होगी और आज सूख गई है। एेसी तो तमाम नदियां होंगी जिन पर लोगों ने कब्जा किया हुआ होगा उनके भी पुनर्जीवन के लिए काम करना चाहिए। मै दैनिक जागरण को शुभकामनाएं देता हूं कि उन्होंने पहल करके नीम नदी को बचाने के लिए प्रयास किया। हम भी नीम नदी में श्रमदान करेंगे।

डा. संजय राय ने बताया कि मैने पढ़ा है कि नीम नदी के किनारे बहुत बड़ा नीम का जंगल था। नीम के पत्ते और टहनियां नदी में बहकर जाते थे और जब किसी को चर्म रोग आदि होता था, तो इस नदी में नहाने से ठीक हो जाता था। समय बदलने के साथ लोग इस पर अतिक्रमण करते गए और जंगल भी खत्म होता गया। नदी को पुनर्जीवन देने के लिए हम भी इस मुहिम में साथ हैं।

डा. हरिओम सिंह ने बताया कि हम लोग नीम नदी पर जाकर पौधे लगाएंगे। ताकि नदी और पेड़ों के जरिए ज्यादा से ज्यादा पानी रिचार्ज हो और भूजल स्तर सुधरे। आने वाला समय पानी के लिए संकट पैदा करेगा। यदि हम अभी नहीं जागरूक हुए तो वह दिन दूर नहीं है जब पानी का संकट यहां भी पैदा हो जाएगा। भले ही हम गंगा यमुना के दोआबा में रहते हों।

डा. ऋतु जैन ने बताया कि पानी की किल्लत लगातार बढ़ती जा रही है। यह समस्या पूरे देश में बढ़ रही है। एक समय था जब गंगा में बहुत पानी होता था। अब उसमें भी लगातार पानी की कमी होती जा रही है। नीम नदी को पुनर्जीवित करना बहुत जरूरी है। दैनिक जागरण ने बहुत अच्छी मुहिम शुरू की है उसे साधुवाद।

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