प्लान से संबंधित : गन्ने की खेती छोड़ अपनाई केले की खेती, बढ़ाई आमदनी
जागरण संवाददाता हापुड़जनपद के किसानों का गन्ने की फसल से मोहभंग हो रहा है। वेस्ट यूप
जागरण संवाददाता, हापुड़:
जनपद के किसानों का गन्ने की फसल से मोहभंग हो रहा है। वेस्ट यूपी के किसानों में फूलों के साथ फलों की खेती का भी रुझान बढ़ रहा है। इससे किसानों की आमदनी में इजाफा होने के साथ शुगर मिलों के धक्के खाने से भी निजात मिल गई है। किसान केले की खेती कर प्रगतिशील हो रहे हैं।
गढ़मुक्तेश्वर तहसील क्षेत्र के गांव दत्तियाना निवासी रजनीश त्यागी पहले गन्ने की खेती करते थे, लेकिन चीनी मिल से उन्हें कभी समय पर भुगतान नहीं मिला। परेशान होकर रजनीश ने गन्ने की खेती छोड़ दी और केले की खेती को अपनाया। आठ सालों की कड़ी मेहनत के बाद आज रजनीश न सिर्फ अपने क्षेत्र में सबसे अच्छी गुणवत्ता का केला उत्पादन कर रहे हैं, बल्कि अच्छी आमदनी भी कर रहे हैं। इतना ही नहीं, रजनीश दूसरे किसानों को भी सहफसली खेती के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। वह अपने क्षेत्र में बड़े पैमाने में केले का उत्पादन करने में आगे हैं।
वहीं, धौलाना निवासी जितेंद्र सिंह ने बताया कि काफी वक्त तक अपने खेत में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बोई जाने वाली फसल आम, गन्ना, धान और गेहूं की खेती की। इस बीच जितेंद्र के सामने भी सरकारी तंत्र की सुस्ती, फसल को औने-पौने दाम में बेचने की मजबूरी आने लगी। इसके बाद किसान जितेंद्र ने केले की खेती करने का निर्णय लिया। जितेंद्र सिंह ने बताया कि उन्होंने परंपरागत खेती से हटकर 45 बीघे के खेत में केले की पौध लगा डाली। केले की जी-9 बेड़ को लाकर 45 बीघे में 6-6 फुट के अंतर पर 11 हजार 250 पेड़ लगा दिए। पेड़ों की जमकर सेवा की और 14 महीने के बाद उनकी मेहनत रंग लाई। उन्होंने बताया कि पहली फसल से उन्हें गन्ने की फसल से दोगुना फायदा हुआ। गन्ने की खेती से एक बीघे से उन्हें 18-20 हजार रुपये की कमाई होती थी, जिसमें 8-10 हजार रुपये की लागत आ जाती थी।
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किसानों को भी कर रहे प्रोत्साहित
केले की प्रजाति के बारे में रजनीश बताते हैं कि हमारे पास जी-9 केले की प्रजाति है, जिसमें सबसे अच्छा फल आता है। सबसे बड़ी बात यह है कि हमने पिछले दो सालों से अपने फार्म पर नर्सरी भी तैयार कर ली है। वहां हम जी-9 प्रजाति के पौधे तैयार कर रहे हैं। पहले गन्ने की खेती से प्रति एकड़ ज्यादा से ज्यादा सवा लाख रुपये कमा पाते थे, वहीं अब केले और पपीते की खेती से तीन लाख रुपये प्रति एकड़ तक निकल जाता है। वह बताते हैं कि हमने दो साल पहले नर्सरी भी तैयार की। इससे हम और किसानों को भी कम दामों में केले की पौध दे पाते हैं। इससे भी हमें थोड़ा मुनाफा होता है। साथ ही और किसान भी केले के साथ सहफसली खेती करने के लिए प्रेरित होते हैं।