एडवांस- नया कॉलम : शहरनामा

दो अप्रैल को जिले में कोरोना का पहला मामला निकला। लोगों की सांस अटक गई। दहशत इतनी हो गई कि बहुत से लोगों ने घरों से बाहर निकलना बंद कर दिया। अनलॉक-1 से पहले तक कुछ ऐसा ही नजारा था। लोग जरूरत के हिसाब से ही घरों से निकल रहे थे। लॉकडाउन से छुटकारा मिला तो लोगों ने सोच लिया अब तो कोरोना गया सब कुछ सही हो गया। कुछ लोग ऐसे लापरवाह हुए कि उनकी सोच ने माहौल को खराब कर दिया। नतीजा यह हुआ कि न तो मास्क का इस्तेमाल किया और न शारीरिक दूरी का ही पालन। लॉकडाउन में जिन चीजों को खरीदने व खाने से बच रहे थे उन पर टूट पड़े। बस कोरोना

By JagranEdited By: Publish:Mon, 13 Jul 2020 09:30 PM (IST) Updated:Tue, 14 Jul 2020 06:05 AM (IST)
एडवांस- नया कॉलम : शहरनामा
एडवांस- नया कॉलम : शहरनामा

12 एचपीआर-44-45, विशाल गोयल

चिड़िया चुग गई खेत

दो अप्रैल को जिले में कोरोना का पहला मामला निकला। लोगों की सांस अटक गई। दहशत इतनी हो गई कि बहुत से लोगों ने घरों से बाहर निकलना बंद कर दिया। अनलॉक-1 से पहले तक कुछ ऐसा ही नजारा था। लोग जरूरत के हिसाब से ही घरों से निकल रहे थे। लॉकडाउन से छुटकारा मिला तो लोगों ने सोच लिया अब तो कोरोना गया, सब कुछ सही हो गया। कुछ लोग ऐसे लापरवाह हुए कि उनकी सोच ने माहौल को खराब कर दिया। नतीजा यह हुआ कि न तो मास्क का इस्तेमाल किया और न शारीरिक दूरी का ही पालन। लॉकडाउन में जिन चीजों को खरीदने व खाने से बच रहे थे, उन पर टूट पड़े। बस कोरोना वायरस को मौका मिल गया और उसने लापरवाहों को अपनी चपेट में लेना शुरू कर दिया। अब वह लोग परेशान हैं, लेकिन अब पछताय होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत।

जनाब! कोरोना नहीं देखता चेहरा

कोरोना यदि चेहरा देखकर शिकार का चयन करता तो फिल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन हास्पिटल में न होते। यह बात कुर्सी के चहेतों को कौन समझाए। इसी साल में गांव की सरकार के चुनाव होने को लेकर कयास लगाए जा रहे हैं। चुनाव को लेकर वर्तमान के कुर्सीधारी और संभावित दावेदार चुनाव की तैयारी में जुट गए हैं। गांव के माहौल को अपने पक्ष में करने के साथ राजनीति आकाओं की चरण वंदना में लगे हैं। सूरज की पहली किरण के साथ दावेदार समर्थकों की टोली के साथ गांव का भ्रमण करते हैं और घर-घर जाकर वोट की अपील करते हैं। दिन ढ़लते ही सुरा प्रेमियों के साथ बैठकर दिनभर की भागदौड़ को लेकर चर्चा होती है। ऐसे में जनाब भूल जाते हैं कि यह कोरोना काल है। सावधानी ही कोरोना की हार और आपकी जीत है। कुर्सी आज नहीं तो कल मिल जाएगी। बिना कर्ज निभा रहे फर्ज

कहते हैं आपदा अवसर भी लेकर आती है। लॉकडाउन भी तमाम गरीब माता-पिता के लिए अवसर लेकर आया, जो अपनी बेटियों के हाथ पीले करने की सोच रहे थे, मगर आर्थिक हालात उन्हें बेटी को विदा करने के लिए कर्ज के जाल में फंसने को मजबूर कर रहे थे। सूदखोर भी उनकी हालात का फायदा उठाने में पीछे नहीं रहते। कई पिता तो ऐसे थे जो कई सालों से बेटी के हाथ पीले करने का प्रयास कर रहे थे। ऐसे में शादी में चुनिदा लोगों के शादी में शामिल होने के शासन का फरमान उनके लिए वरदान बनकर आया। इस आदेश ने कई माता पिता को सम्मान के साथ बेटियों के हाथ पीले करके उन्हें ससुराल विदा करने का मौका दिया, क्योंकि कई लोगों को सौ लोगों की दावत जैसे मोटे खर्च से बचा लिया और उनकी लाडली के हाथ पीले करने की हसरत भी पूरी हो गई। क्या कोरोना होना गुनाह है

डकैती, चोरी, हत्या, छेड़छाड़, लूट इन सबके आरोपितों को भी शायद इस नजर से नहीं देखा जाता, जिस तरह इन दिनों कोरोना रोगियों को देखा जा रहा है। पिछले दिनों नगर के एक अंकल कोरोना से जंग जीतकर जैसे- तैसे अस्पताल से घर पहुंचे। चिकित्सकों के कहे अनुसार पूरी सतर्कता के साथ वह 14 दिन तक अपने घर में रहें। अपनों से दूरी बरतने के साथ एकांत में जीवन गुजारा। बाहर की ताजी हवा के लिए तरसने लगे। कई दिन बाद हिम्मत कर वह घर से बाहर आकर चारपाई पर बैठे तो ताजी हवा में कुछ राहत महसूस की। लेकिन, वह बाहर क्या बैठे गली में घूम रहे आसपास के लोग घरों में चले गए और बाहर से दरवाजा बंद कर लिया। जैसे कोरोना उड़कर उन्हें छूं लेगा। अंकल यह माहौल देख हैरान हो उठे और बच्चों से पूछा कि क्या कोरोना रोगी होना गुनाह है।

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