वैज्ञानिक मनोवृत्ति से दूर होगा अंध विश्वास

वैज्ञानिक मनोवृत्ति से दूर होगा अंध विश्वासवैज्ञानिक मनोवृत्ति से दूर होगा अंध विश्वासवैज्ञा

By JagranEdited By: Publish:Wed, 27 Oct 2021 06:45 PM (IST) Updated:Wed, 27 Oct 2021 06:45 PM (IST)
वैज्ञानिक मनोवृत्ति से दूर होगा अंध विश्वास
वैज्ञानिक मनोवृत्ति से दूर होगा अंध विश्वास

जागरण संवाददाता, हमीरपुर : किसी की भी मनोवृत्ति बदलना आसान नहीं होता। लेकिन इसे वैज्ञानिक ढंग से अंदर छुपे वहम को दूर किया जा सकता है। ऐसे ही माध्यम से समाज में फैले अंध विश्वास को भी खत्म किया जा सकता है। ताकि अंध विश्वास के चलते होने वाली परेशानियों से बचा जा सके। कई बार अंध विश्वास लोगों के लिए जान लेवा तक साबित होता है। ऐसा नहीं कि अंध विश्वास केवल गांवों तक ही सीमित है। यह अशिक्षित क्षेत्रों में ज्यादा देखने को मिलता है। कई बार हिस्टीरिया जैसी बीमारी से पीड़ित महिलाओं को भूत-प्रेत का साया बता प्रताड़ित किया जाता है। हालांकि पूराने समय की तुलना में अब इनमें काफी कमी आई है। इसका कारण लोग शिक्षित होने के साथ वैज्ञानिक मनोवृत्ति बढ़ी है। जिससे उन्हें पता चल गया कि वह बिना इलाज ठीक नहीं होगी। लेकिन अभी भी कई बार कमजोर मानसिकता वाले लोगों के किस्से प्रकाश में आते है। जिसके चलते वह खुद का नुकसान कर बैठते है और बाद में पछताते रहते है। ऐसे में हमे किसी भी अनहोनी लगने वाली बात को वैज्ञानिक ²ष्टिकोण से जरुर देखनी और समझनी चाहिए। तभी हम उसे आसानी से दूर कर पाएंगे।

- अर्चना सिंह, वार्डन, कस्तूरबा गांधी आवासीय बालिका विद्यालय कुरारा वैज्ञानिक कारणों से जुड़ी पुरानी परंपराएं

पूर्वजों द्वारा बनाई गई परंपराएं वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर ही बनी है। जाने माने हिदी के लेखक प्रताप नरायण मिश्र ने अपने एक लेख में त्योहारों को म्युनिसीपैलिटी कहा। उन्होंने बताया कि त्योहार आते ही हम अपने घरों की साफ-सफाई म्युनिसीपैलिटी की तरह करते है। जिससे हमारे घर साफ स्वच्छ बने रहते है। वैसे तो लोग आगे के लिए टाल देते है। लेकिन त्योहारों की चली आ रही परंपरा के चलते नियत समय से पहले यह काम करता है। इस बात से अंदाजा लगता है कि पूर्वजों की वैज्ञानिक मनोवृत्ति के चलते समय समय पर पड़ने वाले त्योहारों में हम अपने रहन सहन व खान पान के साथ वातावरण स्वच्छ बनाने का काम करते है। जबकि कुछ कमजोर मानसिकता के लोग इसे अंध विश्वास से जोड़ देते है।

- बीरेंद्र परनामी, अध्यापक, कस्तूरबा गांधी आवासीय बालिका विद्यालय, कुरारा पूजे जाते प्राणवायु वाले पीपल-बरगद

पीपल व बरगद के वृक्षों का हिदू धर्म में विशेष स्थान है। इनकी खासियत के चलते ही ऋषि मुनियों ने इन्हें पूज्यनीय बताया साथ ही धार्मिक मान्यता दी की इन वृक्षों को डर वश लोग नुकसान न पहुंचाए। जबकि इसका वैज्ञानिक कारण यह है कि पीपल और बरगद सबसे अधिक प्राणवायु देते है। पर्यावरण को स्वच्छ कर लोगों को बेहतर स्वास्थ्य देते है। वहीं पूर्व में लोग घरों के आसपास इन्हें लगाने से डरते थे। लोगों में भ्रांतियां थी की इनमें भूत-प्रेत का निवास होता है। बस्ती के अंदर लगे वृक्षों को कटवा दिया जाता था। जबकि मौजूदा माहौल को देखते हुए हर मोहल्ले में इन्हें लगाया जाना चाहिए। शिक्षित होने के साथ लोगों की सोच बदली है। वैज्ञानिक मनोवृत्ति के चलते अंध विश्वास से काफी हद तक छुटकारा मिला है।

- ऋचा गुप्ता, शिक्षिका, कस्तूरबा गांधी आवासीय बालिका विद्यालय, कुरारा

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