कुलपहाड़ से अंग्रेजी हुकूमत को मिली थी टक्कर

सुरेंद्र अग्रवाल कुलपहाड़ (महोबा) देश को आजादी ऐसे ही नहीं मिली। बड़ा आंदोलन हुआ। कई क्रांतिकारियों ने बलिदान दिया। स्वतंत्रता सेनानियों ने जेल में कई दिन काटे। आंदोलन के महानायक और नायक घूम-घूमकर देश में आजादी की

By JagranEdited By: Publish:Fri, 14 Aug 2020 11:17 PM (IST) Updated:Sat, 15 Aug 2020 06:05 AM (IST)
कुलपहाड़ से अंग्रेजी हुकूमत को मिली थी टक्कर
कुलपहाड़ से अंग्रेजी हुकूमत को मिली थी टक्कर

सुरेंद्र अग्रवाल, कुलपहाड़ (महोबा)

देश को आजादी ऐसे ही नहीं मिली। बड़ा आंदोलन हुआ। कई क्रांतिकारियों ने बलिदान दिया। स्वतंत्रता सेनानियों ने जेल में कई दिन काटे। आंदोलन के महानायक और नायक घूम-घूमकर देश में आजादी की आवाज को बुलंद कर रहे थे। जिले का कुलपहाड़ उस दौर का सबसे बड़ा साक्षी है। आंदोलन को धार देने महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू, लालबहादुर शास्त्री व सीमांत गांधी महोबा के कुलपहाड़ आए थे। आज देश स्वतंत्रता दिवस की 73 वीं वर्षगांठ मना रहा है। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भगवानदास बालेंदु के पुत्र 75 वर्षीय अखिलेंद्र अरजरिया को बहुत अच्छे से याद है पिता से सुनी जंग-ए-आजादी की दास्तां।

ग्वालियर में कमिश्नर पद से सेवानिवृत्त होने के बाद वहीं निवास कर रहे अखिलेंद्र बताते हैं, 1921 में पिता भगवानदास बालेंदु के नेतृत्व में कुलपहाड़ कस्बा में विदेशी वस्त्रों की होली जलाकर आंदोलन का शुभारंभ हुआ। कस्बा में रेल लाइन की सुविधा के कारण स्वाधीनता संग्राम के नायकों का अक्सर यहां आगमन होता था। पिता बालेंदु, बालगोविद अग्रवाल, मूलचंद टेलर मास्टर और अब्दुल रज्जाक आदि महात्मा गांधी के आह्वान पर आजादी के आंदोलन में कूद पड़े थे।

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