साहस से दुश्मन को कारगिल में चटाई धूल

जाबांजी से धोखेबाज दुश्मन को कारगिल में चटाई धूलजाबांजी से धोखेबाज दुश्मन को कारगिल में चटाई धूल

By JagranEdited By: Publish:Sun, 25 Jul 2021 11:29 PM (IST) Updated:Sun, 25 Jul 2021 11:29 PM (IST)
साहस से दुश्मन को कारगिल में चटाई धूल
साहस से दुश्मन को कारगिल में चटाई धूल

अभय प्रताप सिंह, हमीरपुर

जिले में करीब छह सेवानिवृत्त फौजी हैं। जिन्होंने कारगिल युद्ध में हिस्सा लिया और मिली फतह से फº महसूस करते हैं। उन्ही में से एक है राठ क्षेत्र के जखेड़ी गांव निवासी कामता प्रसाद जो सेवानिवृत्त होने के बाद मौजूदा में सरीला पावर हाउस में गार्ड हैं। उनके अनुसार विषम परिस्थितियों में भी सरकार व देश वासियों की हौसलाअफजाई से सेना ने साहस और जांबाजी दिखाते हुए धोखेबाज दुश्मन को कारगिल में धूल चटाई।

सेवानिवृत्त सेना के जवान कामता प्रसाद के अनुसार पड़ोसी देश पाकिस्तान से संबंध सुधारने को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई ने कई प्रयास किए गए। उसी दौरान पाक सेना द्वारा षडयंत्र रच कई स्थानों में कब्जा कर लिया। जिसकी सूचना मिलते ही सेना द्वारा आपरेशन विजय चलाया गया। सेना के जवानों ने साहस व जांबाजी का परिचय देते हुए करीब 60 दिन चले युद्ध के बाद 26 जुलाई 1999 को जीत हासिल की।

उनके अनुसार वह 108 इंजीनियर रेजीमेंट में तैनात थे। वर्ष 1997 में उनकी श्रीनगर के पुराने हवाई अड्डे में पोस्टिंग थी। उनकी रेजीमेंट को भटिडा आना था, लेकिन पाकिस्तान से बढ़ते तनाव के चलते उन्हें वहीं रोक दिया गया। साथ ही पाक सेना की करतूत की जानकारी होने पर उनकी रेजीमेंट की तीन कंपनियों को चार मई 1999 को अलग अलग द्रांस, अर्चनाथांग व कारगिल स्थानों पर भेजा गया। उन्हें कारगिल में तैनाती मिली। साथ ही उनकी कंपनी को अलग अलग इंफेंट्री के साथ लगाया गया। वहीं सेना को आवागमन सुलभ करने के लिए दुश्मन कई स्थानों पर ब्रिज तैयार कराए। बताया कि इंफेंट्री के आगे बढ़ने से पहले उस रास्ते की जांच पड़ताल उनकी कंपनी के जवान करते थे। जिनकी लोकेशन के बाद शेष जवान आगे बढ़ते थे। वहीं दुश्मन सेना द्वारा बरसाए जाने वाले गोलों का जवाब भी देते थे।

द्रास पहुंच प्रधानमंत्री ने की थी हौसलाअफजाई

बताया कि युद्ध के दौरान सेना का मनोबल बहुत बढ़ा था। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल जी ने स्वयं द्रास पहुंच जवानों की हौसलाअफजाई की थी। जिसके बाद सेना ने दुश्मन के छक्के छ़ुड़ा दिए।

विषम थी परिस्थितियां

बताया कि दुश्मन की सेना काफी ऊंचाई में थी और हमारी सेना की हरकतों पर गौर कर रही थी। ऐसे में दुश्मन तक पहुंचना मुश्किल हो रहा था। साथ ही आक्सीजन की कमी भी समस्या बन रही थी, लेकिन जवानों के अदम्य साहस ने इसे संभव कर दिखाया।

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