कलम के सिपाही होने के साथ आजादी के सूरमा थे ईश्वरचंद्र
संस भरुआ सुमेरपुर वर्णिता संस्था के तत्वावधान मे विमर्श विविधा अंतर्गत ईश्वरचन्द्र
संस, भरुआ सुमेरपुर : वर्णिता संस्था के तत्वावधान मे विमर्श विविधा अंतर्गत ईश्वरचन्द्र विद्यासागर की जयंती मनाई गई। संस्था के अध्यक्ष डा. भवानीदीन ने कहा कि ईश्वरचन्द्र विद्यासागर सही अर्थों मे एक समर्पित राष्ट्र सेवी थे। वह कलम के सिपाही होने के साथ ही आजादी के सूरमा भी थे। उनका जन्म 26 सितंबर 1820 को बंगाल के मेदिनीपुर जिले में ठाकुर दास के घर मां भगवती देवी के कोख से हुआ था। उनकी प्रतिभा को देखते हुए शिक्षा काल में संस्कृत कालेज ने ईश्वर चन्द्र को विद्या सागर की उपाधि से विभूषित किया गया। उन्होंने 52 पुस्तकों की रचना की। जिनमें से 17 संस्कृत की थी। उनकी कृतियों में वैतालपंचविन्शति, शकुन्तला तथा सीता वनवास उल्लेखनीय रही। उन्हीं के प्रयासों से अंग्रेजों ने 1856 में विधवा पुनर्विवाह कानून बनाया। कार्यक्रम मे अवधेश कुमार एडवोकेट, अशोक अवस्थी, रमेशचंद गुप्ता, वृन्दावन गुप्ता, आयुष गुप्ता, कल्लू चौरसिया एवं लखन आदि उपस्थित रहे।