योगी आदित्‍यनाथ बोले, पेशावर, काबुल और ढाका में हैं नाथ पंथ के मठ-मंदिर Gorakhpur News

नाथ पंथ सिद्ध संप्रदाय है। इस संप्रदाय के योगियों और संतों से जुड़े कई ऐसे प्रसंग हैं जो लोगों को नाथ पंथ से जुड़ने के लिए बाध्‍य करते हैं। पेशावर अफगानिस्तान के काबुल और बांग्‍लादेश के ढाका को भी इस पंथ के योगियों ने साधना स्थली बनाई है।

By Rahul SrivastavaEdited By: Publish:Sat, 20 Mar 2021 09:45 PM (IST) Updated:Sat, 20 Mar 2021 09:45 PM (IST)
योगी आदित्‍यनाथ बोले, पेशावर, काबुल और ढाका में हैं नाथ पंथ के मठ-मंदिर   Gorakhpur News
विवि में त्रिदिवसीय संगोष्ठी के अवसर पर दीक्षा भवन में लगी पोस्टर प्रदर्शनी का अवलोकन करतेे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ। जागरण

गोरखपुर, जेएनएन : नाथ पंथ सिद्ध संप्रदाय है। इस संप्रदाय के योगियों और संतों से जुड़े कई ऐसे प्रसंग हैं, जो लोगों को नाथ पंथ से जुड़ने के लिए बाध्‍य करते हैं। यही वजह है कि पूरी दुनिया में नाथ पंथ का विस्तार है। पाकिस्तान के पेशावर, अफगानिस्तान के काबुल और बांग्‍लादेश के ढाका को भी इस पंथ के योगियों ने अपनी साधना स्थली बनाई है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यह बातें दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में आयोजित तीन दिवसीय 'नाथ पंथ का वैश्विक प्रदेय' विषय पर अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन के अवसर पर कही।

नाथ पंथ के विस्‍तार और महिमा की मिली जानकारी

मुख्यमंत्री योगी ने राजस्थान के सपेरा समुदाय की एक पद्म पुरस्कार प्राप्त महिला और बद्रीनाथ में नाथ योगी सुंदरनाथ से जुड़ा वह प्रसंग सुनाया,  जिससे नाथ पंथ के विस्तार और महिमा की जानकारी मिलती है। बद्रीनाथ के नाथ योगी सुंदरनाथ से जुड़ा प्रसंग सुनाते हुए उन्होंने बीते दिनों केदारनाथ और बद्रीनाथ की यात्रा की वजह भी बताई। बताया कि दिवाली पर दीपोत्सव के लिए अयोध्या प्रवास के दौरान जब वह ध्यान कर रहे थे तो उन्हें पहाड़ों से किसी के बुलाने और ध्यान रखने की अपील सुनाई दी। इस कौतूहल को शांत करने के लिए जब केदारनाथ और बद्रीनाथ की यात्रा की तो बद्रीनाथ में नाथ योगी सुंदरनाथ की गुफा मिली। तब उन्हें अहसास हुआ कि वह आवाज योगी सुंदरनाथ की ही थी। आगे कहा कि नाथ पंथ की परंपरा आदिनाथ भगवान शिव से शुरू होकर नवनाथ और 84 सिद्धों के साथ आगे बढ़ती है। यही वजह है कि पूरी दुनिया में इस संप्रदाय के मठ, मंदिर, धूना, गुफा, खोह देखने को मिल जाएंगे। अपने इस प्रसंग को मुख्यमंत्री ने परंपरा, संस्कृति और इतिहास से जोड़ा। कहा कि कोई भी व्यक्ति अपनी परंपरा और संस्कृति को विस्मृत करके अपने लक्ष्य को हासिल नहीं कर सकता। ऐसा व्यक्ति त्रिशंकु बनकर रह जाता है और उसका कोई लक्ष्य नहीं होता। समाज में व्यापक परिवर्तन के लिए उन्होंने शिक्षा केंद्रों से अपील की कि वह अपनी सभ्यता और संस्कृति से जुड़कर अध्ययन-अध्यापन प्रक्रिया को आगे बढ़ाएं।

विकृतियों के खिलाफ नाथ योगियों ने उठाई आवाज

मुख्यमंत्री ने कहा कि नाथ पंथ के योगियों ने कभी विकृतियों का समर्थन नहीं किया, बल्कि ऐसी विकृतियां जो समाज के विखंडन का कारण बनतीं, उनके खिलाफ पुरजोर आवाज उठाई। उन्होंने कहा कि विकृतियां तभी जन्म लेती हैं, जब व्यक्ति को खुद पर विश्वास नहीं होता। ऐसे में उनके सामने स्वयं को बचाने की चिंता होती है। इसी वजह से गुरु गोरखनाथ ने प्रत्यक्ष अनुभूति को जीवन का आधार बनाया। प्रत्यक्ष अनुभूति पर आधारित न होने वाले तथ्यों को नाथ पंथ में कभी मान्यता नहीं मिली। यही वजह है नाथ पंथ का प्रभाव झोपड़ी से लेकर राजमहल तक रहा है। इसके लिए उन्होंने नेपाल के राज परिवार की नाथ पंथ के प्रति आस्था का जिक्र किया।

गोरखनाथ के काष्ठ मंडप से काठमांडू को मिला नाम

मुख्यमंत्री योगी ने बताया कि नेपाल की राजधानी काठमांडू का मूल नाम काष्ठ मंडप था। यह नाम कहीं ओर से नहीं बल्कि गोरखनाथ मंदिर से मिला है, जो काष्ठ मंडप पर आधारित था। काठमांडू के पशुपति नाथ मंदिर और पास की एक पहाड़ी के बीच बाबा गोरखनाथ का मंदिर आज भी मौजूद है। इसी क्रम में उन्होंने नेपाल के एक राज्य दान के राजकुमार रत्नपरिक्षित का जिक्र किया, जो बाद में रतननाथ के नाम से नाथ पंथ के बहुत सिद्ध योगी हुए। बताया कि बलरामपुर के देवीपाटन में जिस आदि शक्ति पीठ की स्थापना गुरु गोरक्षनाथ ने की, वहां पूजा करने के लिए योगी रतननाथ प्रतिदिन दान से आया जाया करते थे। आज भी चैत्र नवरात्र पर एक यात्रा दान से आती है और प्रतिपदा से लेकर चतुर्थी तक नाथ अनुष्ठान होता है। पंचमी से नवमी तक पात्र देवता के रूप में गोरखनाथ का अनुष्ठान होता है।

पाकिस्तान का फोन था इसलिए नहीं उठाया

नाथ पंथ के विस्तार की चर्चा के क्रम में मुख्यमंत्री ने बताया कि उनके एक जानने वाले सरदार जी 10 वर्ष पहले पेशावर गए। वहां से सरदार जी ने उन्हें फोन किया तो उन्होंने उस काल को इसलिए नहीं उठाया, क्योंकि वह पाकिस्तान से आ रही थी। लौटकर सरदार जी ने बताया कि उन्होंने वहां पेशावर के पास एक पहाड़ी पर कुछ योगियों को गोरखनाथ का जयकारा लगाते और पूजा करते देखा। जयकारा लगाने वालों में हिंदू-मुसलमान सभी थे। इस पर मुख्यमंत्री ने उन्हें बताया कि पेशावर भी गोरखनाथ जी की साधना स्थली रही है। वहां उनका धूना मठ आज भी मौजूद है।

गोरखनाथ ने काया शोधन पर दिया है जोर

मुख्यमंत्री ने बाबा गोरखनाथ की ओर से काया शोधन को लेकर दिए गए मंत्र की चर्चा भी की। अवधु आहार तोड़ो, निद्रा मोड़ो, कबहू न होइबा रोगी, छठे-समासे काया पलटि बा, जो होई जोगी। उन्होंने कहा कि इस प्रक्रिया से शारीरिक और मानसिक दोनों शोधन हो जाता है। इस दौरान उन्होंने योग के उन आसनों का जिक्र किया, जिनके नाम गोरखनाथ व मत्येंद्रनाथ के नाम पर रखे गए हैं। इस क्रम में मुख्यमंत्री ने कबीरदास, तुलसीदास, बंकिम चंद चटर्जी, मलिक मोहम्मद जायसी को भी गोरखनाथ का अनुयायी बताया, जिन्होंने अपनी रचनाओं में बाबा गोरखनाथ का उल्लेख पूरी आस्था के साथ किया है। मुख्यमंत्री ने देश-विदेश के उन स्थानों का जिक्र भी किया, जहां विभिन्न भाषाओं मेंं नाथ पंथ का साहित्य उपलब्ध है।

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