सुई से डरती थीं, कोरोना को हराया तो अब कर रहीं प्‍लाज्‍मा दान

गीता त्रिवेदी अपर निदेशक (एडी) स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण कार्यालय में लेखाकार हैं तो पूजा पांडेय आशा ज्योति केंद्र की प्रभारी हैं। दोनों महिलाओं ने अब तक कभी रक्तदान नहीं किया था लेकिन अब प्‍लाज्‍मा दान कर रहीं हैं।

By Satish ShuklaEdited By: Publish:Wed, 21 Oct 2020 11:06 AM (IST) Updated:Wed, 21 Oct 2020 01:19 PM (IST)
सुई से डरती थीं, कोरोना को हराया तो अब कर रहीं प्‍लाज्‍मा दान
प्‍लाज्‍मा दान करतीं एडी कार्यालय में लेखाकार गीता त्रिवेदी

गोरखपुर, जेएनएन। कभी सुई के नाम से जिन महिलाओं के शरीर में सिहरन पैदा हो जाती थी, डर के मारे चीख निकल जाती थी वह अब प्लाज्मा दान कर दूसरों की जान बचाने में जुटी हैं। कोरोना संक्रमण से मुक्ति के बाद महिलाओं ने न सिर्फ खुद रक्तदान कर संक्रमितों की जान बचाई वरन दूसरी महिलाओं को भी प्रेरित कर रही हैं।

बात हो रही है गीता त्रिवेदी और पूजा पांडेय की। गीता त्रिवेदी अपर निदेशक (एडी) स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण कार्यालय में लेखाकार हैं तो पूजा पांडेय आशा ज्योति केंद्र की प्रभारी हैं। दोनों महिलाओं ने अब तक कभी रक्तदान नहीं किया था लेकिन कोरोना होने के बाद प्लाज्मा से मरीजों की जान बचने की जानकारी के बाद खुद ही बाबा राघवदास मेडिकल कालेज में संपर्क किया। प्लाज्मा दान कर दोनों महिलाएं बहुत खुश हैं।

गीता त्रिवेदी

बुखार होने पर चार सितंबर को मैंने कोरोना की जांच कराई। रिपोर्ट पाजिटिव आयी तो डाक्टरों के परामर्श से घर में इलाज शुरू किया। आठ सितंबर को हालत बिगडऩे लगी और सांस फूलने लगी। दवाओं के असर से मर्ज ठीक हुआ तो कुछ दिन बार रिपोर्ट भी निगेटिव आ गई। संक्रमण के दौरान ही पता चला कि ठीक हो चुके मरीजों के प्लाज्मा से कोरोना के कारण गंभीर मरीजों का इलाज आसान हो जा रहा है। तभी तय कर लिया था कि प्लाज्मा दान करूंगी। पहले तो यही कहूंगी कि इतनी सतर्कता बरतें कि कोरोना हो ही न। यदि हो गया तो ठीक होने के बाद प्लाज्मा जरूर दान करें।

पूजा पांडेय

मेरा पूरा परिवार 21 अगस्त को कोरोना संक्रमित हो गया था। पति सिद्धार्थ दीक्षित की तबियत लगातार बिगड़ती जा रही थी। अस्पताल में भर्ती कराने के बाद स्थिति में सुधार आया। मैंने समाजिक सेवा में मास्टर की डिग्री ली है। पढ़ाई के समय से ही जरूरतमंदों की सेवा में जुटी रहती थी। आशा ज्योति केंद्र में प्रभारी के रूप में काम करने से लोगों की सेवा को जीवन का उद्देश्य बना लिया। रिपोर्ट निगेटिव आने के बाद प्लाज्मा दान के लिए डाक्टरों से संपर्क किया तो सभी ने उत्साहवर्धन किया। सुई से डर लगा लेकिन लेकिन जब रक्तदान किया तो इतना सुकून मिला कि उसे शब्दों में नहीं बयां कर सकती।

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