कुशीनगर एयरपोर्ट शुरू होने से बौद्ध सर्किट के पूरा होने की उम्मीद

कुशीनगर में पर्यटन विकास की संभावनाएं बढ़ गई हैं स्वदेश दर्शन स्कीम के तहत बौद्ध सर्किट में शामिल स्थलों को एक-दूसरे से जोड़ने की योजना को मूर्त रूप मिलेगा कुशीनगर से लौरिया की दूरी महज 60 किमी है 260 किमी का चक्कर लगा कर पहुंचते हैं बौद्ध धर्मावलंबी।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 20 Oct 2021 11:40 PM (IST) Updated:Wed, 20 Oct 2021 11:40 PM (IST)
कुशीनगर एयरपोर्ट शुरू होने से बौद्ध सर्किट के पूरा होने की उम्मीद
कुशीनगर एयरपोर्ट शुरू होने से बौद्ध सर्किट के पूरा होने की उम्मीद

कुशीनगर: बौद्ध धर्म के लिहाज से अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त भगवान बुद्ध की निर्वाण स्थली पर बुधवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इंटरनेशनल एयरपोर्ट का लोकार्पण व स्वदेश दर्शन स्कीम के बौद्ध सर्किट योजनान्तर्गत विकास कार्यक्रमों का शिलान्यास किया। इसके साथ ही बौद्ध परिपथ में मौजूद कुशीनगर व बिहार के पश्चिमी चंपारण के लौरिया के एक दूसरे से जुड़ने की संभावना अब प्रबल हो गई है। इससे पर्यटन विकास के साथ ही बिहार के आधा दर्जन जिलों तथा पूर्वांचल के चतुर्दिक विकास में तेजी आएगी।

लौरिया में सम्राट अशोक द्वारा निर्मित अशोक स्तंभ बौद्ध धर्म के सशक्त हस्ताक्षर के रूप में मौजूद हैं। यह कसया-तुर्कपट्टी-बनरहा-सेवरही-पिपराघाट-पखनहा-बेतिया होते हुए कुशीनगर से महज 60 किमी की दूरी पर स्थित है। कसया से सेवरही तक टू लेन स्टेट हाइवे है। लेकिन सेवरही से पिपरा घाट तक सिगल सड़क व नारायणी नदी पर एक अदद पुल के अभाव में यह दूरी सैकड़ों किमी में परिवर्तित हो जाती है। इसके चलते बौद्ध धर्मावलंबियों को घूमकर लौरिया जाने में 260 किमी से अधिक की दूरी तय करनी पड़ती है। हालांकि केंद्र सरकार की एक परियोजना के तहत तमकुहीराज से बिहार प्रांत के बेतिया तक नए राज मार्ग के लिए भूमि अधिग्रहण का कार्य शुरु हो गया है। यह नया राजमार्ग एनएच 727 एए के नाम से जाना जाएगा। जो बिहार राज्य के मनुपुल के निकट एनएच 727 के अपने जंक्शन से प्रारंभ होकर सेवरही के निकट एनएच 730 के अपने जंक्शन पर समाप्त होगा। वहीं नारायणी नदी पर पिपराघाट पखनहा महासेतु पुल, नई सड़क, बाईपास व ओवरब्रिज का निर्माण होना है।

पर्यटन विकास के साथ होगा क्षेत्र का चतुर्दिक विकास

नारायणी नदी पर पिपराघाट-पखनहा पुल के निर्माण के साथ यदि कसया से सेवरही वाया तुर्कपट्टी टू लेन स्टेट हाइवे को फोरलेन राष्ट्रीय राजमार्ग में परिवर्तित कर दिया जाय तो न सिर्फ बौद्ध परिपथ में मौजूद लौरिया की कुशीनगर से दूरी छोटी हो जाएगी। बल्कि संबंधित क्षेत्र में पर्यटन विकास की अपार संभावनाओं को बल मिलेगा। रेता क्षेत्र का चतुर्दिक विकास संभव हो सकेगा। बाढ़ पर अंकुश लगने से कृषि के क्षेत्र में रोजगार के अवसर पैदा होंगे। गन्ना बाहुल्य क्षेत्र होने के चलते पेपर मिल, कार्ड बोर्ड फैक्ट्री, थर्मल पावर स्टेशन की स्थापना होने से यह क्षेत्र औद्योगिक व पर्यटन के क्षेत्र के रूप में विकसित होगा तो रोजगार के लिए बाहर जाने वाले युवाओं का पलायन रूक सकेगा।

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लौरिया का है ऐतिहासिक महत्व

बिहार के पश्चिमी चम्पारण •ालिे के लौरिया नंदनगढ़ या इसके आस-पास के लोगों का मानना है कि भगवान बुद्ध की राख या उनके अंतिम संस्कार से लिया गया चारकोल यहीं किसी स्तूप में रखा है। ये स्तूप व स्तंभ चौथी शताब्दी ई.पू. में मौर्य सम्राट अशोक के शासनकाल के 21वें वर्ष में बनाया गया था। इन स्तंभों में उस राजवंश के अभिलेख और स्मारक आज भी मौजूद हैं। उस जमाने में मौर्य सम्राट अशोक द्वारा स्थापित स्तंभ को लौर कहा गया। और उस लौर के 100 गज करीब पड़ोस में जो भी गांव या कस्बा हो, उसे लौरिया के नाम से जाना जाता है। लौरिया में अशोक का एक सुरक्षित स्तंभ, एक बड़े स्तूप का भाग्नावशेष और कुछ पुरानी समाधि के टीले हैं।

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