गेहूं का ऐसा बीज जिसे खाद की जरूरत नहीं, उत्पादन में भी 15 से 35 फीसद तक की बढ़ोतरी
Madan Mohan Malaviya University of Technology Gorakhpur Research Update MMMUT में बिना खाद के गेहूं बीच विकसित किया गया है। सल्फर पोटाश जैसे माइक्रो न्यूट्रेंटस। उत्पादन में 15 से 35 फीसद की बढ़ोतरी करने वाला यह गेहूं पूरी तरह जैविक और पौष्टिक होगा।
गोरखपुर, रजनीश त्रिपाठी। Madan Mohan Malaviya University of Technology, Gorakhpur Research Update किसानों की आय को दोगुना करने के पीएम मोदी के संकल्प को पूरा करने में इंजीनियर अक्षय श्रीवास्तव का शोध मील का पत्थर साबित होगा। मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय से बीटेक करने वाले इंजीनियर अक्षय गेहूं का ऐसा बीज तैयार कर रहे हैं, जिसे खाद की जरूरत नहीं होगी। इस नैनो कोटेड बीज को पहले तीन महीने पानी देना होगा न ही
सल्फर, पोटाश जैसे माइक्रो न्यूट्रेंटस। उत्पादन में 15 से 35 फीसद की बढ़ोतरी करने वाला यह गेहूं पूरी तरह जैविक और पौष्टिक होगा। खाद-पानी का खर्च कम होने पर उत्पादन की लागत घटेगी, जिससे किसानों की आय स्वत: बढ़ जाएगी।
नैनोटेक्नोलाजी, बायोटेक्नोलॉजी और केमिकल इंजीनियरिंग से बीज तैयार
भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने लैब परीक्षण का परिणाम देखने के बाद शोध को पूरा करने के लिए 10 लाख रुपये तक का अनुदान दिया है। कानपुर आइआइटी के प्रोफेसर अमिताभ बंद्योपाध्याय के निर्देशन में नैनोटेक्नोलाजी, बायोटेक्नोलॉजी और केमिकल इंजीनियङ्क्षरग से तैयार हो रहे बीज का काम अंतिम चरण में है। कुशीनगर के रहने वाले इंजीनियर अक्षय के मुताबिक पहले चरण में जीवाणुओं को अलग करने, बीज के अनुसार उनकी ग्रुपिंग, जमीन में परीक्षण और उस मिट्टी के परीक्षण का काम पूरा हो चुका है। ये जीवाणु न केवल मिट्टी में जाकर नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश, जिंक, सल्फर, कार्बन जैसे नौ तत्व बनाते मिले बल्कि पौधे भी तीन गुना रफ्तार से बढ़ गए।
नो कोटेड बीज को किसानों के बीच ले जाने का काम भी शुरू
30 फीसद कम पानी लेते हुए उत्पादन में भी बढ़ोतरी दर्ज की गई। जीवाणुओं के समूह का खेतों में प्रभाव का प्रमाणीकरण एनएबीएल (नेशनल एक्रेडिटेशन बोर्ड फॉर टेस्टिंग एंड कैलिब्रेशन लेबोरेटरीज) से हो चुका है। शोध के दूसरे चरण में इन जीवाणुओं को कम से कम जगह में बैठाने के लिए 20 नैनो मीटर के पाॢटकल बनाए गए। नैनोपाॢटकल को जैविक तकनीक से बनाने, उसके विभिन्न लक्षणों, चरित्र के अध्ययन और वर्णन का काम इसमें पूरा किया गया है। इसका एसईएम (स्कैनिंग इलेक्ट्रान माइक्रोस्कोपी) और एक्सरे डिफ्रैक्शन प्रयोग सफलतापूर्वक पूरा हो गया है। तीसरे और अंतिम चरण में बीज पर जीवाणु कोटिंग का काम चल रहा है, जो 30-45 दिन में हो जाएगा।
ऐसे होगा इस बीज का प्रयोग
बीज के मिट्टी में जाते ही बनने लगेगी खाद इंजीनियर अक्षय बताते हैं कि इस बीज को पानी में भिगोकर खेत में डालना होगा। बीज जैसे ही मिट्टी में पहुंचेगा, इस पर लगे जीवाणु सक्रिय हो जाएंगे और सभी तरह के पोषक तत्व स्वत: ही बनने शुरू हो जाएंगे। बीज पर मौजूद सुपर अब्जारबेंट पालीमर अपने वजन से 300 गुना ज्यादा पानी सोख सकता है। ऐसे में बीज को जब भिगोया जाएगा तो वह पानी सोख लेगा और मिट्टी में जाने के बाद
धीरे-धीरे पौधे की जड़ को पानी देता रहेगा।
साधारण बीज के मुकाबले मामूली महंगा होगा
शोध में अक्षय के साथ काम कर रहे मनोज तिवारी, मुकेश चौहान ने जहां इस बीज को किसानों के बीच ले जाने का काम शुरू कर दिया है, वहीं डा. नेहा श्रीवास्तव जीवाणु के नए ग्रुप बनाने पर काम कर रही हैं। एक हेक्टेयर खेत में सामान्य जितना ही बीज का इस्तेमाल होगा। बीज का मूल्य कितना होगा यह अभी भले तय नहीं है, लेकिन अक्षय का मानना है कि साधारण बीज के मुकाबले इसकी कीमत पांच से दस फीसद अधिक हो सकती है।