जानें-गोरखपुर के रेल म्यूजियम की क्‍या है खासियत और इसकी विकास गाथा Gorakhpur News

रेल म्यूजियम में रखे गए पुराने इंजन उपकरण मॉडल और अभिलेख रेलवे के प्रगति यात्रा की कहानी कह रहे हैं। यह म्यूजियम पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।

By Satish ShuklaEdited By: Publish:Sat, 07 Dec 2019 09:00 PM (IST) Updated:Sat, 07 Dec 2019 09:00 PM (IST)
जानें-गोरखपुर के रेल म्यूजियम की क्‍या है खासियत और इसकी विकास गाथा Gorakhpur News
जानें-गोरखपुर के रेल म्यूजियम की क्‍या है खासियत और इसकी विकास गाथा Gorakhpur News

गोरखपुर, जेएनएन। विश्व में सबसे लंबे प्लेटफार्म (1366.44 मीटर) का तमगा हासिल कर चुका पूर्वोत्तर रेलवे मुख्यालय गोरखपुर अपने धरोहरों को भी सहेजे है। शहर के बीच स्थापित रेल म्यूजियम में प्रवेश करते ही रेलवे के विकास की गाथा मानस पटल पर अंकित हो जाती है। रेल म्यूजियम में रखे गए पुराने इंजन, उपकरण, मॉडल और अभिलेख रेलवे के प्रगति यात्रा की कहानी कह रहे हैं। यह म्यूजियम न सिर्फ शहर बल्कि पूर्वांचल और पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। शहर और आसपास ही नहीं दूर-दराज स्थित स्कूलों के छात्र अपने शिक्षकों के साथ म्यूजियम पहुंचते हैं। वे अपना ज्ञान तो बढ़ाते ही हैं, खूब मौजमस्ती भी करते हैं।

लोगों को आकर्षित कर रहा पूर्वोत्तर रेलवे का पहला इंजन

रेल म्यूजियम में पूर्वोत्तर रेलवे का पहला इंजन लार्ड लारेंस लोगों को आकर्षित करता है। इस इंजन का निर्माण लंदन में 1874 में डब्स कंपनी ने की थी। लंदन से इंजन को बड़ी नाव से कोलकाता तक लाया गया था। दरअसल, उत्तर बिहार में जबरदस्त अकाल के दौरान राहत पहुंचाने के लिए वाजितपुर से दरभंगा के बीच महज 60 दिनों में 51 किमी रेल लाइन बिछाई गई थी। उसी रेल लाइन पर लार्ड लारेंस इंजन 15 अप्रैल, 1874 को राहत सामग्री लेकर दरभंगा पहुंचा था। लार्ड लारेंस को देश की पहली रेलगाड़ी खींचने वाले इंजन लार्ड फॉकलैंड का यंगर सिब्लिंग कहा जाता है। म्यूजियम में नैरो गेज डीजल इंजन भी लोगों को आकर्षित करता है। इस इंजन का निर्माण 1981 में चितरंजन में हुआ था।

इटली में बने स्टीम क्रेन को निहारना नहीं भूलते लोग

20 टन क्षमता का ट्रेवलिंग स्टीम क्रेन को भी लोग निहारना नहीं भूलते हैं। इस क्रेन का निर्माण इटली में हुआ था। ओफिसियन मिकानिका ई फोंडी नावाल मिकानिका नेपल्स कंपनी ने वर्ष 1958 में इसका निर्माण किया था। इस प्रकार के क्रेनों का उपयोग रेलवे ट्रैक पर भारी सामानों को उठाने व ट्रैक अवरोधों को हटाने में होता था।

दौड़कर चढ़ते हैं ट्वाय ट्रेन पर बच्‍चे

रेल म्यूजियम में ट्वाय ट्रेन (बाल रेल गाड़ी) ब'चों को आकर्षित करती है। म्यूजियम में प्रवेश करते ही ब'चे पहले ट्वाय ट्रेन पर दौड़कर चढ़ते हैं। ट्रेन के लिए ट्रैक बिछाया गया है। इसके लिए अलग से प्लेटफार्म के साथ रास्ते में क्रासिंग और सुरंग भी बनाया गया है। इसके स्टेशन का नाम गोल्फ कोर्स है।

120 वर्ष पुराने भवन में लालू यादव ने रखी थीं नींव

पूर्वोत्तर रेलवे प्रशासन ने रेल विरासतों के महत्व की सामग्रियों को संरक्षित करने तथा धरोहरों को आने वाली पीढ़ी से परिचित कराने के लिए शहर के बीच में रेल म्यूजियम की स्थापना की है। गोल्फ ग्राउंड के सामने स्थित बंगला नंबर पांच में रेल म्यूजियम स्थापित है, जो पूर्वोत्तर रेलवे के सबसे पुराने बंगलों (लगभग 120 वर्ष पुराना) में से एक है। भवन का निर्माण 1890 और 1900 के बीच हुआ। भवन को बनाने के लिए पश्चिम बंगाल से ईंटें मंगाई गई थीं। म्यूजियम की नींव नौ अप्रैल, 2005 को तत्कालीन रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव ने रखी थी।

ट्रेन में बैठकर नाश्ता का अहसास कराता पैलेस आन ह्वील कोच

रेल म्यूजियम में नाश्ता, चाय और काफी का उत्तम प्रबंध है। पैलेस ऑन ह्वील कोच और एसी हेरिटेज कोच रेस्टोरेंट ट्रेन में बैठकर नाश्ता और काफी पीने का अहसास करता है। लोग परिवार के साथ पैलेस आन ह्वील व हेरिटेज कोच में बैठकर नाश्ता और भोजन का आनंद लेते हैं।

पूर्वोत्तर रेलवे के उद्भव से परिचित कराती है फोटो गैलरी

म्यूजियम में फोटो गैलरी है, जो पूर्वोत्तर रेलवे के उद्भव से लोगों को परिचित कराती है। 14 अप्रैल,1952 को पूर्वोत्तर रेलवे का उद्घाटन करते तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू की दुर्लभ तस्वीर के सामने ब'चे जरूर खड़े होते हैं। इसके अलावा अन्य धरोहर भी आकर्षण के केंद्र हैं।

1909 में लंदन से मंगाई गई घड़ी बढ़ाती है रुझान

1909 में लंदन से मंगाई गई घड़ी रुझान बढ़ाती है। इसके अलावा बीएफआर स्टीमर, पुरानी तस्वीरें, बाक्स कैमरे, प्लेट कैमरे, स्टेशन टोकन सिस्टम के मॉडल, रेलवे के पुराने उपकरण, सर्च लाइट तथा सैलून के मॉडल आकर्षित करते हैं।

सुरक्षित रखे गए हैं राजघरानों के लोगो

अंग्रेजों के जमाने में रेलवे राजघरानों के अधीन बंटा हुआ था। अंग्रेज अधिकारी राजघराने के नाम पर ही जोन का संचालन करते थे। उन राजघरानों के लोगो जारी होते थे, जिसे पूर्वोत्तर रेलवे प्रशासन ने म्यूजियम में सहेज कर रखा है।

सहेज कर रखी गई हैं पांडुलिपियां

म्यूजियम में एक लाइब्रेरी भी है, जिसमें रेल संचलन से जुड़ी पुरानी पांडुलिपियां, पुस्तकें, डाक टिकट, समय सारणी, सर्वेक्षण रपट आदि सहेज कर रखी हुई हैं।

रोजाना 500 लोग उठाते हैं म्यूजियम का आनंद

रेल म्यूजियम सोमवार को छोड़कर प्रत्येक दिन दोपहर 12 से रात आठ बजे तक खुलता है। प्रवेश शुल्क दस रुपये निर्धारित हैं। बाल रेल गाड़ी पर चढऩे के लिए अलग से दस रुपये का टिकट लेना पड़ता है। म्यूजियम इंचार्ज ओम प्रकाश के अनुसार रोजाना औसत 500 सौ लोग म्यूजियम का आनंद उठाते हैं। इसमें पढऩे वाले छात्रों की संख्या सर्वाधिक होती हैं।

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