कछुओं की तस्करी के पीछे क्या है रहस्य, जानें-क्यों होता है कोलकाता को तस्करी Gorakhpur News
नेपाल और चीन में जादू-टोने में इनका इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा चीन में इन कछुओं के शरीर के कई हिस्सों का खास तरह की दवा बनाने में भी इस्तेमाल होता है। जिसकी वजह से इन दोनों देशों में कुछुओं की काफी मांग रहती है।
गोरखपुर, जेएनएन। लुप्तप्राय श्रेणी (सेडयुल वन) में रखे गए इंडियन साफ्टशेल या गंगेज साफ्टेशेल कछुए (टर्टल) पड़ोसी देश नेपाल और चीन में प्रचलित अंधविश्वास का शिकार बन रहे हैं। दोनों देशों में जादू-टोने में इनका इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा चीन में इन कछुओं के शरीर के कई हिस्सों का खास तरह की दवा बनाने में भी इस्तेमाल होता है। जिसकी वजह से इन दोनों देशों में कुछुओं की काफी मांग रहती है। तस्करों का गिरोह पश्चिम बंगाल के रास्ते इन्हें नेपाल और चीन भेजता है।
रेलवे स्टेशन पर पांच तस्कर हुए थे गिरफ्तार
आरपीएफ और जीआरपी की संयुक्त टीम ने गोरखपुर रेलवे स्टेशन पर मंगलवार को पांच तस्करों को गिरफ्तार उनके पास से 46 कछुआ बरामद किया था। कानूनी औपचारिकता पूरी करने के बाद आरपीएफ और जीआरपी ने इन कछुओं को वन विभाग के हवाले कर दिया था। प्रभागीय वनाधिकारी (डीएफओ) ने बताया कि बुधवार को सीजेएम गोरखपुर से अनुमति लेकर सभी कछुओं को राप्ती नदी में छोड़ दिया गया। डीएफओ के मुताबिक इंडियन साफ्टशेल या गंगेज साफ्टेशेल कछुए लुप्तप्राय जीव की श्रेणी में आते हैं। बब्बर शेर और बाघ को भी इसी श्रेणी में रखा गया है। इनको पकडऩे या मारने पर कठोर कार्रवाई का प्रावधान है।
डीएफओ ने बताय कि इंडियन साफ्टशेल या गंगेज साफ्टेशेल कछुए मुख्य रूप से गंगा नदी में पाए जाते हैं। बहुत से लोग इन्हें एक्वेरियम और निजी तालाबों में पालने के लिए खरीदते हैं। कुछ खास जनजातियां इन कछुओं को खाने में भी इस्तेमाल करती हैं, लेकिन इनकी तस्करी की सबसे प्रमुख वजह पड़ोसी देश नेपाल के कुछ हिस्सों और चीन में व्याप्त अंधविश्वास ही है। जादू-टोने के लिए दोनों देशों में कछुओं की काफी अधिक मांग होने की इसकी वजह से इनकी बड़े पैमाने पर तस्करी होती है। हालांकि इस अंधविश्वास का कोई आधार नहीं है।