कसौटी : चर्चा में कोरोना वाली चाय Gorakhpur News
पढ़ें गोरखपुर से उमेश पाठक का साप्ताहिक कॉलम कसौटी----
उमेश पाठक, गोरखपुर। शहर के विकास की रूपरेखा तय करने वाले विभाग में एक साहब का कमरा आजकल चर्चा में है। चर्चा किसी गलत कारण से नहीं बल्कि यहां बनने वाली विशेष चाय को लेकर है। लॉकडाउन में कार्यालय तो खुल गया था लेकिन आसपास की चाय की दुकानें बंद होने से यहां आने वाले लोगों की चाय की मांग पूरी नहीं हो पा रही थी। ऐसे में साहब ने खास किस्म की चाय की व्यवस्था कर ली। जिसने चाय पी, उसकी विशेषता के चलते उसे 'कोरोना वाली चाय का नाम दे दिया। धीरे-धीरे यह चर्चा पूरे विभाग में फैल गई कि साहब की कोरोना वाली चाय बहुत अच्छी है। चर्चा के साथ चाय की मांग भी बढऩे लगी है। चाय बनाने वाले कर्मचारी कंप्यूटर चलाने में भी माहिर हैं। अब कमरे में आने वाले लोग कोरोना वाली चाय की मांग करना नहीं भूलते। साहब भी उनकी मांग को पूरा जरूर करते हैं।
वादे पर भारी नेताजी का ईगो
सक्रिय कार्यशैली के कारण पहचान बनाने वाले शहर के एक नेताजी की वादाखिलाफी आजकल चर्चा में है। औद्योगिक आस्थान वाली सड़क पर बसी एक कॉलोनी से सटे गोदाम में कुछ दिन पहले आग लग गई थी। इससे कॉलोनी के कई घरों में भी नुकसान हुआ। अर्थव्यवस्था में प्रमुख भूमिका निभाने वाले कई लोगों का आवास भी इसी कॉलोनी में है। अग्निकांड ने उनके मन में खतरे की आशंका पैदा कर दी। गोदाम को वहां से हटवाने के लिए प्रयासरत कॉलोनीवासियों से पहले शहर के प्रथम नागरिक मिलने पहुंचे। उसके बाद नेताजी ने भी जाने का वादा किया। पर, तय दिन नेताजी गोदाम मालिक से मिलकर ही लौट गए। कॉलोनी वाले इकट्ठा होकर उनका इंतजार ही करते रहे। बाद में बातों-बातों में पता चला कि नेताजी का ईगो उनके वादे पर भारी पड़ गया। वह चाहते थे कि जरूरत कॉलोनी वालों की है तो उन्हें ही उनके पास आना चाहिए था।
सुझाव पेटिका लगी है, ढूंढ के दिखाओ
लॉकडाउन ने सरकारी विभागों की कार्यशैली को बदल दिया है। कार्यालय तो खुल गए लेकिन अभी साहब और कर्मचारी आम जनता से मिलने में परहेज कर रहे हैं। लोगों की समस्या सुनने को बीच का रास्ता निकालने की कोशिश की गई है। इसी के तहत अनियोजित विकास पर डंडा चलाने वाले शहर के विभाग में लोगों को दूर रखने के लिए शिकायत व सुझाव पेटिका लगाई गई है। पर, लोगों के लिए पेटिका को ढूंढ पाना आसान नहीं है। जिस स्थान पर इसे लगाया गया है, किसी की सोच शायद ही वहां तक पहुंचे। पेटिका लगाते समय इस बात का ध्यान रखा गया है कि किसी के पग विभाग के परिसर में न पडऩे पाए। परिसर को सुरक्षित रखने वाली ऊंची बाउंड्री में ही सुराख कर पेटिका लगाई गई है। हालांकि बाहर इसकी जानकारी लिखी है लेकिन काफी किनारे पेड़ की आड़ में होने से उसे देख पाना आसान नहीं।
नजर में आ गए निगरानी रखने वाले
घरों में रोशनी करने का जिम्मा संभालने वाले विभाग में कुछ दिनों पहले हुए 'खेल की खूब चर्चा है। शहर में 'तृतीय की पहचान वाले कार्यालय के एक बाबू ने विभाग को खासा चूना लगाया था। भीतरखाने बात तो काफी पहले खुल गई थी लेकिन निगरानी की जिम्मेदारी निभाने वाले साहब ने कई दिनों तक इसपर पर्दा डाले रखा। चूना लगाने वाले को सुरक्षित रहने के लिए मौका भी दिया लेकिन उसने साहब की 'संवेदनाÓ की लाज नहीं रखी। नतीजतन साहब ने अपना वरदहस्त हटा लिया और चूना लगाने का मामला सार्वजनिक हो गया। खैर, बाबू पर कार्रवाई हुई लेकिन विभाग में इस बात की चर्चा होती रही कि निगरानी रखने वाले साहब का क्या होगा? चर्चा ऊपर तक पहुंची और निगरानी वाले भी नजर में आ गए। बड़े साहब ने कैश वाली कुर्सी पर बैठे लोगों के साथ निगरानी करने वालों की भूमिका जांचने का निर्देश दे दिया है।