साप्‍ताहिक कालम मुसाफिर हूं यारों: यहां वेंटिलेटर ही गिन रहे अंतिम सांस Gorakhpur News

गोरखपुर के साप्‍ताहिक कालम में इस बार पूर्वोत्‍तर रेलवे और गोरखपुर रेलवे पर फोकस किया गया है। रेलवे अस्‍पताल और कोरोना की बढ़ती स्थिति के बारे में जानकारी दी गई है। आप भी पढ़ें गोरखपुर से प्रेम नारायण द्विवेदी का साप्‍ताहिक कालम मुसाफिर हूं यारों...

By Satish Chand ShuklaEdited By: Publish:Tue, 11 May 2021 04:29 PM (IST) Updated:Tue, 11 May 2021 04:29 PM (IST)
साप्‍ताहिक कालम मुसाफिर हूं यारों: यहां वेंटिलेटर ही गिन रहे अंतिम सांस Gorakhpur News
ललित नारायण मिश्र केंद्रीय अस्पताल का फोटो, जेएनएन।

गोरखपुर, प्रेम नारायण द्विवेदी। 50 हजार कर्मचारियों वाले पूवरेत्तर रेलवे के प्रमुख ललित नारायण मिश्र केंद्रीय अस्पताल में महज 25 बेड का कोविड सेंटर है। उसमें भी न आक्सीजन है और न आवश्यक दवाएं। आधा दर्जन से अधिक वेंटिलेटर गोदाम में पड़े अंतिम सांसें गिन रहे हैं। न अस्पताल प्रबंधन को चिंता है और न रेलवे प्रशासन को। क्या करें, आज तक इन्हें चलाने वाला कोई मिला ही नहीं। मरीजों की देखभाल के लिए प्रशिक्षु पैरा मेडिकल स्टाफ लगा दिए गए हैं। कोरोना योद्धा का दावा ठोंकने वाले कुछ अवकाश पर चले गए हैं। कुछ संक्रमण से लड़ रहे हैं। परिणाम सामने है। रोजाना चीख-पुकार मच रही है। एक दिन तो छह मरीजों की सांसें थम गईं। बातचीत में यूनियन के एक पदाधिकारी की टीस निकली। बोले, न वेंटिलेटर चलेंगे और न इलाज करना पड़ेगा। रेफर करने पर जेब भरेगी। काश, जिम्मेदारों की संवेदना जिंदा रहती, तो शायद रेलकर्मियों की सांसें बंद नहीं होतीं।

अब याद आया प्रोटोकाल

ठीक दस दिन पहले रोडवेज की बसों में पैर रखने की जगह नहीं बचती थी। यात्रियों की कौन कहे, तमाम चालक और परिचालक तक फेसमास्क का उपयोग नहीं करते थे। डिपो परिसर में घोषणा होती रहती थी, कोविड-19 प्रोटोकाल का पालन करें, शारीरिक दूरी बनाएं। सख्ती वाले कुछ आदेश भी हुए, लेकिन अनुपालन नहीं हुआ। बसों में सीट के लिए धक्का-मुक्की होती रहती। न कोई प्रोटोकाल था और न डर। अधिक कमाई के चक्कर में विभाग बसों की धुलाई भी भूल गया था। यात्री को बुखार आने पर उसे रास्ते में उतार दिया जाता था। अब जब गांवों में भी पूरी तरह संक्रमण फैल गया है। कई चालक-परिचालक भी संक्रमित होकर घर चले गए हैं। यात्रियों की संख्या आधे से भी कम हो गई हैं। बसें खड़ी होने लगी हैं, तो परिवहन निगम को कोविड प्रोटोकाल की याद आई है। अब यात्रियों के थर्मल स्कैनिंग की बात चल रही है।

आक्सीजन खोज रहे रेलवे के रक्षक

आमजन को सुरक्षित करने के लिए 14 स्टेशनों पर खड़े रेलवे के रक्षक आज खुद आक्सीजन खोज रहे हैं। अधिकतर अपने जीवन के अंतिम पड़ाव पर हैं। कुछ इलाज (मरम्मत) की बाट जोह रहे हैं। ताकि, भले ही संक्रमितों के इलाज में सहयोग न कर सके। कम से कम अपने पैरों के सहारे कारखाने तक तो पहुंच जाएं। रक्षक के रूप में खड़े कोविड कोचों की पीड़ा अनायास नहीं है। एक साल से वे पटरियों पर इस इंतजार में खड़े थे कि एक न एक दिन उन्हें भी सेवा का मौका मिलेगा। वे भी पुण्य के भागी बनेंगे, लेकिन होम आइसोलेशन ने उनकी इच्छाओं पर पानी फेर दिया। ऐसे में न राज्य सरकार उनका उपयोग कर रही है और न रेलवे प्रशासन उन्हें वापस कारखानों में ले जा रहा। पूवरेत्तर रेलवे ने संक्रमित लोगों के प्राथमिक उपचार व क्वारंटाइन के लिए लाखों खर्च कर 217 कोविड कोच तैयार किए हैं।

बिना लाकडाउन खड़ी हो जाएंगी ट्रेनें

दो माह पहले स्टेशनों पर चहल-पहल देख मुस्कुराने वाले रेलकर्मियों के चेहरे फिर से मुरझाने लगे हैं। कारण भी है, अधिकतर साथी कोरोना संक्रमित हो गए हैं। ट्रेनों को संचालित करने वाले होम क्वारंटाइन होने लगे हैं। जो स्टेशन या दफ्तर पहुंच रहे हैं, वे भी सहमे हैं। मन में पिछले साल वाला भय, कहीं फिर से यात्री ट्रेनों के पहिए न थम जाएं। यही स्थिति रही तो बढ़ते संक्रमण के चलते ट्रेनें खड़ी हो जाएंगी। कर्मचारियों की यह आशंका निमरूल नहीं है। जिस हिसाब से रेलकर्मी संक्रमित हो रहे हैं, उसके अनुरूप न उपचार हो रहा और न ही टीकाकरण। बातचीत में फ्रंटलाइन कर्मचारी संगठन के एक पदाधिकारी की पीड़ा उभर आई। बोले, 18 वर्ष से ऊपर की कौन कहे, अभी 45 वर्ष से अधिक उम्र वाले रेलकर्मी ही टीका के लिए लाइन में खड़े हैं। वरिष्ठ ही नहीं, कम आयु के रेलकर्मियों में भी भय और दहशत है।

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