साप्‍ताहिक कालम हाल-बेहाल : साहब ने पास नहीं फटकने दिया Gorakhpur News

गोरखपुर से साप्‍ताहिक कालम में इस बार नगर निगम को फोकस किया गया है। नगर निगम के अधिकारी कर्मचारी एवं महापौर तथा सभासदों की कार्य प्रणाली पर खबर लिखी गई है। आप भी पढ़ें गोरखपुर से दुर्गेश त्रिपाठी का साप्‍ताहिक कालम हाल-बेहाल---

By Satish Chand ShuklaEdited By: Publish:Tue, 20 Apr 2021 03:52 PM (IST) Updated:Tue, 20 Apr 2021 03:52 PM (IST)
साप्‍ताहिक कालम हाल-बेहाल : साहब ने पास नहीं फटकने दिया Gorakhpur News
गोरखपुर नगर निगम के भवन का फाइल फोटो, जागरण।

गोरखपुर, दुर्गेश त्रिपाठी। पुराने वाले साहब भले ही बाजार में पहुंचकर रिजर्व हो जाते थे, लेकिन कार्यालय आते ही उनका दरबार लगने लगता था। सुबह से शाम तक दरबार में कुर्सी तोड़ने वाले अफसर भी मिल जाते थे। यहां तक कि कुर्सी भी फिक्स हो गई थी। साहब के आते ही दरबारी एक-एक कर पहुंच जाते थे। साहब अनाज पर नजर रखने के लिए राजधानी गए तो दरबार लगना भी बंद हो गया। शहर के दूसरे छोर वाले साहब को जिम्मेदारी मिली तो दरबारी सक्रिय हुए। सब चाहते थे कि दरबार फिर से लगना शुरू हो जाए, लेकिन साहब के पास पहले तो जिम्मेदारियों का बोझ और दूसरे उनका अंतरमुखी स्वभाव दरबारियों को बेचैन करने लगा। साहब सिर्फ काम से काम रखते थे और सुबह ही शहरियों को सुविधाएं देने के लिए निकल पड़ते थे। वह खुद लोगों के पास चले जाते थे, इसलिए अफसरों को कभी अपने साथ फटकने भी नहीं दिया।

..करते हैं ज्यादा काम

सफाई महकमे में एक साहब कम बोलते हैं। साहब को जितना काम मिलता है वह समय से पूरा कर देते हैं। कोरोना के कारण महकमे में एक के बाद एक लोग बीमार पड़ने लगे तो साहब का दायित्व बढ़ता चला गया। पहले दो नंबर वाले साहब संक्रमित हुए, उनके बाद बड़े साहब की भी जांच रिपोर्ट पाजिटिव आ गई। दोनों अफसर आइसोलेशन में चले गए, तो जिम्मेदारी दो नंबर वाले साहबों पर आ गई। सबसे छोटे साहब के परिवार में कुछ समस्या आयी, तो उनको भी छुट्टी पर जाना पड़ा। कम बोलने वाले साहब पर जिम्मेदारियों का बोझ आया तो कई लोगों ने मजाक भी उड़ाया। बोलते फिरते रहे कि अकेले साहब कर ही क्या सकते हैं, लेकिन साहब ने जिस तेजी में काम करना शुरू किया, सबकी बोलती बंद हो गई। अब साहब हर जगह पहुंचते हैं और काम न करने वालों को खूब टाइट भी कर रहे हैं।

तुम नहीं मिलोगे तो कहां तलाशूंगा

बाबू जी कोई भी काम करना हो तो फूंक-फूंक कर कदम रखते हैं। ऐसा नहीं है कि कोई कुछ लिखकर ले जाए और बाबू जी उस पर फटाक से दस्तखत कर दें। कोई फाइल आती है तो पहले पीए से पढ़वाते हैं। समस्या का ज्ञापन रहता है तो अफसर को मार्क करा देते हैं पर कोई विकास कार्यों से जुड़ा ज्ञापन रहता है, तो पहले समझते हैं और फिर बजट की बात करते हुए आश्वासन देते हैं। एक दिन दो युवक कुछ प्रमाण पत्र लेकर बाबू जी के सामने हाजिर हुए। नियमों का हवाला देते हुए दस्तखत करने का अनुरोध करने लगे। पीए ने बताया कि दस्तखत की जा सकती है, लेकिन इन लोगों का आधारकार्ड लेना भी अनिवार्य है। युवक आनाकानी करने लगे तो फूल के कारोबार से जुड़े छोटे माननीय ने अपनी गारंटी दी। बाबू जी बोले, बिना आधारकार्ड दस्तखत नहीं करूंगा, तुम नहीं मिलोगे तो कहां तलाशूंगा।

दबाव बना तो कम हुआ तेल का खेल

महकमे में तेल का खेल किसी से छिपा नहीं है। तेल ही कमाई का रास्ता खोलता है। तेल की लगातार जरूरत बताकर खेल से जुड़े लोग चांदी काटते हैं। बारिश के दिनों में तो तेल की खपत के कहने ही क्या। कहीं जलभराव का हवाला देकर पंपिंग सेट लगवा लिया जाता है और फिर बिना पंप चले तेल की खपत कागजों में शुरू हो जाती है। राजधानी जा चुके पुराने वाले बड़े साहब ने लगाम लगाने की कुछ शुरुआत की, लेकिन धंधे से जुड़े लोग दरबार में हाजिर होने लगे, तो दबाव धीरे-धीरे खत्म होने लगा। खुलकर तेल का खेल शुरू हो गया था। उनके जाने के बाद शहर के दूसरे छोर वाले साहब आए तो तेल के खेल पर लगाम लगाना शुरू किया। बाबू जी के दाहिने हाथ यानी दो नंबर वाले माननीय भी सक्रिय हुए, तो धंधेबाज डरने लगे। अब सबकी निगाह नए वाले बड़े साहब पर है।

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