साप्ताहिक कालम मुसाफिर हूं यारों: मुंह और नाक ढंकना भी है जरूरी Gorakhpur News
गोरखपुर के साप्ताहिक कालम में इस बार पूर्वोत्तर रेलवे के गोरखपुर को आधार बनाया गया है। गोरखपुर के रेलवे कर्मचारियों और अधिकारियों के दैनिक क्रिया कलापों और कार्य व्यवहार पर रिपोर्ट दी गई है। आप भी पढ़ें गोरखपुर से प्रेम नारायण द्विवेदी का साप्ताहिक कालम मुसाफिर हूं यारों---
गोरखपुर, प्रेम नारायण द्विवेदी। तेज कदमों से फस्र्ट क्लास गेट से बाहर निकल रहे एक यात्री के कंधे से बैग गिर गया। घबराहट देख मुझे लगा कुछ हुआ है। अभी कुछ पूछता, कई लोग जुट गए। एक ने बताया, मास्क नहीं लगाए थे। रेलवे की जांच टीम ने 100 रुपये जुर्माना ले ली है। डर के मारे भागे जा रहे हैं कि और न देना पड़े। बात काटते हुए यात्री अपनी सफाई देने लगा। मैं तो मास्क लगाया ही था, लेकिन मुंह और नाक नहीं ढंका था। दूसरे ने कहां, यही तो गलती कर दी। तीसरे से रहा नहीं गया। इशारा करते हुए बोल पड़ा, इन्हें तो समझाकर छोड़ा भी जा सकता था। लेकिन बिना मास्क लगाए जो रेलकर्मी प्लेटफार्मों पर घूम रहे हैं। उनसे तो कोई अर्थ दंड नहीं वसूलता। चौथे ने कहा, अरे भाई। सुरक्षाकर्मी, सफाईकर्मी और वेंडर तो कोरोना मित्र हैं। लेकिन हमें तो अपना ख्याल रखना ही होगा। सिर्फ मास्क लगाना ही नहीं मुंह और नाक ढंकना भी जरूरी है। सब मास्क संभालते अपनी राह चल दिए।
बोगानी शादी में अब्दुला दीवाना
कहावत सुनी होगी, बेगानी शादी में अब्दुला दीवाना। रेलवे के एक कर्मचारी संगठन की कार्यशैली भी इस जुमले से काफी मिलती जुलती है। संगठन की गतिविधियां भी कर्मियों के बीच चर्चा का विषय बनी रहती हैं। कार्यक्रम किसी का हो, ढिढोरा उनकी ही बजनी चाहिए। इसके लिए वे कुछ भी करने को तैयार भी रहते हैं। इंटरनेट जमाने के हिसाब से कहें तो पहले वे छोटे दलों व उनके कार्यक्रमों को हैक करते थे। अब बड़े कार्यक्रमों में भी हाथ-पैर मारना शुरू कर दिया है। हाल ही में कभी-कभार धरना-प्रदर्शन कर चर्चा में आने वाले संगठन ने पहली बार कोई बड़ा कार्यक्रम किया। पूरा आयोजन समाप्त हो गया, लेकिन लोगों को समझ में नहीं आया कि आखिर यह आयोजन कौन करा रहा है। स्वागत से लगायत, बैनर, होर्डिग, मंच और मीडिया में भी अब्दुला ही दीवाना बना रहा। मुख्य आयोजक व पदाधिकारी हर बार की तरह कोने में दर्ज कर लिए गए।
रात में निकल रहे प्रवासियों के शिकारी
कोरोना की दूसरी लहर तेज हो गई है। खासकर महाराष्ट्र से पूर्वांचल के लोगों का पलायन भी शुरू हो गया है। लोग घर आने लगे हैं। मजे की बात यह है कि परदेसी पिछली बार परदेस में ही छले गए थे, लेकिन इस बार अपनों के बीच ही ठग लिए जा रहे हैं। दरअसल, जब से सरकार ने गोरखपुर में भी कफर्यू की घोषणा की है। तब से प्राइवेट वाहन वाले आटो, टैक्सी, जीप, बोलेरो और मिनी बस वाले भी अवसर का लाभ उठाने लगे हैं। रात होते ही स्टेशन के सामने उनकी जमघट लग जा रही है। एक सप्ताह की कमाई वे एक ही रात में पूरी करना चाहते हैं। स्टेशन पर देर रात उतरने वाले प्रवासियों से 50 से 100 की जगह 1000 से 1200 रुपये तक वसूल रहे हैं। मरता क्या न करता। संक्रमण के भय और स्वजन से मिलने की जल्दी में प्रवासी जेब ढीली करने को मजबूर हैं।
ऐसे सवाल कि नहीं आया एक भी जवाब
रेलवे में जितना कठिन नौकरी मिलना है, उससे कहीं अधिक मुश्किल पदोन्नति पाना है। अगर नौकरी मिल भी गई तो आगे की कुर्सी पर पहुंचने के लिए नाकों चने चबाने पड़ेंगे। नियमानुसार पदोन्नति पाने के लिए विभागों का चक्कर लगाना होगा। नियम और कानून हैं पढऩे और याद करने में ही कर्मचारियों की नौकरी कट जाती है। इसके बाद भी पदोन्नित का लाभ नहीं मिल पाता है।परीक्षा के जरिये पदोन्नति पाना और टेढी खीर है। परीक्षा पास करना भी इतना आसान नहीं। अगर किसी ने विभागीय परीक्षा पास कर लिया तो धरना-प्रदर्शन आवश्यक हो जाता है। इसके बाद भी पदोन्नति की कोई गारंटी नहीं। अगर बीच का रास्ता निकल गया तो बल्ले-बल्ले। नहीं तो तैयारी करते रहिए। पिछले माह ही मुख्यालय स्थित प्रबंधन विभाग में निरीक्षक के पद के लिए आयोजित परीक्षा में ऐसे सवाल पूछे गए थे कि कोई कर्मचारी पास ही नहीं हुआ। अब फिर से परीक्षा कराने की तैयारी चल रही है। बातचीत में परीक्षा में बैठे कर्मचारियों की टीस निकल ही गई। यहां तो परीक्षा से पहले ही अभ्यर्थियों को फेल कर दिया जाता है।