साप्ताहिक कालम हाल बेहाल : क्या से क्या हो गया देखते-देखते Gorakhpur News
गोरखपुर के साप्ताहिक कालम में इस बार नगर निगम के अधिकारियों एवं कर्मचारियों की कार्य प्रणाली पर आधारित है। इसमें सफाई विभाग को केंद्रित किया गया है। यह रिपोर्ट उनकी दिनचर्या पर आधारित है। आप भी पढ़ें गोरखपुर से दुर्गेश त्रिपाठी का साप्ताहिक कालम हाल बेहाल---
दुर्गेश त्रिपाठी, गोरखपुर। कहां सिर पर विजेता की पगड़ी पहननी थी और कहां विजेता के बगल में जबरदस्ती चेहरे पर बनावटी हंसी लाकर विजयी चिह्न बनाना पड़ा। सफाई महकमे में दो नंबर बनने के लिए काफी समय से मेहनत करने वाले एक छोटे माननीय ने तेजी से दौड़ रहे राजनीति के पहिये के सामने बड़ी बैरिकेडिंग देखकर खुद को रोक लिया, लेकिन नौसिखिया माननीय ग'चा खा गए। खुद को रोकने वाले माननीय की राजनीतिक पृष्ठभूमि पहले से मजबूत है इसलिए वह समझ गए कि इस बार नहीं गलने वाली दाल है, लेकिन दूसरे वाले ने इसे अपने तरीके से समझते हुए दावेदारी की गाड़ी की रफ्तार नियंत्रण से बाहर होने के मुकाम पर पहुंचा दी। कुछ लोग समझाते रहे, लेकिन इसी बीच किसी ने चढ़ा दिया कि अब ताजपोशी पक्की है, लेकिन आखिरी समय में सपना चकनाचूर हो गया। दोबारा एंट्री करने वाले को गंभीर चेहरे के बीच मुस्कुराते हुए माला पहनानी पड़ी।
काबू में कैसे आया 'उस्ताद
आजकल सफाई महकमे में कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा सरीखा एक ही सवाल गूंज रहा है, 'काबू में कैसे आया उस्तादÓ। हर तरफ यही पूछा जा रहा है। विपक्ष वाली पार्टी उसे अपना समझ रही थी। एकदम भरोसा था कि दुनिया इधर से उधर क्यों न हो जाए, पार्टी भले ही जरूरी वोट न जुटा पाए, लेकिन 'उस्तादÓ तो साथ ही रहेगा। एक हाथ उठा तो भी विपक्ष वालों को भरोसा नहीं हो रहा था कि अब समीकरण बदल गया है। आंखों पर भरोसा नहीं हुआ तो विपक्ष वालों ने एक वोट को गलत तरीके से जोडऩे का आरोप लगाया। तभी दोनों हाथ ऊपर उठे और आवाज आयी, 'मैं ताकतवर पार्टी के प्रत्याशी के साथ हूं।Ó विपक्ष वाले सकते में आ गए। समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या कहें। सांप सूंघने जैसी पोजीशन पर पहुंचने के बाद सिर झुकाने के अलावा कोई विकल्प भी नहीं था।
सबका आया, मेरा नंबर कब आएगा
मौसम तो तबादले का नहीं है, लेकिन कुछ लोग अपना नंबर जानने के लिए काफी परेशान हैं। महकमे में साहब परेशान हैं कि उनका नंबर कब आएगा। मतलब तबादला से है। कुछ साहब तबादला सूची के इंतजार में सुबह से शाम तक आंखें खोलकर मेल चेक करने में जुटे रहते हैं। एक साहब की वर्षों की मुराद पूरी हुई, तो दूसरे वाले ललचाई निगाह से उनकी खुशी देखते रहे। साहब के तबादले की जैसे-जैसे पुष्टि होती गई, दूसरे वाले साहब के चेहरे की चमक भी जाती रही। साहब खुद भी अपने नंबर का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन सूची है कि उनका नाम समाहित नहीं कर पा रही है। हालांकि नए साल में साहब के साथ बस एक बात अ'छी हुई। पाप बोध से हमेशा घिरी रहने वाली व्यवस्था से बड़े साहब ने उन्हें मुक्त कर दिया। उनके समेत अब भी कई लोग अपने नंबर का इंतजार कर रहे हैं।
सब भावी अधिकारी हैं, देख लेंगे
सफाई महकमे से एक-एक कर अफसरों की विदाई हो रही है। जो जा रहा है, उसका काम दूसरे को सौंप दिया जा रहा है। कभी दो नंबर पर रहे साहब पश्चिम गए तो उनका काम राजस्थानी टोपी वाले साहब को दे दिया गया। अब वरिष्ठता की सूची में तीसरे नंबर पर आसीन साहब की राजधानी में तैनाती हो गई। लंबे समय से जाने के लिए परेशान साहब ने चिट्ठी आते ही कार्यभार सौंपा और नमस्ते करते हुए निकल पड़े। उनकी जगह पर भी कोई नहीं आया। बड़े साहब ने उनके ज्यादातर काम दूसरे नंबर वाले साहब को दे दिए हैं। लंबे समय से साइडलाइन चल रहे साहब को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिलने पर बड़े साहब ने बधाई दी तो उन्होंने छुट्टी मांग ली। बड़े साहब बोले, आप नहीं रहेंगे तो काम कैसे चलेगा। दो नंबर वाले भी कम नहीं, बोले, साहब सामने सभी भावी अधिकारी ही बैठे हैं, सब देख लेंगे।