बड़ी बेचैन रहती हैं किताबें Gorakhpur News
गोरखपुर के साप्ताहिक कालम में इस बार पुलिस और वन विभाग पर फोकस करती खबर दी गई है। दोनो विभागों की कार्य प्रणाली और दिनचर्या पर आधारित पठनीय रिपोर्ट है। आप भी पढ़ें गोरखपुर से नवनीत प्रकाश त्रिपाठी का साप्ताहिक कालम-तीसरी नजर---
नवनीत प्रकाश त्रिपाठी, गोरखपुर। एक दौर था जब सार्वजनिक लाइब्रेरी शहरों की खास पहचान होती थीं। पढ़ने-लिखने के शौकीनों का सुबह से लेकर देर शाम तक यहां जमावड़ा रहता था। किताबों की जगह कंप्यूटर ने लेना शुरू किया तो लाइब्रेरियां वीरान होने लगीं। फिर भी किताबें किलो के भाव बिकेंगी, किसी ने कल्पना नहीं की होगी। वह भी फिराक और प्रेमचंद के शहर गोरखपुर में। बात सोलह आने सच है। इन दिनों शहर में कई स्थानों पर किताबें किलो के भाव बिक रही हैं। दुकानदारों ने किलो के भाव किताबें बेचने के लिए बड़े-बड़े इस्तेहार भी लगा रखे हैं। किताबों की इस स्थिति पर गुलजार की यह पंक्तियां बरबस ही याद आ जाती हैं..
किताबें झांकती हैं बंद आलमारी के शीशों से,
बड़ी हसरत से तकती हैं, महीनों अब मुलाकातें नहीं होतीं
जो शामें उनकी सोहबत में कटा करती थीं,
अब अक्सर गुजर जाती हैं कंप्यूटर के पर्दे पर, बड़ी बेचैन रहती हैं किताबें।
दारोगाजी का कुर्सी मोह
नेताओं के कुर्सी मोह के बारे में हर कोई जानता है। कुर्सी हासिल करने और उस पर बने रहने के लिए तरत-तरह के हथकंडे अपनाते हैं। कुछ तो ऐसे हैं, जो किसी भी हद तक जा सकते हैं, लेकिन इन दिनों पुलिस विभाग में एक दारोगा जी का कुर्सी मोह चर्चा में है। कुछ माह पहले तक वह बेलघाट थाने के थानेदार थे। बाद में हरपुर बुदहट थाने के थानेदार बनाए गए। हरपुर बुदहट में उनके थानेदार बनते ही अपराध में बेतहाशा वृद्धि हुई। लिहाजा उनकी थानेदारी छिन गई। वह लाइन में आ गए। इसके बाद कुर्सी हासिल करने के लिए दारोगा जी छटपटाने लगे। बहुत हाथ-पांव मारा कि फिर से थानेदारी मिल जाय, लेकिन कामयाब नहीं हुए। बहुत दबाव बनाने पर महकमे के कप्तान ने उनके सामने चौकी इंचार्ज बनने का विकल्प रखा। बड़ी कुर्सी दूर देख दारोगा जी छोटी कुर्सी ही संभालने के लिए सहर्ष तैयार हो गए।
बिना हाकिम के चल रहा महकमा
पर्यावरण को हरा-भरा बनाए रखने की जिम्मेदारी वन विभाग की है। पेड़ों की कटान रोकना भी इसी विभाग का काम है। गोरखपुर-महराजगंज प्रभाग में वन क्षेत्र काफी विस्तृत है। जाहिर है, दो जिलों के वनक्षेत्र की सुरक्षा के लिए विभाग के पास अत्याधुनिक तकनीक और सुविधाओं के साथ ही पर्याप्त सुरक्षा बल का होना आवश्यक है, लेकिन वस्तुस्थिति इससे उलट है। कर्मचारियों की कौन कहे विभाग में अधिकारियों का भी टोटा है। एक तरफ प्रभागीय वनाधिकारी लंबी छुट्टी पर चल रहे हैं। वन प्रभागों के तीन सर्किल हैं। फरेंदा सर्किल के एसडीओ प्रभागीय वनाधिकारी का कार्यभार संभाल रहे हैं, तो सदर और बांसगांव सर्किल के एसडीओ, आंबेडकरनगर व संतकबीर नगर के प्रभागीय वनाधिकारी की जिम्मेदारी निभा रहे हैं। जरूरत 12 रेंज अफसरों की है, लेकिन सिर्फ तीन ही तैनात हैं। आठ रेंज का काम प्रभारी अधिकारी देख रहे हैं। कुल मिलाकर पूरा महकमा बिना हाकिम के ही चल रहा है।
लाइव लोकेशन ने बढ़ाई मुश्किल
अपराध और अपराधियों पर नियंत्रण के लिए पुलिसकर्मी तकनीक का खूब इस्तेमाल करते हैं। अपराधियों तक पहुंचने के लिए उनके मोबाइल फोन की लोकेशन पुलिस वालों के लिए बेहद कारगर हथियार साबित होती है। कोई भी घटना होने के बाद सबसे पहले आरोपित के मोबाइल फोन की काल डिटेल और उसकी लोकेशन ही निकाली जाती है, लेकिन यही तकनीक आजकल खुद पुलिस वालों के लिए परेशानी का सबब बन गई है। पुलिस कप्तान ने पिछले दिनों सभी थानेदारों, चौकी इंचार्जो और दारोगाओं को महकमे के ग्रुप में हर घंटे लाइव लोकेशन डालने का फरमान सुनाया। इससे पहले वायरलेस सेट के जरिए वे अपनी लोकेशन नोट कराते थे। इसका लाभ यह था कि थानेदार और दारोगा खुद कहीं रहते थे और लोकेशन कहीं और का बताकर अपनी सक्रियता साबित करते रहते थे। लाइव लोकेशन की व्यवस्था लागू होने के बाद थानेदारों और दारोगाओं को हकीकत में सक्रिय रहना पड़ रहा है।