बिंब-प्रतिबिंब: गले की फांस बना गुरुजी का फैसला Gorakhpur News

साप्‍ताहिक कालम में इस बार आकाशवाणी के गोरखपुर केंद्र पर फोकस किया गया है। जिसमें नेताओं कलाकारों एवं अन्‍य के बारे में पठनीय जानकारी दी गई है। आप भी पढ़ें गोरखपुर से डा. राकेश राय का साप्‍ताहिक कालम बिंब-प्रतिबिंब---

By Satish ShuklaEdited By: Publish:Tue, 24 Nov 2020 02:05 PM (IST) Updated:Tue, 24 Nov 2020 02:05 PM (IST)
बिंब-प्रतिबिंब: गले की फांस बना गुरुजी का फैसला Gorakhpur News
आकाशवाणी के गोरखपुर केंद्र भवन का फाइल फोटो।

गोरखपुर, जेएनएन। शिक्षा के सबसे बड़े मंदिर के बड़े गुरुजी का एक फैसला आजकल अन्य गुरुओं के गले की फांस बन गया है। फैसला है छुट्टी पर रोक लगाने का। दरअसल बड़े गुरुजी ने पूर्वांचल के विकास को लेकर संस्था की ओर से आयोजित होने वाले देशव्यापी कार्यक्रम की तैयारियों के मद्देनजर सभी गुरुजनों के साथ-साथ अधिकारियों और कर्मचारियों की छुट्टी पर रोक लगा दी है। ऐसे में सहालग और अन्य कार्यक्रमों में शामिल होने की योजना बना चुके गुरुजनों और कर्मचारियों की छुट्टी लेने की मंशा पर पानी फिर गया है। विशेष परिस्थिति में छुट्टी लेने के लिए अपने कार्यालय में आवेदन करने का जो विकल्प बड़े गुरुजी ने दिया है, वह 'आ बैल मुझे मार जैसा है। डर यह है कि आवेदन करने वाले को ही आयोजन से जुड़ी कोई बड़ी जिम्मेदारी न सौंप दी जाए। ऐसे में उसकी योजना पर पानी फिरने की रही-सही कसर भी पूरी हो जाएगी।

अब जाएं तो जाएं कहां

विधान परिषद की शिक्षक सीट पर फूल वाली पार्टी ने प्रत्याशी नहीं उतारने का फैसला करके अपने शिक्षक वोटरों के सामने बड़ा संकट खड़ा कर दिया है। संकट की सबसे बड़ी वजह वह तीन कार्यकर्ता हैं, जिन्होंने इस चुनाव में पार्टी की ओर से अपनी प्रत्याशिता का दावा करके पर्चा दाखिल कर दिया है। शिक्षक मतदाता असमंजस में हैं कि वह किसे पार्टी का असल प्रत्याशी मानें। इसे लेकर सबसे खराब स्थिति पार्टी के उन शिक्षक वोटरों की है, जिन्हें कार्यकर्ता होने के नाते चुनाव की घोषणा से पहले ही पार्टी प्रत्याशी को जिताने की योजना बनाने की जिम्मेदारी सौंप दी गई थी। मतदान केंद्र स्तर तक शिक्षक मतदाताओं को पार्टी के पक्ष में सहेजने की योजना बना चुके ऐसे शिक्षक कार्यकर्ता अब नजर छिपाते फिर रहे हैं। उन्हें समझ में नहीं आ रहा कि अब वह उन मतदाताओं से किस प्रत्याशी के पक्ष में मतदान करने के लिए कहें।

रेडियो अब कब्बो ना बाजी का?

बीते दिनों आकाशवाणी गोरखपुर का मीडियम वेब प्रसारण बंद होने की खबर की जिले में ही नहीं, बल्कि प्रदेश भर में खूब चर्चा रही। कुछ लोगों ने चर्चा की तो कुछ विरोध में आगे भी आए। इन सबके बीच एक बात कामन रही कि कम ही लोग समझ पाए कि आखिर बंद क्या हुआ है, आकाशवाणी केंद्र या रेडियो के मीडियम वेब से होने वाला प्रसारण। विरोध करने वाले कई तो इस आधार पर लड़ते देखे गए कि मानो आकाशवाणी केंद्र ही बंद हो गया। उन्हें यह बात सुननी भी गंवारा नहीं थी कि विविध भारती का प्रसारण उसी आकाशवाणी केंद्र से हो रहा है, जिसके बंद होने के विरोध में वह लडऩे के लिए आमादा हैं। मजे की बात यह रही कि कुछ लोग यह समझ बैठे कि रेडियो अब बजेगी ही नहीं। तभी तो एक व्यक्ति कहते सुने गए कि 'का भाई, रेडियो अब कब्बो ना बाजी का?

चला मुरारी नेता से हीरो बनने

सदर सांसद ने भले ही फिल्मी दुनिया से नेतागिरी तक का सफर तय किया हो, लेकिन उन्हें देखकर शहर के कुछ युवा नेतागिरी से फिल्मी दुनिया में पहुंचने का सपना देखने लगे। सपना देखने की पृष्ठभूमि तब बनी, जब बीते दिनों शहर में एक यू-ट्यूब चैनल के लिए सीरियल की शूटिंग शुरू हुई और सांसद उसमें मुख्य भूमिका निभाते दिखे। हालांकि युवाओं को अपना सपना जल्द ही टूटता नजर आने लगा, क्योंकि उन्हें सीरियल काम तो मिल नहीं पाया, उल्टे पार्टी के काम के झंझट में जरूर फंस गए। ऐसे ही दो युवा बीते दिनों चाय की दुकान पर चुटीले अंदाज में आपबीती साझा करते दिखे। एक ने कहा, सांसद के करीब जाने के लिए मैंने फूल वाली पार्टी ज्वाइन कर ली। सोचा इसी बहाने सीरियल में काम पाने का रास्ता निकाल लूंगा। तभी दूसरा बोला, सीरियल में तो काम मिला नहीं, उल्टे पार्टी का काम जरूर लाद दिया गया।

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