गोरखपुर से साप्ताहिक कालम कसौटी: इस हार में भी जीत है Gorakhpur News
Weekly column from gorakhpur सामान्य निर्वाचन था तो इस बाहुबली और उसकी अर्धांगिनी का दावा खारिज हो गया था। सीट खाली होने से उपचुनाव की नौबत आ गई। इस बार तैयारी भरपूर थी। अर्धांगिनी का दावा खारिज नहीं हो सकता था।
गोरखपुर, उमेश पाठक। ब्लाक प्रमुखी को लेकर जोर-आजमाइश बढ़ गई है। सर्वाधिक चर्चा में है औद्योगिक क्षेत्र से सटा ब्लाक। धन और बाहुबल की बदौलत यहां पांच साल तक दबदबा रखने वाले ने इस बार भी गोटियां सेट की थीं, लेकिन उसे रोकने वाले भी गजब के होशियार निकले। सामान्य निर्वाचन था तो इस बाहुबली और उसकी अर्धांगिनी का दावा खारिज हो गया था। सीट खाली होने से उपचुनाव की नौबत आ गई। इस बार तैयारी भरपूर थी। अर्धांगिनी का दावा खारिज नहीं हो सकता था। खारिज होने पर न्यायालय में जाने का विकल्प भी था पर, दावा खारिज कर दिया गया और खारिज करने वाले की गलती भी सार्वजनिक हो गई। इस गलती का प्रचार भी हुआ, मुकाबला ही निरस्त कर दिया गया। इसे कुछ लोग बाहुबली के प्रभाव से जोड़कर देख रहे हैं लेकिन चर्चा यह भी है कि उसे रोकने में लगे लोगों की इस हार में भी जीत है।
चीनी की तरह घुलनशील हैं नेताजी
ऐसे प्रतिभाशाली बहुत ही कम नजर आते हैं, जिनकी हर खेमे में बराबर की दखल हो, पर जिले के पश्चिम ओर स्थित औद्योगिक क्षेत्र से सटे ब्लाक की राजनीति करने वाले नेताजी में यह प्रतिभा कूट-कूटकर भरी है, यानी नेताजी चीनी की तरह घुलनशील हैं। क्षेत्र में कई प्रभावशाली हैं और एक-दूसरे के प्रतिद्वंद्वी भी। इस समय प्रमुखी के चुनाव में भी यह खींचतान खूब नजर आ रही है। दो चिर प्रतिद्वंद्वी एक-दूसरे को काटने पर लगे हैं पर, इस गर्म माहौल के बीच भी नेताजी अपना काम शांत मन से कर रहे हैं। इन दोनों गुटों में भी इनकी बराबर पकड़ है। गांव की प्रधानी कई बार कर चुके हैं, इस बार भी परिवार में ही है प्रधानी। आर्थिक साम्राज्य खड़ा है तो अबकी प्रमुखी का भी मन बना लिया है। भीतर-भीतर गोटी सेट भी कर चुके हैं और दोनों प्रतिद्वंद्वियों को अबतक खुश रखने में कामयाब भी हैं।
खुशी इतनी कि मन में न समाए
पिछले कुछ दिनों में बड़े तबादले हुए। गोरखपुर में एक बड़ा बदलाव हुआ। आम जनता ने इस बदलाव को सामान्य रूप में ही लिया पर एक वर्ग के चेहरे पर इस सूचना ने खुशी की चमक बिखेर दी। दरअसल यह खुशी 'साइकिल के सवारों की है। तबादले की परिणति के रूप में जिस बड़े साहब का यहां आगमन हुआ, वह पहले यहां रहे हैं और उस समय 'साइकिलÓ पूरे रफ्तार में थी। अपने व्यवहार के कारण साहब यूं तो सबके चहेते थे, पर 'साइकिल सवार उनपर अधिक हक मानते थे। करीब छह साल बाद एक बार फिर जब साहब की वापसी बड़े पद पर हुई तो मानो इन सवारों का चार साल का बनवास समाप्त हो गया। कुछ दिन इस साहब के पास सीयूजी फोन नहीं था, उसके बावजूद खुशी मन वाले लगातार इस चाह में घंटी बजाते रहे कि साहब फोन उठाएं और उन्हें अपना नाम याद दिला सकें।
'अनलाक में भी लापरवाही को करें 'लाक
पूरे प्रदेश के साथ गोरखपुर और आसपास के जिलों में भी अनलाक हो चुका है। सप्ताह में पांच दिन ही सही, 12 घंटे के लिए बाजार खुल रहे हैं। जरूरत का कोई भी सामान खरीदने के लिए इतना समय पर्याप्त है, पर इस अनलाक का यह मतलब नहीं कि कोरोना महामारी खत्म हो गई। कभी न भूल पाने वाली यह लहर भले अवसान की ओर हो, लेकिन एक नई लहर के दस्तक की आशंका भी खूब है। इसलिए अनलाक में अपनी लापरवाहियों को लाक ही रखें यानी सतर्कता जरूर बरतें। बाजार में अनावश्यक जाने की कोई जरूरत नहीं, जाना है तो मास्क लगा लें, भीड़ से दूर रहें। यह करते रहे तो किसी भी नई लहर की आशंका को हम पहले ही खत्म कर देंगे। अगर नहीं माने तो इस बार व्यवस्थाओं की उपलब्धता और जमीनी हकीकत से आप रूबरू हो ही चुके हैं। समय खुद को दोहरा सकता है।