बहन को अधिकार दिलाने के साथ शुरू हुआ वीरेंद्र का अभियान, सिस्टम को भी सुधारा Gorakhpur News
बहन को न्याय दिलाने में सफलता के बाद वीरेंद्र दूसरे पीडि़तों की मदद में लग गए। उनकी कोशिशों का नतीजा रहा कि सरकारी भवनों से अवैध कब्जे तो खाली हुए ही सड़कें भी रोशन हुईं।
गोरखपुर, जेएनएन। सिस्टम के भ्रष्टाचार और व्यवस्था में सुधार के लिए सूचना के अधिकार (आरटीआइ) को वीरेंद्र राय ने न केवल हथियार बनाया बल्कि जंग जीती भी। एक-दो नहीं कई मोर्चों पर। विधवा बहन को न्याय दिलाने में सफलता के बाद वीरेंद्र दूसरे पीडि़तों की मदद में लग गए। उनकी कोशिशों का नतीजा रहा कि सरकारी भवनों से अवैध कब्जे तो खाली हुए ही सड़कें भी रोशन हुईं। वीरेंद्र अब तक 500 से अधिक आरटीआइ लगा चुके हैं।
ऐसे शुरू हुआ काम करने का जुनून
अशोक नगर, बशारतपुर के वीरेंद्र राय दवा के थोक व्यापारी हैं। उनके बहनोई मार्कंडेय राय स्वास्थ्य विभाग में थे, जिनका जून 2013 में निधन हो गया। विभागीय कर्मचारी बगैर रिश्वत लिए देय का भुगतान करने को तैयार नहीं थे। बहन की परेशानी से आहत वीरेंद्र ने स्वास्थ्य विभाग के खिलाफ लड़ाई छेड़ दी और इसमें सूचना के अधिकार को हथियार बनाया। कुछ ही महीनों में मार्कंडेय के परिवार को न केवल देयों का भुगतान हुआ बल्कि बेटी को मृतक आश्रित कोटे से नौकरी भी मिली। वीरेंद्र ने इसके बाद प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री कार्यालय समेत विद्युत, स्वास्थ्य, शिक्षा, खाद्य सुरक्षा, जेल, मानवाधिकार, पर्यावरण आदि विभागों में दर्जनों आरटीआइ लगाकर भ्रष्टाचार को शिकस्त दी।
आरटीआइ के जरिये जीती जंग
ट्रांसफर के बावजूद क्वार्टर खाली न करने वाले कई कर्मचारियों ने आरटीआइ लगाते ही मकान खाली कर दिया। रेलवे में फसाड लाइट खराब हो गई थी, जो सूचना मांगने के बाद ठीक हो गई। रेलवे गेस्ट हाउस के कर्मचारी एक बुकिंग पर ही दो ग्राहकों को कमरा दे देते थे। सूचना मांगने के बाद इसमें सुधार हुआ। पात्रता के बावजूद डॉ. रोहित शाही का प्रवेश एसजीपीजीआइ में नहीं हो पा रहा था। आरटीआइ से यह संभव हो गया।
कई बार हुए हमले, फिर भी हिम्मत नहीं हारी
आरटीआइ कार्यकर्ता वीरेंद्र राय का कहना है कि आरटीआइ मांगने के चलते मुझ पर कई बार हमले हुए। झूठे मुकदमों में फंसाया गया, लेकिन मैं नहीं डिगा। समाज विरोधी ताकतें मुझे कभी डरा नहीं पाईं। मेरा अभियान जारी रहेगा।