गले के विकारों को दूर करेगा उज्जायी प्राणायाम, इस तरह से करें प्राणायाम Gorakhpur News
आसन में न बैठ सकें तो कुर्सी पर बैठें। दोनों नाक से श्वांस को भीतर खींचते हुए गले को सिकोड़ें इस दौरान गले में खर्राटे की तरह आवाज गूंजती है। श्वांस से अंदर जाने वाली हवा का घर्षण गले में हो नाक में नहीं होना चाहिए।
गोरखपुर, जेएनएन। कोरोना से श्वांस नली सबसे पहले प्रभावित होती है। इसके बाद इस वायरस की चपेट में गला व फेफड़े आते हैं। निगेटिव होने के बाद भी कोरोना बहुत से विकार गले में दे जाता है। जिसे दूर करने में उज्जायी प्राणायाम की भूमिका महत्वपूर्ण है। इसके अतिरिक्त टांसिल, स्लीपएप्निया, थायराइड, हकलाना, अस्थमा, श्वांस नली का सूजन आदि अनेक दोष गले से संबंधित होते हैं। भारत स्वाभिमान व पतंजलि योग समिति के शिक्षक इं. परदेशी मौर्य इन सब बीमारियों को दूर करने के लिए उज्जायी प्राणायाम करने की सलाह दे रहे हैं। उन्होंने बताया कि इसके नियमित अभ्यास से कंठ के सभी दोष दूर हो जाते हैं। इसका अभ्यास हृदय रोग, मानसिक तनाव, अजीर्ण व रक्तचाप आदि में भी लाभकारी है।
कैसे करें
नित्यकर्म से निवृत्त होकर किसी आरामदायक आसन में बैठें। आसन में न बैठ सकें तो कुर्सी पर बैठें। दोनों नाक से श्वांस को भीतर खींचते हुए गले को सिकोड़ें, इस दौरान गले में खर्राटे की तरह आवाज गूंजती है। श्वांस से अंदर जाने वाली हवा का घर्षण गले में हो, नाक में नहीं होना चाहिए। पूरी हवा अंदर भर कर दाहिने हाथ के अंगूठे से दाहिनी नाक को बंद करके बांयीं नाक से श्वास बाहर निकाल दें। कुछ दिनों तक अभ्यास होने के बाद कुंभक के साथ अभ्यास करें। कुंभक के साथ अभ्यास में भी श्वांस पहले की तरह भीतर भरें, ठुड्डी को गले के गड्ढे से मिलाएं एवं मल- मूत्र की इंद्रियों को ऊपर की ओर खींचें। जितनी देर में श्वांस भरें उतनी देर तक रोकें तथा उतनी ही देर में बांयीं नाक से बाहर निकालें। पांच से 10 चक्र अभ्यास करें। आवश्कतानुसार बढ़ा सकते हैं। अभ्यास के पश्चात गले में भारीपन आता है तो लार को निगलते हुए दो-तीन बार गले की मालिश कर लें। यह प्राणायाम करने के पूर्व यदि कपालभाति प्राणायाम कर लिया जाए तो और अच्छे परिणाम मिलते हैं।