गोरखपुर के टीबी अस्पताल में वे पांच दिन, आप भी जानें-एक कोरोना मरीज की दर्दभरी कहानी Gorakhpur News

निर्मेश श्रीवास्तव उन खुशनसीबों में शामिल हैं जो कोरोना संक्रमण के बाद अस्पताल में भर्ती हुए और वापस घर आ गए हैं। हालांकि सरकारी अस्पताल में पांच दिन का उन्हें ऐसा अनुभव मिला कि अब वह सरकार को पूरी हकीकत बताना चाहते हैं।

By Satish Chand ShuklaEdited By: Publish:Sat, 08 May 2021 10:16 AM (IST) Updated:Sat, 08 May 2021 05:27 PM (IST)
गोरखपुर के टीबी अस्पताल में वे पांच दिन, आप भी जानें-एक कोरोना मरीज की दर्दभरी कहानी Gorakhpur News
कोरोनावायरस के संबंध में फाइल फोटो, जेएनएन।

गोरखपुर, जेएनएन। बीमारी क्या हो गई, मानो हमने गुनाह कर दिया। जान बचाने अस्पताल पहुंचे तो वहां सिर्फ डांट मिली, अव्यवस्था से सामना हुआ और भ्रष्टाचार की तो पूछिए मत। तीन सौ रुपये में 15 बोतल पानी की मंगाते थे तो उसे वार्ड तक पहुंचाने के लिए अलग से चार सौ रुपये देने पड़ते थे। मां और भाभी के साड़ी के पल्लू में दूर से कर्मचारी दवा फेंकते थे। भाप की कौन कहे, गर्म पानी ही नहीं मिलता था। सरकार को व्यवस्था गुलाबी दिखायी जाती है लेकिन हकीकत यह है कि अस्पताल में ही जान के लाले पड़ गए थे।

सरकार काे बताना चाहते हैं हकीकत

जनप्रिय विहार वार्ड के निर्मेश श्रीवास्तव उन खुशनसीबों में शामिल हैं जो कोरोना संक्रमण के बाद अस्पताल में भर्ती हुए और वापस घर आ गए हैं। हालांकि सरकारी अस्पताल में पांच दिन का उन्हें ऐसा अनुभव मिला कि अब वह सरकार को पूरी हकीकत बताना चाहते हैं। कहते हैं कि, सब कुछ सरकार को पता चलेगा तो वह व्यवस्था ठीक जरूर करेगी। 13 अप्रैल को निर्मेश श्रीवास्तव की मां शीला, पत्नी अमृता, भाई मुकेश, भाभी अंजू व अंशू को बुखार के साथ खांसी आनी शुरू हुई। 14 अप्रैल को सभी दिग्विजयनगर स्थित नगरीय प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र कोरोना की जांच कराने पहुंचे लेकिन लाइन लगाने के बाद पता चला कि किट खत्म हो गई। अगले दिन फिर लाइन में लगे पर जांच नहीं हो सकी। 16 अप्रैल को जांच में निर्मेश, उनकी मां और भाभी अंशू में कोरोना संक्रमण की पुष्टि हुई तो सभी घर में आइसोलेट हो गए। उनको उम्मीद थी कि स्वास्थ्य विभाग के लोग आकर दवा देंगे पर कोई नहीं आया। 18 अप्रैल को हालत बिगड़ती तो एंबुलेंस सेवा को फोन किया। दो एंबुलेंस से तीनों को टीबी अस्पताल ले जाया गया। वहां अंदर जाते ही कर्मचारियों की फटकार से उनको बुरा अनुभव मिलना शुरू हुआ। इसके बाद इलाज से लगायत दवा तक में दिक्कत हुई। गंदगी इतनी कि शौचालय भी नहीं जा पाते थे। पानी तो मिलता ही नहीं था।

एक्सरे नहीं हुआ

निर्मेश बताते हैं कि डाक्टर ने लगातार तीन दिन तक एक्सरे कराने की सलाह दी। लेकिन कर्मचारी उन्हें लेकर गए ही नहीं। दबाव बनाया तो बोले कि खुद चलकर नीचे आओ। हालात यह थी कि एक कदम चलने में ही सांस फूल जाती थी तो सीढिय़ों से नीचे उतरना और फिर ऊपर चढऩा संभव ही नहीं था।

सरकार खर्च कर रही, जनता को लाभ नहीं मिल रहा

निर्मेश ने कहा कि व्यवस्था पर सरकार खर्च करने में कोई कमी नहीं कर रही है लेकिन कर्मचारी अपना काम सही से नहीं कर रहे हैं। यही वजह है कि उन्हें नर्सिंग होम जाना पड़ा।

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