इस बार मोहर्रम में ताजियों में नहीं दिखेंगे मशहूर मस्जिदों व दरगाहों के अक्स
ईद-उल-अजहा के बाद मोहर्रम पर भी कोरोना महामारी का प्रभाव देखने को मिल रहा है। कोरोना महामारी का प्रभाव त्योहाराें पर भी पड़ा है। शहर में इस बार आकर्षक ताजिया का दीदार नहीं हो सकेगा। इन ताजियों में बेहतरीन मजिस्दों दरगाहों का अक्स दिखता था।
गोरखपुर, जागरण संवाददाता। कोरोना महामारी का प्रभाव त्योहाराें पर भी पड़ा है। ईद-उल-अजहा के बाद मोहर्रम पर भी इसका असर दिख रहा है। इस बार मोहर्रम में आकर्षक ताजिया देखने को नहीं मिलेगा। इन ताजियों में दुनिया की बेहतरीन मस्जिदों, दरगाहों व मकबरों का अक्स नजर आता था। दरअसल जुलूस को लेकर असमंजस की स्थिति को देखते हुए अब तक ताजियों का निर्माण शुरू नहीं हो सका है। आमतौर पर बड़ा ताजिया बनाने में 45 से 90 दिनाें का वक्त लगता है।
अपना ताजिया दूसरों से अलग बनाने का करते हैं प्रयास
मोहर्रम पर खूबसूरत ताजियों का दीदार कर लोग अपने को खुशकिस्मत समझते हैं। सभी जगह लोग अपनी हैसियत के अनुसार अपना ताजिया दूसरों से अलग बनाने की कोशिश करते हैं। मोहर्रम की नौवीं और दसवीं तारीख की रात इन ताजियों को देखने दूर-दूर से लोग आते हैं।
सर्वश्रेष्ठ ताजिया के लिए आयोजित होती है प्रतियोगिता
सर्वश्रेष्ठ ताजिया के लिए प्रतियोगिता भी आयोजित होती है। प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय स्थान पर आने वाली ताजियों को पुरस्कृत किया जाता है। इन ताजियों की लागत 75 हजार से लेकर चार लाख रुपये तक आती है।
मशहूर और बड़ी मजिस्दों जैसी ताजिया बना चुके हैं हयात अहमद
14 वर्षों से ताजिया बना रहे गोरखनाथ के हयात अहमद ने बताया कि दुनिया की मशहूर और बड़ी मस्जिदों जैसी ताजिया बना चुके हैैं। इनमें सऊदी अरब की मस्जिद अल नबवी, बहरीन की अल फतह मस्जिद, मिस्र की अल अजहर मस्जिद और दिल्ली की शाही जामा मस्जिद शामिल है।
यहां जैसी ताजिया शायद ही कहीं और बनती होगी : मोहम्मद एजाज
दोस्तों के साथ आकर्षक ताजिया बनाने वाले जाहिदाबाद के मोहम्मद एजाज ने बताया कि शहर के अलग-अलग हिस्से से निकलने वाले ताजिया का जुलूस बेहद शानदार रहता है। यहां जैसी ताजिया शायद ही कहीं और बनती होगी। कोरोना की वजह से इस बार ताजिया नहीं बन पाएगी। रमजान, ईद, ईद-उल-अजहा जैसे गुजारा है वैसे मोहर्रम भी गुजारेंगे।