कौतूहल व आकर्षण का केंद्र बनी काठ की साइकिल
कुशीनगर के तमकुही ब्लाक के पगरा प्रसाद गांव के दुर्गेश ने काष्ठ कला की बारीकियों के साथ कल्पनाशीलता का समन्वय स्थापित किया है उनकी बनाई लकड़ी की साइकिल चलाते हुए सेल्फी लेने का युवाओं में जबरदस्त क्रेज हो गया है लोग उनके हुनर की तारीफ कर रहे हैं।
कुशीनगर : प्रतिभा संसाधन की मोहताज नहीं होती। इसका उदाहरण प्रस्तुत किया है तमकुही विकास खंड के पगरा प्रसाद गांव के युवक दुर्गेश शर्मा ने। ग्रामीण सड़कों पर दौड़ती किसी मंहगे स्पोर्टी साइकिल सी दिखने वाली काठ की रचना न सिर्फ कौतूहल का केंद्र है अपितु काष्ठ कला की बारीकियां व कल्पनाशीलता को भी प्रदर्शित करती है।
पेशे से कारपेंटर दुर्गेश बंगलौर में जीविकोपार्जन करते हैं। लाकडाउन में घर आए तो उनके पुत्र राहुल ने नई साइकिल की जिद की। आर्थिक तंगी से जूझ रहे दुर्गेश ने काठ की साइकिल बना दी। कबाड़ से रिम, टायर-ट्यूब, ब्रेक सेट, चेन, फ्राईव्हील, धुरा, बेयरिग आदि जुगाड़ किया। दो महीने के प्रयास के बाद दुर्गेश की काठ की साइकिल सड़क पर दौड़ने लगी।
दुर्गेश ने काठ के फ्रेम पर नक्काशी की। पालिश आदि कर मित्र की मदद से कंप्यूटर ग्राफिक्स स्टीकर चिपकाकर काठ की साइकिल को स्पोर्टी लुक दे दिया। अब जब साइकिल को लेकर फर्राटे से सड़क पर निकलते हैं तो लोग इसे लकड़ी का जानकर हैरत में पड़ जाते हैं।
नई साइकिल में आठ हजार रुपये की आएगी लागत
हालांकि दुर्गेश ने लगभग एक हजार रुपये के मामूली खर्च में अपनी काठ की साइकिल तैयार कर दी, लेकिन एकदम नई काठ की साइकिल बनाने का खर्च लगभग आठ हजार रुपये बताया। इसमें फ्रेम बेस के लिए हल्की व मजबूत लकड़ी दो हजार मूल्य की, लकड़ी से न बनने वाले पार्टस जैसे रिम, टायर-ट्यूब, ब्रेक सेट, चेन, फ्राईव्हील, धुरा आदि क्रय करने में ढाई हजार, मजदूरी ढाई हजार व डेकोरेशन तथा पालिश में एक हजार रुपये खर्च होगा। साइकिल मजबूत व टिकाऊ होगी।
दुर्गेश शर्मा का कहना है कि अगर प्रोत्साहन मिले तो आधुनिकता का समन्वय कर काष्ठ कला को ऊंचाई दी जा सकती है। काठ की साइकिल बनाने के बाद मन में तमाम परिकल्पनाएं जन्म ले रहीं हैं जिन्हें यथार्थ में उतारने का प्रयास करुंगा।''