जल संचय के पर्याय कुओं को संरक्षण की दरकार, करें पहल

ग्राम पंचायत बनौली में डेढ़ दर्जन कुएं आज भी स्थित हैं पर आधे से अधिक सूख गए फिर पट गए। जो बचे हैं वह ढक दिए गए। सकारपार में गांव में भी कुओं की उपयोगिता न होने से ढक दिया गया है। कुओं को ढकने का कार्य ग्राम पंचायतों के ग्राम निधि से ही किया गया है।

By JagranEdited By: Publish:Sun, 04 Apr 2021 10:23 PM (IST) Updated:Sun, 04 Apr 2021 10:28 PM (IST)
जल संचय के पर्याय कुओं को संरक्षण की दरकार, करें पहल
जल संचय के पर्याय कुओं को संरक्षण की दरकार, करें पहल

सिद्धार्थनगर : जल संरक्षण में कुओं की बहुत बड़ी उपयोगिता हुआ करती थी। गांवों में तो यही पेय जल का माध्यम हुआ करते थे। यह लोगों के समृद्धि का प्रतीक भी माने जाते थे। पर समय के साथ इनका क्षरण हो चुका है। गांवों में अधिकांश कुएं या तो जमींदोज हो चुके हैं या फिर वह सूख कर धराशायी होने की ओर अग्रसर हैं। अब इनके संरक्षण की दरकार है।

विकास खंड खेसरहा क्षेत्र के ग्राम पंचायत महुलानी में लगभग एक दर्जन कुएं है। इसमें आधा दर्जन कुओं को ढक दिया गया है। जिससे एक बूंद बरसात का पानी अंदर नहीं जाता। वही आधा दर्जन कुएं खर-पतवारों से पट चुके हैं। ग्राम पंचायत बनौली में डेढ़ दर्जन कुएं आज भी स्थित हैं पर आधे से अधिक सूख गए फिर पट गए। जो बचे हैं, वह ढक दिए गए। सकारपार में गांव में भी कुओं की उपयोगिता न होने से ढक दिया गया है। कुओं को ढकने का कार्य ग्राम पंचायतों के ग्राम निधि से ही किया गया है। यह यदि खुले रहते तो वर्षा जल संचयन में इनकी अहम भूमिका होती।

यादगार है शेरशाह सूरी का कार्यकाल

शेरशाह सूरी के समय में कुएं व नहरों की खुदाई बहुत अधिक पैमाने पर कराई गयी थी। आज कुओं की उपयोगिता बिल्कुल खत्म हो चुकी है। जमीनों की पैमाइश में भी इनकी महती भूमिका हुआ करती थी। हिदू परंपरा में उपयोगी होने के कारण कुछ बचे तो हैं पर जल सरंक्षण में इनकी भूमिका नगण्य है।

बीडीओ बांसी सुशील कुमार पांडेय ने बताया कि अब तक मैंने ब्लाक क्षेत्र के विभिन्न ग्राम पंचायतों में मौजूद करीब 122 कुओं को संरक्षित कराया है। जो जमींदोज हो रहे हैं, उनका निरीक्षण कर उन्हें भी संरक्षित कर व पानी से भरवाया जाएगा।

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