हाल बेहाल नेता जी फास्ट हुए तो नजर में आ गए..
नगर निगम शहर की राजनीति का अखाड़ा होता है। गोरखपुर नगर निगम पार्षदों और यहां के कर्मचारियों की हरकतों से हमेशा चर्चा में रहता है। नगर निगम के अंदरखाने की खबरें पढ़ें दैनिक जागरण के सीनियर रिपोर्टर दुर्गेश त्रिपाठी के साप्ताहिक कालम हाल बेहाल में..
गोरखपुर, दुर्गेश त्रिपाठी। सफाई महकमे में जूता कांड की शायद ही कोई ऐसा होगा जिसने निंदा नहीं की होगी। अचानक ऐसा हो जाएगा कि इसकी कल्पना भी नहीं किसी ने की थी। हर कोई हैरान था। पीछे की वजह की तलाश में सभी जुट गए। जूता निकालने वाले छोटे माननीय गाली वाले इंजीनियर को घटना का सूत्रधार बताने में जुटे रहे। यह सब चल ही रहा था कि हड़ताल का एलान हो गया। नेता जी ने कह दिया कि तीन दिन में जेल या सफाई व्यवस्था कर दी जाएगी फेल। अफसर से दुव्र्यवहार के खिलाफ खड़ा होना लाजिमी था लेकिन नेता जी साइकिल वालों के निशाने पर आ गए हैं। उनकी जड़ खोदने में सभी जुट गए हैं। नौकरी से लगायत पद तक की बारीक बातें अब पता की जा रही हैं। किसी ने नौकरी पर सवाल उठाया तो कोई पद के अनुरूप काम कराकर ही मानने की बात कह रहा है।
शादी हुई तो ढीला हो गया कुर्ता
यह शोले वाले गब्बर तो नहीं हैं लेकिन मामला जनता से जुड़ा होता है तो सबसे पहले मेज पर चढ़कर शोर मचाने में पीछे भी नहीं रहते। पिछले दिनों साइकिल वालों को झटका देकर कमल के साथ खड़े हो गए तो कई लोग सदमे आ गए। बाऊ जी को जब पार्टी को संकट से उबारना था तो उनकी गणित में सबसे फिट यही बैठे थे। सब परेशान थे लेकिन बाऊ जी आश्वस्त थे। परिणाम आया तो बाऊ जी की गोल में इन्हें शामिल देख साइकिल वाले इतना खफा हो गए कि जमकर लानत-मलानत भी की थी। पिछले दिनों इनकी बहुप्रतीक्षित शादी भी हो गई। एक दिन बाऊ जी के सामने आए और वार्ड की समस्याओं को दूर कराने पर चर्चा करने लगे। अचानक बाऊ जी की नजर उनके कुर्ते पर गई तो वह चौंक गए। बोले, 'का जी शादी होते तोहार कुर्ता ढीला हो गइल, पिटात तो नाही हो न।
मुझे वाहन चाहिए...मुझे वाहन चाहिए
सफाई महकमे में कर की जिम्मेदारी वाले साहब वैसे तो हमेशा परेशान ही रहते हैं। उनके मन के मुताबिक कहीं कोई काम ही नहीं होता है। बड़े साहब के सामने आते हैं तो इतना तेल गिरा देते हैं कि मामला फिसल जाता है। डांट अलग से मिलती है। पिछले दिनों बड़े साहब ने एक क्षेत्र की जिम्मेदारी देते हुए वाहन पर सवार कर दिया। साहब वाहन से घूमते तो थे लेकिन परफार्मेंस बताने लायक नहीं रहता था। कुछ अफसर आए तो साहब को पैदल कर दिया गया। जबसे पैदल हुए हैं तब से वाहन के लिए भटक रहे हैं। बड़े साहब जब कहीं श्रमदान अभियान चलाते हैं तो वाट्सएप ग्रुप पर अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए दूसरे अफसरों से लिफ्ट मांगते हैं पर मंशा पूरी नहीं हो पाती है। अनदेखी से परेशान हैं। पिछले वाले साहब ने इनको तड़ीपार कर दिया था। किसी तरह बहाली का आदेश लेकर आए हैं।
अभी से कमरा देखने में जुट गए
महकमे का नया भवन तेजी से तैयार हो रहा है। ऐतिहासिक भवन से ज्यादा सुविधाओं से युक्त इस भवन में लिफ्ट भी लगेगी। भवन का काम अगले साल पूरा करने का लक्ष्य रखा गया था लेकिन बाऊ जी और बड़े साहब ने इसे रिकार्ड समय में पूरा कराने का प्रण ले लिया। काम की गति देखकर तय भी है कि दो साल पहले नवंबर में शिलान्यास के बाद इस साल नवंबर में ही भवन का लोकार्पण भी हो जाएगा। एक दिन एक छोटे माननीय भवन देखने पहुंच गए। वह पहले तो काफी देर बाहर से भवन को निहारते रहे। इसके बाद अंदर जाने के लिए आगे बढ़े। वहां मौजूद कर्मचारियों ने उनसे अंदर न जाने का आग्रह किया तो वह बोल पड़े कि हमारे लिए ही तो बन रहा है, कम से कम यह तो देख लें कि हमारी जगह कहां होगी। किसी तरह समझा-बुझाकर उन्हें वापस लौटाया गया।