बापू के पांव पड़ते ही धधक उठी थी आजादी की चिंगारी

हजारों की भीड़ देखने के बाद बापू के संबोधन के लिए बैकुंठी घाट को चुना गया। जहां एक बरगद का वृक्ष उनकी उपस्थिति का गवाह बना। जय भारत के उद्घोष से शुरू हुए बापू के संबोधन ने उपस्थित लोगों के जेहन में न सिर्फ आजादी का जज्बा भर दिया बल्कि अंग्रेजों भारत छोड़ो के नारों से आजादी की चिगारी भड़क उठी।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 05 Aug 2021 01:48 AM (IST) Updated:Thu, 05 Aug 2021 06:10 AM (IST)
बापू के पांव पड़ते ही धधक उठी थी आजादी की चिंगारी
बापू के पांव पड़ते ही धधक उठी थी आजादी की चिंगारी

महराजगंज: चार अक्टूबर 1929 को तराई में एक अजीब सी हलचल थी। घुघली रेलवे स्टेशन पर उमड़े जनसैलाब की निगाहें आजादी के महानायक महात्मा गांधी की एक झलक पाने को बेताब थी। इंतजार खत्म हुआ और बापू के पांव पड़ते ही जयकारों से माहौल गूंज उठा। बापू के आने की भनक दो रोज पहले ही लोगों को लग गयी थी। कुशीनगर, देवरिया और गोरखपुर से तमाम लोगों ने एक दिन पूर्व ही रेलवे स्टेशन पर अपना डेरा जमा लिया था।

हजारों की भीड़ देखने के बाद बापू के संबोधन के लिए बैकुंठी घाट को चुना गया। जहां एक बरगद का वृक्ष उनकी उपस्थिति का गवाह बना। जय भारत के उद्घोष से शुरू हुए बापू के संबोधन ने उपस्थित लोगों के जेहन में न सिर्फ आजादी का जज्बा भर दिया, बल्कि अंग्रेजों भारत छोड़ो के नारों से आजादी की चिगारी भड़क उठी। बापू के ठहरने की बात पर भाग खड़े हुए मिल के मैनेजर

बापू के आने की सूचना और मिल के गेस्ट हाउस में उनके ठहरने की सूचना पर अंग्रेजों के खौफ से चीनी मिल के मैनेजर बापू के आने से पूर्व ही गेस्ट हाउस की चाबी लेकर फरार जो गए। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मुंशी छत्रधारी लाल श्रीवास्तव ने घुघली स्थित अपने आवास पर ठहरने की व्यवस्था बनायी। जहां पहुंच कर बापू ने गुड़ के साथ पानी पीने की इच्छा जाहिर की। उस दौरान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी शिब्बन लाल सक्सेना, मुंशीजी, मिल में कार्यरत अनिल घोष व कुछ अन्य लोगों से गन्ना किसानों की समस्या, जमींदारों की दमनकारी नीतियों से संबंधित विषयों पर चर्चा की थी।

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