पिता के समय जर्जर हो गया था तालाब, प्राचार्य ने बदल दिया तालाबों का भूगोल
सिद्धार्थनगर जिले में शिवपति पीजी कालेज शोहरतगढ़ के प्राचार्य डा. अरविंद कुमार सिंह भूगोल विभाग के विभागाध्यक्ष भी हैं। छात्रों को जल संरक्षण के संबंध में बताते हैं इन्हें प्रेरित भी करते रहते हैं। भूगर्भ जल संरक्षण की भी जानकारी देने पर विशेष जोर रहता है।
गोरखपुर, प्रशांत सिंह : सिद्धार्थनगर जिले में शिवपति पीजी कालेज शोहरतगढ़ के प्राचार्य डा. अरविंद कुमार सिंह भूगोल विभाग के विभागाध्यक्ष भी हैं। छात्रों को जल संरक्षण के संबंध में बताते हैं, इन्हें प्रेरित भी करते रहते हैं। भूगर्भ जल संरक्षण की भी जानकारी देने पर विशेष जोर रहता है। खुद प्रेरणास्त्रोत बनकर शोहरतगढ़ तहसील क्षेत्र के धुसुरी खुर्द गांव के निवासी प्राचार्य ने छह तालाब की खोदवाई कराई है। पिता के समय का बड़ा तालाब जर्जर हो गया, अब उसका जीर्णोद्धार कराया है। दो दशक पूर्व चारों ओर पौधारोपण कराया। यह बड़े वृक्ष में तब्दील हो चुके हैं। ताजी व शुद्ध हवा लेने के लिए ग्रामीण तालाब पर पहुंचते हैं। गांव के कुएं को भी संरक्षित कर रहे हैं।
बारिश का जल संचित नहीं किया तो घटता जाएगा जलस्तर
डा. अरविंद कुमार सिंह कहते हैं धरती के अंदर का पानी एक गुल्लक की तरह से है। जितना हम उसमें डालेंगे, उतना ही निकाल सकते हैं। यदि बारिश का जल संचित नहीं किया तो धरती का जलस्तर घटते-घटते समाप्त हो जाएगा। यह मानव जाति और आर्थिक गतिविधियों के लिए बहुत हानिकारक साबित होगा। बारिश के जल को संचित करना भारत की प्राचीन परंपरा हैं, इसलिए पोखरा, बावड़ी तथा कुआं खोदवाना धार्मिक कार्य माना जाता रहा है। जल संरक्षण के लिए जरूरी है कि वह प्रदूषित नहीं हो। उतना ही आवश्यक है कि भूगर्भ के जल का रेन वाटर हार्वेस्टिंग के द्वारा रिचार्ज करना। वर्तमान में यदि छतों के पानी को धरती के अंदर डाला जाए और जगह-जगह पर मेड़बंदी और छोटे-छोटे बांध बनाए। गड्ढे और पोखरा खोदवाने से जल को संचित किया जा सकता है। इसमें मछली पालन भी कर सकते हैं। किसानों को अतिरिक्त आर्थिक लाभ भी मिलेगा।
मत्स्य पुराण में है बाग व तालाब के विवाह का प्रसंग
धार्मिक ग्रंथ मत्स्य पुराण में जल संरक्षण के संबंध में उल्लेख है। तालाब से बाग के विवाह का प्रसंग है। विवाह में मगरमच्छ, मछली, कछुआ आदि जंतुओं का उल्लेख किया गया है। पोखरा व तालाब से जल पृथ्वी के गर्भ में भी जाता है। सतह पर भी संरक्षित रहता है, जिससे पशु, पक्षी व मनुष्य को पीने, स्नान व खेती करने के काम में आता है। संचित जल सभी मौसम में उपलब्ध रहता है।