परवान नहीं चढ़ी परगापुर ताल में मगरमच्छ- कछुआ संरक्षण केंद्र की योजना Gorakhpur News

महराजगंज जिले के फरेंदा तहसील क्षेत्र में स्थित फरेंदा वन रेंज का वेटलैंड परगापुर मगरमच्छ और कछुआ संरक्षण केंद्र परवान नहीं चढ़ सका है। डीएफओ अविनाश कुमार बीते सितंबर में इसके लिए एक करोड़ रुपये की कैंपा परियोजना के अंतर्गत शासन को मंजूरी के लिए भेजा था।

By Rahul SrivastavaEdited By: Publish:Sat, 17 Apr 2021 12:10 PM (IST) Updated:Sat, 17 Apr 2021 12:10 PM (IST)
परवान नहीं चढ़ी परगापुर ताल में मगरमच्छ- कछुआ संरक्षण केंद्र की योजना Gorakhpur News
उपेक्षित फरेंदा वन रेंज का वेटलैंड परगापुर ताल। जागरण

केशव कुमार मिश्र, गोरखपुर : महराजगंज जिले के फरेंदा तहसील क्षेत्र में स्थित फरेंदा वन रेंज का वेटलैंड परगापुर मगरमच्छ और कछुआ संरक्षण केंद्र परवान नहीं चढ़ सका है। डीएफओ अविनाश कुमार बीते सितंबर में इसके लिए एक करोड़ रुपये की कैंपा परियोजना के अंतर्गत शासन को मंजूरी के लिए भेजा था। इसके लिए 50 लाख रुपये मौजूदा और 50 लाख अगले वित्त वर्ष में मिल जाने की चर्चा तेज थी, लेकिन शासन द्वारा धन अवमुक्त न होने से इस परियोजना पर ग्रहण लगा हुआ है। भेजे गए प्रस्ताव के मुताबिक परगापुर तालाब 69 हेक्टेयर में है। ताल में ढाई हेक्टेयर में मगरमच्छ व ढाई हेक्टेयर में कछुआ पालने का प्रस्ताव है। साथ ही ताल से दो मीटर गहराई तक मिट्टी निकाल कर टीले बनवाने की योजना थी। ताल में संरक्षण केंद्र बनने के बाद कछुआ और मगरमच्छ देखने के लिए लोगों का आवागमन शुरू हो जाता।

संरक्षण केंद्र के लिए उपयुक्त जलवायु

परगापुर ताल काफी विशाल है। इसके साथ सटे ही घना जंगल है। ताल का पानी कभी सूखता नहीं है। भौगोलिक स्थिति के कारण यह संरक्षण केंद्र काफी युक्त साबित होगा। वहीं विभाग द्वारा आबादी में पहुंचे मगरमच्छ को रेस्क्यू के बाद ताल में छोड़ दिया जाता है। नवंबर में कैंपियरगंज के पास से एक मगरमच्छ को रेस्क्यू कर ताल में छोड़ा गया था।

क्या है कैंपा योजना

वर्ष 2009 में वनीकरण तथा अन्य गतिविधियों के लिए प्रति वर्ष 1000 करोड़ रुपये की राशि जारी करने की अनुमति दी। इस राशि का उपयोग प्रतिपूरक वनीकरण निधि अधिनियम एवं प्रतिपूरक वनीकरण निधि नियमों के प्रावधानों के अनुसार किया जाएगा।

विदेशी पक्षियों से गुलजार रहता है ताल

सर्दी के मौसम में परगापुर ताल में विदेशी परिंदाें का आगमन शुरू हो जाता है। विदेशी पक्षियों के कलरव से ताल गुलजार हो जाता है। ठंड शुरु होने पर विदेशी पक्षियों का आना शुरू हो जाता है। करीब तीन माह के प्रवास के बाद फरवरी व मार्च में वापस अपने देश लौट जाते हैं। यहां पर जाड़े  के मौसम में साइबेरियन पक्षियों का आगमन बड़ी संख्या में होता है।गोरखपुर वन्यजीव प्रभाग के डीएफओ अविनाश कुमार ने कहा कि कैंपा परियोजना के तहत शासन को मगरमच्छ कछुआ संरक्षण केंद्र के लिए भेजा गया है। बजट पास होने पर कार्य शुरू करा दिया जाएगा।

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